उत्तराखंड की देवभूमि केवल हिमालय की गोद में बसे तीर्थ स्थलों तक सीमित नहीं, बल्कि यहाँ की हर झील, हर घाटी, हर चोटी, हर पेड़ भी अपनी कोई ना कोई पौराणिक कथा और सांस्कृतिक विरासत लिए हुए है। नैनीताल जिले की दो प्रमुख झीलें — नौकुचियाताल और भीमताल — इसका उत्कृष्ट उदाहरण हैं। ये केवल जलकुंड नहीं, बल्कि उत्तराखंड की आध्यात्मिक चेतना, ऐतिहासिक स्मृति और पर्यटन संपदा की प्रतीक हैं।
इतिहास की दृष्टि से — महाभारत से लोककथाओं तक?भीमताल का नाम स्वयं महाभारतकालीन महाबली भीम के नाम पर पड़ा। लोककथाओं के अनुसार, वनवास काल में पांडव जब इस क्षेत्र से गुज़रे, तब भीम ने इस विशाल झील का निर्माण किया था ताकि क्षेत्र के लोगों को जल की उपलब्धता हो सके। वहीं नौकुचियाताल, जिसे नौ कोनों वाली झील कहा जाता है, उसके संबंध में मान्यता है कि इसकी उत्पत्ति एक दिव्य शक्ति के स्पर्श से हुई। कहते हैं — जिसने इस झील के नौ कोनों को एकसाथ देख लिया, वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। यह झील किसी गूढ़ रहस्य जैसी प्रतीत होती है — शांत, गहरी, और ध्यानात्मक।
आध्यात्मिक विमर्श : जल में तपस्याओं की प्रतिध्वनि?उत्तराखंड की हर जलराशि को “जीवित देवता” का स्वरूप माना गया है। भीमताल झील के पास स्थित भीमेश्वर महादेव मंदिर स्थानीय आस्था का केंद्र है, जहां शिव के प्राचीन रूप की उपासना होती है। यह मंदिर और उसके समीप बहता झरना तीर्थभाव से ओतप्रोत है। वहीं नौकुचियाताल को ऋषि-मुनियों की तपोभूमि माना गया है। शांत वातावरण, पक्षियों की ध्वनि और झील के ऊपर तैरता कुहासा — सब मिलकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह स्थल आत्मा को शुद्ध करने हेतु बना हो।
पर्यटन की दृष्टि से : प्रकृति, रोमांच और संतुलन?इन दोनों झीलों ने बीते वर्षों में पर्यटकों के लिए एक स्वर्ग के रूप में ख्याति प्राप्त की है। नौकुचियाताल में पैराग्लाइडिंग, बोटिंग और प्राकृतिक ट्रैकिंग पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। यहाँ का झील महोत्सव, स्थानीय संस्कृति और कुमाऊँनी व्यंजनों का रंगारंग संगम बन चुका है। वहीं भीमताल अपने शांत जल, झील के बीच बने द्वीप एक्वेरियम, और साहसिक जलक्रीड़ाओं के लिए प्रसिद्ध है।
यहाँ का सौंदर्य न केवल पर्यटक को आकर्षित करता है, बल्कि फिल्मकारों, लेखकों और प्रकृति प्रेमियों के लिए भी प्रेरणास्रोत है। पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए स्थानीय प्रशासन और जनता को पर्यटन को इको-फ्रेंडली रूप देने की कोशिशें और तेज़ करनी होंगी।
वर्तमान चुनौतियाँ और उत्तरदायित्व?इन झीलों की प्रसिद्धि के साथ-साथ कुछ चुनौतियाँ भी सामने आई हैं — जैसे अंधाधुंध निर्माण, प्लास्टिक प्रदूषण, और अनियंत्रित पर्यटन। नौकुचियाताल के आसपास वनों की अंधाधुंध कटाई और भीमताल के पानी में प्रदूषण बढ़ने से इसकी पारिस्थितिकी पर संकट मंडरा रहा है।
सरकार और स्थानीय निकायों को चाहिए कि पर्यटन से प्राप्त राजस्व का एक निश्चित अंश झीलों के संरक्षण और स्वच्छता पर व्यय किया जाए। साथ ही झील आधारित आजीविका से जुड़े लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना भी आवश्यक है।
उपसंहार : झीलों का दर्शन, आत्मदर्शन बन जाए?भीमताल और नौकुचियाताल केवल भूगोल की दृष्टि से सुंदर स्थल नहीं, बल्कि वे हमें भीतर की यात्रा करने का अवसर देते हैं। अगर हम इन स्थलों को केवल पर्यटन के साधन के रूप में नहीं, बल्कि ध्यान, साधना और पर्यावरणीय संतुलन के केंद्र के रूप में देखें, तो आने वाले वर्षों में ये झीलें उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत का विश्व पटल पर अद्वितीय प्रतिनिधित्व कर सकती हैं।

