
🔥 इजरायल का ईरानी परमाणु संयंत्र पर हमला हाल ही में इजरायल ने ईरान के एक प्रमुख परमाणु संयंत्र पर सटीक सैन्य हमला कर पूरी दुनिया को चौंका दिया है। यह हमला न केवल ईरान की सैन्य-संप्रभुता को चुनौती देता है, बल्कि यह संकेत भी देता है कि मध्य पूर्व एक बार फिर युद्ध की आग में झुलस सकता है। इजरायल ने दावा किया है कि यह हमला ‘पूर्व-खतरे को निष्क्रिय’ करने के उद्देश्य से किया गया, क्योंकि ईरान का परमाणु कार्यक्रम इजरायल की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सीधा खतरा बन चुका था।


🇮🇱 इजरायल की नीति: हर संभावित खतरे का पहले नाश करो
इजरायल की विदेश नीति का मूलमंत्र स्पष्ट है – “पहले मारो, फिर सवाल करो।”
इजरायल खुद को चारों ओर से घिरे शत्रुओं से घिरा मानता है और उसकी सैन्य व खुफिया एजेंसियां हमेशा ऐसी रणनीति पर काम करती हैं जिससे खतरे को उभरने से पहले ही मिटा दिया जाए। चाहे वह इराक के सद्दाम हुसैन का परमाणु संयंत्र हो जिसे 1981 में “ऑपरेशन ओसिरक” में तबाह किया गया, या अब ईरान का नातांज (Natanz) और फोर्डो (Fordow) परमाणु संयंत्रइजरायल की नजर में ईरान का शिया-इस्लामी कट्टरपंथी शासन और उसका परमाणु सपना उसके अस्तित्व के खिलाफ है। और इस बार भी इजरायल ने वही किया जो वह सबसे अच्छे तरीके से करता है – सर्जिकल स्ट्राइक।
🇺🇸 अमेरिका का रोल: पर्दे के पीछे का समर्थक?अमेरिका भले ही कूटनीतिक रूप से संयम की बात कर रहा हो, लेकिन हकीकत यह है कि वॉशिंगटन और तेल अवीव एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
अमेरिका ने पहले भी ईरान के खिलाफ प्रतिबंध लगाए, परमाणु समझौते से खुद को बाहर किया, और इजरायल को हर तरह की खुफिया व तकनीकी मदद देता रहा है।
ट्रम्प प्रशासन के दौरान ईरान के जनरल कासिम सुलेमानी को ड्रोन हमले में मारने की घटना भी इसी रणनीति का हिस्सा थी। अमेरिका की नजर में ईरान न केवल इस्लामी कट्टरवाद का पोषक है बल्कि चीन और रूस के ब्लॉक में जाने वाला एक नया रणनीतिक मोहरा भी।
☢️ क्या परमाणु संयंत्र पर हमला विश्व के लिए खतरा है?बिलकुल।
ईरान के परमाणु संयंत्रों पर हमले से न केवल रेडियोएक्टिव रिसाव का खतरा है, बल्कि यह परमाणु युद्ध की संभावना को भी जन्म दे सकता है। अगर ईरान बदले में इजरायल पर हमला करता है और फिर अमेरिका उसमें शामिल होता है, तो पूरे मध्य एशिया, खाड़ी देश और तेल सप्लाई पर विपरीत असर पड़ेगा।
यह एक तरह से “परमाणु ज्वालामुखी” है जिस पर पूरा विश्व खड़ा है।
🏴☠️ ईरान में कौन है सत्ता में? कौन है तानाशाह?ईरान में वर्तमान सर्वोच्च नेता हैं: आयतुल्ला अली ख़ामेनेई (Ayatollah Ali Khamenei)।
वे ईरान के “सुप्रीम लीडर” हैं और उनसे ऊपर कोई नहीं। राष्ट्रपति नाम मात्र का पद है, असली ताकत उसी के पास होती है जो इस्लामी क्रांति के नाम पर संविधान में खुद को “ईश्वर का प्रतिनिधि” घोषित कर चुका हो।
👁️ तानाशाही की स्थापना कैसे हुई?
1979 में ईरान में अमेरिका समर्थित शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी के खिलाफ इस्लामी क्रांति हुई।
उस क्रांति का नेतृत्व कर रहे थे आयतुल्ला रुहोल्ला खुमैनी, जिन्होंने पेरिस से लौटकर सत्ता पर कब्जा किया और ईरान को “इस्लामी गणराज्य” घोषित कर दिया। वहां से ही ईरान का लोकतंत्र खत्म हो गया और मुल्ला तंत्र की तानाशाही शुरू हो गई।
आज खुमैनी की गद्दी पर बैठे हैं अली ख़ामेनेई – एक कट्टर इस्लामी नेता जो न्यायपालिका, संसद, मीडिया, सेना, सब पर पूर्ण नियंत्रण रखते हैं।
💣 क्या ईरान में तख्तापलट हो सकता है? क्या इजरायल- अमेरिका ऐसा चाहेंगे?इजरायल और अमेरिका की रणनीति यह है कि जैसे इराक में सद्दाम हुसैन का तख्तापलट कर लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना की गई थी (हालांकि वहां भी अस्थिरता बनी रही), वैसे ही ईरान में भी कट्टर इस्लामी सत्ता को उखाड़ा जाए।
अब तक:इजरायल खुफिया एजेंसी मोसाद ने कई बार ईरान में वैज्ञानिकों की हत्या की।
- साइबर हमले कर परमाणु कार्यक्रम को रोकने की कोशिश की गई।
- अब सीधा सैन्य हमला किया जा रहा है।
यह सब एक “Regime Change” की ओर संकेत कर रहा है, जिसमें ईरान की जनता को भी भड़काने का प्रयास हो रहा है।
🧠 क्या यह एक वैश्विक चाल है?
हां।मध्य एशिया, ईंधन, इस्लामिक कट्टरपंथ, परमाणु हथियार और चीन-रूस की बढ़ती नजदीकी – ये सारे पहलू मिलकर यह संघर्ष केवल इजरायल-ईरान का नहीं रहने देते, बल्कि यह विश्व व्यवस्था के पुनर्निर्माण की लड़ाई बन जाता है।
अगर यह युद्ध बढ़ा, तो भारत जैसे देशों पर भी तेल की कीमतों, व्यापार और कूटनीति पर व्यापक असर पड़ सकता है।
“जब एक तानाशाह परमाणु बम के सपने देखे और एक लोकतंत्र उसे रोकने को उठ खड़ा हो – तो टकराव तय होता है।”ईरान की तानाशाही सरकार अपनी जनता से कट चुकी है। महिलाएं, छात्र, उदारवादी वर्ग आज भी अयातुल्ला शासन के विरोध में हैं, लेकिन उन्हें सेना और धार्मिक पुलिस द्वारा कुचल दिया जाता है।इजरायल और अमेरिका की नीति भले ही कठोर लगती हो, पर उनका उद्देश्य स्पष्ट है – परमाणु बम आतंकियों या तानाशाहों के हाथ में न जाए।मगर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यदि संयम नहीं बरता गया, तो यह आग केवल तेहरान या तेल अवीव तक सीमित नहीं रहेगी। यह दुनिया की शांति को लील सकती है।
📍लेखक परिचय:
अवतार सिंह बिष्ट, वरिष्ठ पत्रकार, रुद्रपुर (उत्तराखंड), राज्य आंदोलनकारी, वर्तमान में शैल ग्लोबल टाइम्स व हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स के लिए लेखन।
