संपादकीय लेख: उत्तराखंड में कांग्रेस का अंतर्मंथन—गुटबाजी, आत्मघात और अस्तित्व का संकट?संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट

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उत्तराखंड राज्य गठन के 25 वर्षों बाद आज राजनीति के इस दौर में अगर किसी दल की सबसे अधिक दुर्दशा सामने है, तो वह कांग्रेस है। कभी इस राज्य के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाने का दावा करने वाली पार्टी आज अपनी ही अंतरविरोधों, नेताओं की महत्वाकांक्षाओं और दिशाहीन संगठनात्मक कार्यशैली का शिकार बन चुकी है। ताजा घटनाक्रम में पूर्व मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पर खुलेआम हमला यह दर्शाता है कि कांग्रेस एक बार फिर आत्मघाती मोड में प्रवेश कर चुकी है।

हरीश रावत बनाम कांग्रेस: एक व्यक्ति, अनेक विभाजन?हरक सिंह रावत का आरोप कि हरीश रावत ने 2022 में केवल लालकुआं और हरिद्वार ग्रामीण में प्रचार किया और शेष राज्य को नजरअंदाज किया—कांग्रेस की अंदरूनी सड़न को सामने लाता है। यह वही हरीश रावत हैं जिन्होंने 2009 में हर की पैड़ी पर कसम खाई थी कि अब वे चुनाव नहीं लड़ेंगे, मगर उसके बाद से हर चुनाव में खुद को ‘नेता नंबर एक’ साबित करने के लिए मैदान में उतरते रहे।

हरक सिंह की इस बात में दम है कि यदि हरीश रावत चुनाव न लड़ते, तो लालकुआं, रामनगर और सल्ट जैसी सीटें कांग्रेस के पास होतीं। लेकिन हरदा ने ‘मैं ही पार्टी हूं’ वाली मानसिकता के साथ न केवल अपनी सीट हारी, बल्कि दूसरों की भी हार का कारण बने। नैनीताल लोकसभा से साढ़े तीन लाख वोटों से हार और लालकुआं में 17,000 से अधिक मतों से शिकस्त यह साबित करती है कि जनता उन्हें अब स्वीकार करने को तैयार नहीं।

गुटबाज़ी की दलदल में डूबी कांग्रेस

उत्तराखंड कांग्रेस आज दिशाहीन नाव की तरह हो गई है जिसे कई खेवैया अलग-अलग दिशा में खींच रहे हैं। किशोर उपाध्याय, प्रीतम सिंह, यशपाल आर्य, हरक सिंह, गणेश गोदियाल और हरीश रावत जैसे नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं इतनी तीव्र हैं कि संगठन को एकजुट करना असंभव हो चुका है। सत्ता से बाहर पार्टी खुद को न तो संगठनात्मक रूप से खड़ा कर पा रही है और न ही जन मुद्दों पर प्रभावी आंदोलन खड़ा कर पाई है।

ऐतिहासिक भूलें जो कांग्रेस को ले डूबीं?कांग्रेस के शासनकाल में लिए गए कुछ विवादास्पद और गलत फैसलों ने भी जनता का भरोसा तोड़ा। जैसे:

  • राज्य आंदोलनकारियों की अनदेखी और रोजगार देने में भेदभाव।
  • डेंगू और आपदा प्रबंधन जैसे मामलों में लापरवाही।
  • रेवड़ी नीति के तहत ठेके और नियुक्तियों का बंटवारा।
  • चहेते अफसरों की भरमार और लोकायुक्त जैसी संस्थाओं को कमजोर करना।
  • भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बजाय ‘मैनेजमेंट’ की राजनीति।

यही कारण है कि 2017 के बाद से कांग्रेस लगातार जनता की प्राथमिकता सूची से बाहर होती गई।

भाजपा से तुलना: क्यों हर बार मात खा रही कांग्रेस?भाजपा उत्तराखंड में भले ही कई मामलों में सवालों के घेरे में रही हो, मगर उसकी संगठनात्मक एकजुटता, जमीनी कार्यकर्ताओं की सक्रियता और प्रचार कौशल कांग्रेस से कई गुना बेहतर रहा है। भाजपा का ‘मिशन मोड’ में कार्य करना, बूथ स्तर तक सक्रिय संगठन और मीडिया मैनेजमेंट ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है। जबकि कांग्रेस आज भी “पुराने चेहरे और घिसे-पिटे वादों” के सहारे खुद को साबित करने की कोशिश में लगी है।

हरक सिंह का यह बयान काबिलेगौर है—”जो काम भाजपा करती है, वह कांग्रेस क्यों नहीं कर सकती?” वास्तव में यह पार्टी के लिए आत्मावलोकन का वक्त है।

सलाह: कांग्रेस को चाहिए एक ‘रीसेट बटन’अगर कांग्रेस को वाकई उत्तराखंड में पुनर्जीवित होना है, तो उसे कुछ सख्त और साहसी कदम उठाने होंगे:
बुजुर्ग नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेजें – हरीश रावत जैसे नेताओं को अब संन्यास लेकर नई पीढ़ी को आगे लाने देना चाहिए।

  1. गुटबाज़ी पर लगाम – पार्टी हाईकमान को स्पष्ट रूप से उत्तराखंड में एक मजबूत और एकमात्र नेतृत्व तय करना चाहिए।
  2. जनता से जुड़ाव – सिर्फ बयानबाज़ी से नहीं, धरातल पर जन आंदोलनों के ज़रिए जनता के मुद्दों को उठाएं।
  3. डिजिटल और सोशल मीडिया पर पकड़ – भाजपा की तरह टेक्नोलॉजी का सटीक उपयोग करें, सिर्फ प्रेस कॉन्फ्रेंस से बात नहीं बनेगी।
  4. भ्रष्टाचार पर सख्त रुख – पुराने विवादों पर माफी मांगें, नई शुरुआत करें।

उत्तराखंड कांग्रेस आज जिस मोड़ पर खड़ी है, वहां से आगे बढ़ने के लिए उसे न केवल भाजपा से लड़ना होगा, बल्कि खुद से भी। अगर पार्टी अपने अंदर के विषैले तत्वों को साफ नहीं करती, तो 2027 में उसे राजनीतिक इतिहास का हिस्सा बनते देर नहीं लगेगी।जो अपने घर को नहीं संभाल सकते, वे राज्य की जिम्मेदारी कैसे निभाएंगे?”—जनता का यह सवाल अब कांग्रेस को खुद से पूछना चाहिए।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट


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