संपादकीय लेख अतिक्रमण मुक्त उत्तराखंड की राह में सबसे बड़ा रोड़ा – ‘अपने ही’”संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट

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रुद्रपुर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक बार फिर साबित किया है कि वे ‘कोरी घोषणाओं’ तक सीमित रहने वाले नेताओं में से नहीं हैं। सरकारी भूमि को अतिक्रमण-मुक्त रखने के लिए उनका सख्त रवैया और स्पष्ट निर्देश स्वागतयोग्य हैं। खासकर, नदियों के किनारों – हरिद्वार में गंगा, रुद्रपुर में कल्याणी, नैनीताल में कोसी – पर बढ़ते अवैध कब्जों के खिलाफ कार्रवाई का उनका संकल्प आने वाले समय में उत्तराखंड की नदियों और प्राकृतिक संसाधनों को बचाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

लेकिन सच्चाई यह है कि धामी सरकार के इस अभियान की असली परीक्षा वहीं होती है, जहाँ राजनीति अपने असली रंग दिखाती है। दुख की बात है कि जिन जनप्रतिनिधियों को जनता ने चुना है, वही अक्सर अतिक्रमणकारियों के ‘रक्षक’ बनकर खड़े हो जाते हैं। उधम सिंह नगर इसका ताजा उदाहरण है, जहाँ हजारों एकड़ नजर की भूमि, सिंचाई विभाग की जमीन और यहाँ तक कि कल्याणी नदी का पाट तक कब्जे में ले लिया गया है। जिला प्रशासन जब सख्ती दिखाने जाता है, तो एक जनप्रतिनिधि विरोध करता है, तो दूसरा उसके उलट अतिक्रमणकारियों के साथ खड़ा हो जाता है। सवाल यह है कि धामी जी का “अतिक्रमण कतई बर्दाश्त नहीं” का संकल्प तब कैसे साकार होगा, जब उनके अपने ही साथी उसे पलीता लगाने पर तुले हों?

मुख्यमंत्री धामी को प्रशंसा इस बात की मिलनी चाहिए कि वे हर मंच से यह कहने में नहीं हिचकते कि अतिक्रमण पर कोई रहम नहीं होगा। लेकिन सिर्फ बोलने से बदलाव नहीं आता। आवश्यकता इस बात की है कि जिला प्रशासन को इतनी ताकत दी जाए कि वह बिना किसी राजनीतिक दबाव के काम कर सके। कोई भी जनप्रतिनिधि, चाहे वह सत्तापक्ष का हो या विपक्ष का, प्रशासन के कान में फुसफुसाने न पाए।

अतिक्रमण हटाने का काम केवल बुलडोजर से नहीं होगा, बल्कि उस राजनीतिक संस्कृति के खिलाफ जंग छेड़नी होगी, जिसमें नेता अपनी वोट-बैंक राजनीति के लिए अवैध कब्जों को संरक्षण देते हैं। मुख्यमंत्री धामी यदि वाकई उत्तराखंड को अतिक्रमण-मुक्त देखना चाहते हैं, तो उन्हें अपने ही दल के उन जनप्रतिनिधियों को भी कठघरे में खड़ा करना होगा, जो छिपे तौर पर अतिक्रमण को बढ़ावा देते हैं।

साफ बात यही है — जब तक जिला प्रशासन को पूरी छूट और सुरक्षा नहीं मिलेगी, और राजनीतिक हस्तक्षेप बंद नहीं होगा, तब तक “अतिक्रमण मुक्त उत्तराखंड” केवल सपना ही बना रहेगा।


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