
रूद्रपुर की नगर राजनीति में एक बार फिर पहचान और वैधता को लेकर गरमाहट पैदा हो गई है। महापौर विकास शर्मा द्वारा “बिना लाईसेंस कारोबार करने वालों पर जुर्माने” और “नाम-धर्म छुपाकर कारोबार न करने” संबंधी चेतावनी निःसंदेह नगर प्रशासन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण बयान है। लेकिन जब इसे विहिप और बजरंग दल जैसे संगठनों की भावनाओं और मांगों के संदर्भ में देखा जाए, तो यह बयान केवल प्रशासनिक निर्देश नहीं बल्कि सामाजिक-सांप्रदायिक बहस का भी हिस्सा बन जाता है।


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
प्रशासनिक चेतावनी: उचित या राजनीति से प्रेरित?
नगर निगम अधिनियम के अंतर्गत व्यापार के लिए ट्रेंड और वेंडिंग लाइसेंस की अनिवार्यता पहले से मौजूद है। इस आधार पर यदि महापौर व्यापारियों को लाइसेंस बनाने के लिए बाध्य कर रहे हैं और चेतावनी दे रहे हैं, तो इसे प्रशासनिक अनुशासन के रूप में देखा जाना चाहिए। लेकिन जिस संदर्भ में यह बयान दिया गया—जहां कुछ संगठनों ने आरोप लगाया कि बाहरी लोग “नाम और धर्म छुपाकर” व्यापार कर रहे हैं—वह इस प्रशासनिक चेतावनी को सांप्रदायिक संदर्भ दे देता है।
पहचान की राजनीति का उभार
भारत का संविधान नागरिकों को देश में कहीं भी बसने और व्यवसाय करने का अधिकार देता है। ऐसे में, “बाहरी” शब्द स्वयं में संवैधानिक भावना के विरुद्ध है। यदि कोई नागरिक कानूनी रूप से कारोबार कर रहा है, तो उसकी जाति, धर्म, या मूल निवास का प्रश्न उठाना अनुचित है। हाँ, यदि कोई व्यक्ति झूठी जानकारी देकर धोखाधड़ी कर रहा है या धार्मिक प्रतीकों का दुरुपयोग कर रहा है, तो उस पर कानून के अनुसार कार्यवाही होनी चाहिए—बिना किसी धार्मिक संगठन के दबाव के।
महापौर विकास शर्मा का यह कहना कि “कोई व्यक्ति नाम और धर्म छुपाकर काम नहीं कर सकता”—एक विवादास्पद वक्तव्य बन जाता है। क्या नगर निगम के पास यह अधिकार है कि वह नागरिकों की धार्मिक पहचान सत्यापित करे? क्या पहचान का खुलासा व्यापार की वैधता से जुड़ा हुआ है? और यदि किसी का नाम मुस्लिम होने के बावजूद वह ‘राध
धर्म की आड़ में व्यापार: पहचान छिपाकर कारोबार करने वालों पर रुद्रपुर में सख्ती जरूरी”
रुद्रपुर,उत्तराखंड का तेजी से विकसित होता शहर, जहां बाहरी जनसंख्या का दबाव दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। इस जनसंख्या विस्तार के साथ अब धार्मिक पहचान छिपाकर व्यापार करने की घटनाएं एक नई और चिंताजनक प्रवृत्ति के रूप में उभर रही हैं। यह न सिर्फ धार्मिक अस्मिता से जुड़ा विषय है, बल्कि सामाजिक सुरक्षा, सांप्रदायिक सौहार्द और स्थानीय व्यवस्था के लिए भी एक सीधी चुनौती बनता जा रहा है।
बुधवार को विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने नगर निगम पहुंचकर महापौर विकास शर्मा से नाम और धर्म छुपाकर कारोबार करने वाले बाहरी लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। महापौर ने उन्हें भरोसा दिलाया कि नगर निगम इस मुद्दे को गंभीरता से लेगा और लाइसेंस विहीन एवं पहचान छुपाकर चल रहे व्यापारियों पर अभियान चलाएगा।
धर्म की आड़ में व्यापार: यह अपराध है या चालाकी?
व्यापार एक धर्मनिरपेक्ष गतिविधि होनी चाहिए, लेकिन जब व्यापारिक गतिविधियां धार्मिक भावनाओं को भड़काने या छिपी हुई पहचान के साथ की जाती हैं, तब यह केवल आर्थिक कार्य नहीं रहता — यह सामाजिक छल और सांस्कृतिक घुसपैठ का माध्यम बन जाता है।
जब कोई व्यक्ति हिंदू नाम रखकर, ‘शिवा जनरल स्टोर’, ‘जय श्रीराम मोबाइल शॉप’ या ‘हनुमान फास्ट फूड’ जैसे नामों से दुकान खोलता है, लेकिन उसकी असली पहचान किसी अन्य धर्म से जुड़ी होती है, तो यह सीधे-सीधे विश्वासघात है। यह आस्था के साथ धोखा है। और जब ऐसे दुकानदार धार्मिक चिन्हों का दुरुपयोग कर ग्राहक को भ्रमित करते हैं, तो यह अपराध की श्रेणी में आता है — कानूनी, नैतिक और सांस्कृतिक तीनों स्तर पर।
महापौर का स्पष्ट संदेश: “नाम और धर्म छुपाकर व्यापार नहीं चलेगा”
रुद्रपुर नगर निगम के महापौर विकास शर्मा ने यह बात बिल्कुल स्पष्ट कर दी कि अब व्यापारियों को नगर निगम से ट्रेड लाइसेंस और वेंडिंग लाइसेंस लेना अनिवार्य होगा। किसी भी व्यापारी को यह अधिकार नहीं है कि वह अपनी असली पहचान को छिपाकर जनमानस को भ्रमित करे।
नगर निगम एक्ट में स्पष्ट है कि प्रत्येक व्यापार करने वाले को अपनी वास्तविक पहचान के साथ ही पंजीकरण कराना होगा। यानी अब “छुपा रुस्तम व्यापारियों” की रुद्रपुर में कोई जगह नहीं बचेगी।
क्या यह हिंदू विरोध नहीं बल्कि हिंदू सुरक्षा है?
कई बार ऐसी कार्रवाई को “धार्मिक असहिष्णुता” कहकर प्रचारित किया जाता है, लेकिन इस मुद्दे को सही परिप्रेक्ष्य में देखना ज़रूरी है। क्या कोई व्यक्ति मुस्लिम समुदाय के क्षेत्र में जाकर ‘अब्दुल हलीम बेकरी’ नाम से दुकान खोल सकता है जबकि वह किसी अन्य धर्म से हो? नहीं। क्योंकि यह धार्मिक पहचान का विषय है और आस्था के साथ विश्वास का मामला भी।
जब हिंदू समाज के प्रतीकों और देवी-देवताओं के नामों का उपयोग करके, एक खास उद्देश्य से पहचान छिपाकर व्यापार किया जाता है, तो यह केवल “धंधा” नहीं होता — यह एक सुनियोजित चाल भी हो सकती हैराजनीति से ऊपर उठकर देखना होगा मुद्दा
यह मुद्दा केवल हिंदू संगठनों का नहीं है। यह संपूर्ण नागरिक समाज का प्रश्न है — क्या हम अपनी सामाजिक व्यवस्था में ऐसी चोरी की पहचानों को मान्यता देना चाहते हैं जो आगे चलकर धार्मिक टकराव का कारण बनें?
हमें यह भी सोचना होगा कि अगर पहचान छिपाने की यह प्रवृत्ति रुकती नहीं है, तो भविष्य में ‘लव जिहाद’, ‘लैंड जिहाद’ और अब ‘बिजनेस जिहाद’ जैसे शब्द सिर्फ नारों तक सीमित नहीं रहेंगे, वे जमीन पर हकीकत बन जाएंगे।
बिना लाइसेंस व्यापार: कानून की खुली अवहेलना
महापौर का यह कदम भी सराहनीय है कि उन्होंने बिना ट्रेड लाइसेंस और वेंडिंग लाइसेंस के कारोबार करने वालों को भी चेतावनी दी है। यह किसी एक धर्म का विषय नहीं है, बल्कि कानून और नगर प्रशासन की प्रतिष्ठा का सवाल है।
यदि कोई भी व्यक्ति बिना लाइसेंस के कारोबार कर रहा है तो वह कर चोरी, सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा और नियमन की उपेक्षा के लिए दोषी है। विशेष चेकिंग अभियान में ऐसे दुकानदारों पर जुर्माना लगना चाहिए और पुनरावृत्ति पर दुकान सील की जानी चाहिए।
बाहरी बनाम स्थानीय: रोजगार पर भी पड़ता है असर
रुद्रपुर जैसे शहरों में जब बाहरी लोग बिना कानूनी दस्तावेज़ों के कारोबार करते हैं, तो वे न केवल नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं बल्कि स्थानीय लोगों के रोजगार और व्यापार पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
स्थानीय व्यापारी जो नियमों के तहत काम करते हैं, टैक्स चुकाते हैं, लाइसेंस फीस भरते हैं – उनके लिए यह सीधा आर्थिक अन्याय है। वहीं पहचान छुपाकर कार्य कर रहे लोगों को अक्सर बाहरी संरक्षण प्राप्त होता है और यही बात सामाजिक तनाव को जन्म देती है।
हिंदू संगठनों की भूमिका: दबाव या जन-संवेदनशीलता?
विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे संगठनों पर अक्सर “कट्टरता” का आरोप लगता है। परंतु, जब वे धार्मिक पहचान के दुरुपयोग की शिकायत करते हैं, तो क्या हम इसे सिर्फ ‘उन्माद’ कहकर खारिज कर सकते हैं?
उन्होंने कोई हिंसक प्रदर्शन नहीं किया, सिर्फ ज्ञापन सौंपा और प्रशासन से कार्रवाई की मांग की — यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है। धर्म के नाम पर धोखे के खिलाफ आवाज उठाना सिर्फ हिंदू संगठनों का नहीं, बल्कि हर जागरूक नागरिक का कर्तव्य है।
प्रशासन को ईमानदारी से कार्रवाई करनी होगी
रुद्रपुर नगर निगम और प्रशासन के लिए यह एक मौका है कि वह यह साबित करे कि धार्मिक आस्थाओं का सम्मान करते हुए, वह कानून व्यवस्था को प्राथमिकता देता हैपहचान छुपाकर व्यापार करने वालों की जांच होसभी व्यापारियों का पंजीकरण अनिवार्य किया जाए,धार्मिक प्रतीकों और देवी-देवताओं के नामों का दुरुपयोग न हो,बाहरी लोगों का वेरिफिकेशन सुनिश्चित हो
यह केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि सांस्कृतिक रक्षा की पहल है। यदि अभी नहीं रोका गया, तो आने वाले समय में रुद्रपुर जैसे शांत शहर भी आग की चपेट में आ सकते हैं — और तब हम पछताने के सिवा कुछ नहीं कर सकेंगे।
