संपादकीय लेख रामपुर तिराहा कांड: अब निर्णायक मोड़ पर संघर्ष की 25 साल पुरानी कहानी — अवतार सिंह बिष्ट, मुख्य संवाददाता, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स”इतिहास के पन्नों पर दर्ज एक लहूलुहान सुबह, जिसे आज भी उत्तराखंड की आत्मा रोती है।”

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2 अक्टूबर 1994 — एक दिन जो महात्मा गांधी की जयंती के साथ-साथ उत्तराखंड आंदोलनकारियों के लिए खून और आंसुओं की त्रासदी लेकर आया। रामपुर तिराहा कांड सिर्फ एक हिंसक टकराव नहीं था, बल्कि एक राज्य की अस्मिता को कुचलने का सुनियोजित प्रयास था। जहां पांच आंदोलनकारी शहीद हुए, सात महिलाओं के साथ दुराचार हुआ, और 17 महिलाओं को अमानवीय यातनाएं दी गईं। यह केवल राजनीतिक या कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि एक ऐसी विवेकहीन बर्बरता थी जिसने पूरे उत्तराखंड की अंतरात्मा को झकझोर दिया।

आज 25 साल बाद, यह मामला आखिरकार निर्णायक मोड़ पर है। नैनीताल हाई कोर्ट में आगामी 4 अगस्त 2025 को इस ऐतिहासिक कांड की अंतिम सुनवाई होनी है। यह केवल एक तारीख नहीं, बल्कि राज्य निर्माण की नींव रखने वाले हजारों आंदोलनकारियों की इंसाफ की आखिरी उम्मीद है।


सवाल अब भी खड़े हैं…

  • आखिर क्यों 25 वर्षों तक इस मामले में न्याय टलता रहा?
  • जब सीबीआई ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर जांच पूरी की, तो अभियुक्तों को राहत कैसे मिलती गई?
  • तत्कालीन डीएम, सीओ, और पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमे क्यों लटके रहे?
  • सुभाष गिरी जैसे वादा माफ गवाह की संदिग्ध परिस्थितियों में ट्रेन में मौत पर चुप्पी क्यों रही?

यदि यह कांड किसी और राज्य में हुआ होता तो शायद अब तक देश की संसद तक हिल चुकी होती। मगर उत्तराखंड के शहीद आंदोलनकारियों को सालों तक न्याय की प्रतीक्षा में लाचार बना दिया गया।


राज्य बनने के बाद भी क्यों नहीं मिला सम्मान?उत्तराखंड 2000 में राज्य बना, मगर उसके आंदोलनकारी आज भी परित्यक्त की स्थिति में हैं। न पेंशन की पारदर्शिता, न मेडिकल सुविधा, न रोज़गार में आरक्षण, और न ही सामाजिक मान्यता। आंदोलनकारी संगठनों के अध्यक्ष अनिल जोशी की अगुवाई में देवभूमि पलायन एवं बेरोजगारी उन्मूलन समिति लगातार संघर्षरत है। अनिल जोशी ने स्पष्ट किया है कि 4 अगस्त को नैनीताल हाईकोर्ट में सभी आंदोलनकारी जुटेंगे, और वहीं से हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स की वेबसाइट पर सीधा प्रसारण होगा, जिसमें जनभावनाओं को सीधे कोर्ट तक पहुंचाया जाएगा।


यह केवल मुकदमा नहीं, यह उत्तराखंड की आत्मा का मुकदमा है?रामपुर तिराहा कांड एक उदाहरण है कि कैसे एक आंदोलन को कुचलने के लिए सत्ता ने सारी हदें पार कर दीं। महिलाओं का अपमान, युवाओं की हत्या, और फिर न्याय की प्रक्रिया में 25 वर्षों की देरी — यह सब इस बात की ओर इशारा करता है कि उत्तराखंड आंदोलन को सत्ता ने कभी पूरी गंभीरता से लिया ही नहीं।

अब, जब अंतिम सुनवाई का अवसर आया है, तो यह समस्त उत्तराखंडवासियों की जिम्मेदारी है कि वे इस फैसले पर अपनी निगाहें बनाए रखें। यह केवल न्याय नहीं देगा, बल्कि हमारी अगली पीढ़ी को यह संदेश देगा कि संघर्ष व्यर्थ नहीं जाता


सरकार से अपेक्षा: अब देरी नहीं, निर्णय चाहिए?मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और केंद्र सरकार से अपेक्षा है कि वे इस मामले की मानवाधिकार की दृष्टि से गंभीर पैरवी करें

  • नैनीताल हाई कोर्ट से अपेक्षा है कि वह इस मामले में दोषियों को सजा देकर न्याय की एक ऐतिहासिक मिसाल पेश करे

  • आमजन से अपील है कि वे इस आंदोलन को सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि आज की चेतना समझें।


संघर्ष की लौ को जलाए रखें?हमारी टीम, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, इस पूरे मामले की प्रामाणिक और निष्पक्ष रिपोर्टिंग करेगी। 4 अगस्त को नैनीताल हाई कोर्ट से सीधे लाइव प्रसारण भी किया जाएगा, ताकि हर उत्तराखंडी इस ऐतिहासिक फैसले का साक्षी बन सके। अवतार सिंह बिष्ट, अनिल जोशी नैनीताल हाई कोर्ट से सीधा प्रसारण करेंगे

यह समय है एकजुट होने का, आवाज़ उठाने का और उस न्याय की प्रतीक्षा करने का, जो 25 वर्षों से एक भूले-बिसरे राज्य की रगों में बह रहा है।


रामपुर तिराहा सिर्फ एक कांड नहीं था, वह उत्तराखंड के आत्मबल और राज्य निर्माण की कीमत थी। अब उस कीमत का न्याय मिलना ही चाहिए।”

जय उत्तराखंड! जय आंदोलनकारी!


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