संपादकीय: उत्तराखंड में उगते ‘ड्रग्स के धंधे’ का अंधेरा – एक चेतावनी,अंडरवर्ल्ड की मौजूदगी: उत्तराखंड अब ‘सॉफ्ट टारगेट’ एक पुकार — अवतार सिंह बिष्ट, वरिष्ठ पत्रकार

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रुद्रपुर,उत्तराखंड की शांत वादियों में अब एक ऐसा तूफान पनप रहा है, जो केवल युवाओं के भविष्य को ही नहीं निगल रहा, बल्कि राज्य की साख और सुरक्षा को भी चुपचाप चाट रहा है—यह तूफान है ‘ड्रग्स माफिया’ का। हालिया खुलासा कि पिथौरागढ़ जिले के थल क्षेत्र में एमडीएमए (MDMA) जैसी खतरनाक सिंथेटिक ड्रग्स का निर्माण हो रहा था, पूरे उत्तराखंड के लिए एक खतरनाक अलार्म है। इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि इस नेटवर्क के तार मुंबई अंडरवर्ल्ड से जुड़े पाए जा रहे हैं—विशेष रूप से छोटा राजन के साथी कहे जाने वाले कुख्यात अपराधी हनी दादा तक।

थाणे पुलिस द्वारा की गई जांच और उत्तराखंड एसटीएफ की छानबीन में सामने आया कि एक मुर्गी फार्म, जो कथित रूप से हनी दादा का है, को किराए पर लेकर वहां बड़े पैमाने पर एमडीएमए बनाने का गोरखधंधा चल रहा था। यही नहीं, पांच किलो एमडीएमए के साथ महिला ईशा की गिरफ्तारी, बॉर्डर से भागते हुए तीन तस्करों की धरपकड़ और फैक्टरी संचालक कुनाल राम कोहली की गिरफ्तारी यह बताने के लिए काफी है कि यह कोई सामान्य तस्करी नहीं, बल्कि एक संगठित माफिया नेटवर्क की उत्तराखंड में घुसपैठ है।

यह सिर्फ ‘ड्रग्स’ नहीं, यह एक सामाजिक आपदा है?उत्तराखंड के सीमांत जनपदों—विशेषकर चंपावत, पिथौरागढ़, नैनीताल और ऊधमसिंहनगर—में नशा अब एक सामाजिक महामारी बन चुका है। युवा पीढ़ी, जो कभी राज्य के निर्माण आंदोलन की रीढ़ बनी थी, अब ड्रग्स की गिरफ्त में है। एमडीएमए, जो क्लब ड्रग या “पार्टी ड्रग” के रूप में जानी जाती है, अत्यंत घातक है और न केवल मानसिक संतुलन को बिगाड़ती है, बल्कि युवाओं को स्थायी अपराध की ओर भी धकेलती है।

अंडरवर्ल्ड की मौजूदगी: उत्तराखंड अब ‘सॉफ्ट टारगेट’कभी ‘देवभूमि’ कहे जाने वाले इस राज्य में यदि छोटा राजन का सहयोगी ड्रग फैक्टरी का मालिक पाया जाता है, तो यह केवल अपराध नहीं, बल्कि सुरक्षा व्यवस्था की विफलता भी है। वर्ष 2011 में पत्रकार जेडे हत्याकांड में हनी दादा का नाम आना, फिर नेपाल बॉर्डर के रास्ते हथियारों की तस्करी के आरोप और अब ड्रग्स रैकेट—यह साबित करता है कि उत्तराखंड अब सिर्फ तीर्थ या पर्यटन का स्थल नहीं रहा, यह अपराधियों का भी सुरक्षित आश्रय बनता जा रहा है।

एसटीएफ की सक्रियता सराहनीय, पर क्या यह पर्याप्त है?एसएसपी नवनीत भुल्लर और आईजी एसटीएफ डॉ. नीलेश आनंद भरणे की पहल से यह मामला सामने आया है, जो प्रशंसनीय है। लेकिन सवाल यह है कि क्या राज्य सरकार और पुलिस की निगरानी व्यवस्था इतनी मजबूत है कि इस तरह की फैक्ट्रियों को बनने से पहले ही रोक सके? क्यों थल जैसे सुदूर क्षेत्र में महीनों तक रासायनिक निर्माण होता रहा और किसी को भनक नहीं लगी?

ड्रग्स के विरुद्ध चाहिए “युद्ध स्तर पर अभियान”जांच का दायरा सीमित न हो – सिर्फ हनी दादा या कुनाल कोहली तक न सीमित रहकर, इस नेटवर्क की विदेशी फंडिंग, नेपाल कनेक्शन और राजनीतिक संरक्षण की भी जांच होनी चाहिए।

  1. बॉर्डर इलाकों की निगरानी बढ़े – नेपाल बॉर्डर पूरी तरह से हाई अलर्ट पर हो और ड्रग्स व हथियारों की तस्करी पर रोक लगाने के लिए सीमा सुरक्षा बलों को विशेष संसाधन उपलब्ध कराए जाएं।
  2. शिक्षण संस्थानों में नशा विरोधी अभियान – युवाओं को नशे से दूर रखने के लिए विद्यालयों-कॉलेजों में अनिवार्य काउंसलिंग और जागरूकता अभियान चलें।
  3. कठोर कानून और फास्ट ट्रैक अदालतें – ड्रग्स तस्करी के मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतें बनाई जाएं और दोषियों को कठोरतम सजा मिले।

सरकार और समाज दोनों को चेतने की ज़रूरत?ड्रग्स का धंधा न केवल अवैध कमाई का ज़रिया है, बल्कि यह समाज की जड़ें खोखली करने वाला वायरस है। अगर यह नेटवर्क आज पिथौरागढ़ में है, तो कल नैनीताल, रुद्रपुर, देहरादून और फिर दिल्ली के दरवाजे पर दस्तक देगा। आज कार्रवाई जरूरी है, कल पछताना भी बेकार होगा।

उत्तराखंड को ड्रग्स मुक्त करने का अभियान सिर्फ पुलिस की नहीं, समाज की भी जिम्मेदारी है। यह समय है जागने का, जगाने का और संकल्प लेने का—’ड्रग्स मुक्त देवभूमि’ का।



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