रुद्रपुर राज्य बनने के 25 वर्षों बाद भी उत्तराखंड में यदि सबसे बड़ी समस्या जस की तस बनी हुई है, तो वह है – भ्रष्टाचार, सरकारी मशीनरी की निष्क्रियता और भू-माफियाओं का बेलगाम तांडव। रुद्रपुर के कोलड़ा गांव में 7 एकड़ से अधिक भूमि पर काटी गई एक अवैध कॉलोनी इसका ताजा और चिंताजनक उदाहरण है। गायत्री विहार हाउसिंग वेलफेयर सोसाइटी, कीरतपुर कोलड़ा के अध्यक्ष मुकेश कुमार द्वारा मुख्यमंत्री को भेजे गए शिकायती पत्र में जिस तरह के गंभीर आरोप लगाए गए हैं, वे न केवल स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं, बल्कि इस बात की ओर भी इशारा करते हैं कि भू-माफिया और राजस्व विभाग की सांठगांठ आम जनता के अधिकारों को कैसे निगल रही है।


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
कैसे पनपती है एक अवैध कॉलोनी?
खाता संख्या 637 व खसरा संख्या 179 की जिस भूमि पर भगवती प्रसाद नामक कॉलोनाइज़र ने कॉलोनी काटी है, वहां न केवल सरकारी नाली को दबा दिया गया है, बल्कि चक रोड की चौड़ाई को भी गलत तरीके से बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया। बताया गया है कि वास्तविकता में जहाँ सड़क 4 मीटर (नाली सहित) होनी चाहिए, वहां 9 मीटर दर्शाया गया। और यह काम किसी और ने नहीं, स्वयं सरकारी पटवारी नईम अहमद ने अपने स्तर पर मिलकर किया। शिकायत के अनुसार, उन्होंने चक रोड का खसरा नंबर भी छिपा लिया और गोलमोल रिपोर्ट बनाकर विकास प्राधिकरण को दी, जिससे गलत नक्शा पास हो गया।
प्राधिकरण की चुप्पी: साजिश या संलिप्तता?
शिकायती पत्र में एक और अहम पहलू यह भी है कि इस पूरे मामले की जानकारी विकास प्राधिकरण, उपाध्यक्ष, जिलाधिकारी – सबको पहले ही दे दी गई थी। बावजूद इसके, कोई एक्शन नहीं लिया गया। इससे यह संदेह बलवती होता है कि न केवल सरकारी अफसर, बल्कि जिला विकास प्राधिकरण भी इस पूरे खेल में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल है।
जब जनता से जुड़ी समस्याओं पर महीनों तक कोई कार्यवाही न हो, तब यह केवल लापरवाही नहीं बल्कि साज़िश मानी जाती है। एक ओर मुख्यमंत्री ‘जीरो टॉलरेंस’ की बात करते हैं, दूसरी ओर ज़मीनी हकीकत यह है कि सरकारी अभिलेखों में हेराफेरी करके भूमाफिया करोड़ों की जमीन को पचा जाते हैं।
अवैध कब्जे की सामाजिक कीमत
खसरा संख्या 180 में मौजूद सरकारी नाली पर अवैध कब्जा कर उसे कॉलोनी की सड़क में शामिल करना सिर्फ सरकारी संपत्ति पर अतिक्रमण नहीं है, बल्कि भविष्य के जलभराव, सीवरेज की अव्यवस्था और शहरी अव्यवस्था की नींव है। ऐसे मामलों का सीधा प्रभाव आने वाली पीढ़ियों और आम नागरिकों की जिंदगी पर पड़ता है। स्थानीय कॉलोनीवासियों ने पहले भी आपत्ति दर्ज कराई, तो उन्हें धमकाया गया। क्या यही नया उत्तराखंड है, जहाँ माफिया के डर से नागरिक अपने ही मोहल्ले की सड़कों पर चलने से घबराएं?
राजनीति और प्रशासन के गठजोड़ की उपज
यह मामला केवल एक कॉलोनी का नहीं, बल्कि प्रशासनिक निकम्मेपन और भ्रष्ट व्यवस्था की पोल खोलता है। यदि एक पटवारी, एक कॉलोनाइज़र और कुछ दलाल मिलकर सात एकड़ सरकारी और विवादित भूमि पर अवैध कॉलोनी बसा सकते हैं और जिला विकास प्राधिकरण आंख मूंदे बैठा रहे, तो यह लोकतंत्र नहीं, माफियाराज है।
मुख्यमंत्री को करनी चाहिए कठोर कार्रवाई
इस मामले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए। यह ज़रूरी है कि:
- पूरे भूमि प्रकरण की न्यायिक जांच हो।
- पटवारी नईम अहमद सहित दोषी अधिकारियों पर निलंबन और विभागीय कार्यवाही हो।
- अवैध रूप से पास हुए नक्शे को तत्काल रद्द किया जाए।
- सरकारी नाली और चक रोड की स्थिति की पुनः जांच कर कब्जा हटाया जाए।
- भविष्य में ऐसे मामलों को रोकने के लिए GIS आधारित पारदर्शी नक्शा व्यवस्था लागू की जाए।
कोलड़ा की यह घटना उन हजारों नागरिकों के लिए चेतावनी है, जो सरकारी सिस्टम पर भरोसा करके अपने घरों में चैन से जीना चाहते हैं। यदि शासन-प्रशासन की मिलीभगत से भू-माफिया बेलगाम होते रहेंगे, तो विकास की बजाय अव्यवस्था ही हमारी नियति बन जाएगी। मुख्यमंत्री से अपेक्षा है कि वह केवल ‘सेवा और सुशासन’ के नारों तक सीमित न रहकर धरातल पर न्यायसंगत कार्रवाई करें।क्योंकि अगर एक सरकारी नाली भी सुरक्षित नहीं है, तो जनता की सुरक्षा का क्या भरोसा?

