संपादकीय ,बाहरी राज्यों के माफिया — उत्तराखंड के नाम पर नकली कारोबार: छवि भी खतरे में, खजाना भी!

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रुद्रपुर,उत्तराखंड ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन की हालिया प्रेस वार्ता ने राज्य की औद्योगिक प्रतिष्ठा पर एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है। एसोसिएशन का आरोप है कि बाहरी राज्यों में घटिया दवाएं बनाकर उत्तराखंड का पता दर्ज कर दिया जा रहा है, जिससे न केवल राज्य की छवि को धक्का लग रहा है, बल्कि फार्मा हब के रूप में उसकी साख भी मिट्टी में मिल रही है। यह मामला महज कुछ शरारती तत्वों तक सीमित नहीं लगता, बल्कि इसमें कहीं न कहीं गहरी साजिश और स्थानीय स्तर पर मिलीभगत की बू भी आती है।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट

क्योंकि सवाल सीधा है — किसी फर्जी कंपनी को उत्तराखंड का पता इस्तेमाल करने की छूट आखिर कैसे मिल रही है? वह भी तब, जब ड्रग कंट्रोल विभाग जैसी एजेंसियां हर कदम पर दस्तावेज़ और लाइसेंस की पड़ताल करने का दावा करती हैं। क्या यह सब बिना किसी ‘सिस्टमिक प्रोटेक्शन’ के संभव है? शायद नहीं।

दवाओं के नकली कारोबार की आड़ में उत्तराखंड की औद्योगिक पहचान को बट्टा लगाने वाले लोग दरअसल पूरे राज्य के खजाने और लोगों की सेहत दोनों से खिलवाड़ कर रहे हैं। यह सिर्फ फार्मा सेक्टर तक सीमित नहीं है। हकीकत यह है कि उत्तराखंड के नाम पर और भी कई ‘नकली कारोबार’ फल-फूल रहे हैं:

  • नकली हर्बल और आयुर्वेदिक उत्पाद: पहाड़ की औषधियों के नाम पर घटिया सामग्री बेचकर देशभर में उत्तराखंड के प्राकृतिक उत्पादों की साख बिगाड़ी जा रही है। नकली प्रमाणपत्र छपवाकर कुछ व्यापारी करोड़ों का कारोबार कर रहे हैं।
  • नकली पैकेजिंग वाले ऑर्गैनिक उत्पाद: ऑर्गैनिक ब्रांड का ठप्पा लगाकर उत्तराखंड के नाम पर बाहर से लाई गई सब्जी, फल, मसाले और अनाज बेचे जा रहे हैं। असली उत्पादक किसान को उसका हक नहीं मिल रहा।
  • नकली पर्यटन सेवाएँ: फर्जी ट्रैवल एजेंटों द्वारा उत्तराखंड टूरिज्म के नाम पर बुकिंग लेकर पर्यटकों को ठगा जा रहा है। कई मामलों में पर्यटकों की जान जोखिम में डाली गई है।
  • शहद, दूध, घी, नकली लेबलिंग: लोकल ब्रांड के नाम पर मिलावटी सामान बेचने का नेटवर्क सक्रिय है। इन पर ‘मेड इन उत्तराखंड’ की मुहर होती है, जबकि वास्तविकता कुछ और होती है।
  • वन उत्पादों की तस्करी: दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ, कीड़े-जड़ी (कीड़ा जड़ी) जैसी चीजें अवैध रूप से इकट्ठा कर फर्जी परमिटों पर बाहर भेजी जा रही हैं। इसमें वन विभाग के कुछ कर्मियों की मिलीभगत की चर्चाएं अक्सर होती रहती हैं।
  • फर्जी शिक्षा संस्थान: उत्तराखंड के नाम पर कई राज्यों में कॉलेज और कोचिंग सेंटर फर्जी सर्टिफिकेट बांटते हैं, जिससे राज्य की शिक्षा साख भी बदनाम हो रही है।

इन नकली कारोबारों के पीछे कौन लोग हैं? यह सवाल सबसे अहम है।

  • कुछ अधिकारी — ड्रग कंट्रोल, इंडस्ट्री डिपार्टमेंट, वन विभाग, फूड सेफ्टी विभाग आदि में बैठे कुछ अधिकारी ऐसे मामलों में आँख मूंदे रहते हैं। इनके निजी हित या आर्थिक लाभ की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
  • बाहरी राज्यों के माफिया — जिनकी नजर उत्तराखंड की ‘ब्रांड वैल्यू’ पर है। वे नाम और लोकेशन का फायदा उठाकर पूरे बाजार को गुमराह कर रहे हैं।
  • स्थानीय बिचौलिए और एजेंट — जो छोटे कमीशन पर नकली कारोबारियों के लिए जमीन तैयार करते हैं। दस्तावेज़, पते, लाइसेंस सब कुछ सेट करवा देते हैं।
  • राजनीतिक संरक्षण — कई बार ये धंधे राजनीतिक संरक्षण के बिना फल-फूल ही नहीं सकते। चुनाव फंडिंग या अन्य कारणों से नेताओं का मौन समर्थन भी शक के घेरे में आता है।

सबसे खतरनाक बात यह है कि ये नकली कारोबार राजस्व की बड़ी हानि कर रहे हैं। उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य के लिए टैक्स चोरी, नकली ब्रांडिंग और साख पर चोट, तीनों मिलकर भारी आर्थिक नुकसान का सबब हैं।

दूसरी ओर, इससे जनस्वास्थ्य पर भी सीधा खतरा है। नकली दवाएं, मिलावटी खाद्य पदार्थ या घटिया हर्बल उत्पाद सीधे जनता की जान के लिए जोखिम पैदा कर रहे हैं। उत्तराखंड जैसे संवेदनशील भौगोलिक क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं का पहले ही अभाव है। ऐसे में नकली कारोबार जनता के साथ सरासर धोखा है।

अब वक्त आ गया है कि सरकार सिर्फ बयान जारी करने तक सीमित न रहे। एसोसिएशन की मांग जायज है कि ड्रग कंट्रोल विभाग समेत सभी नियामक संस्थाएँ तुरंत व्यापक जांच शुरू करें। हर उस पते की भौतिक सत्यापन हो, जिसका इस्तेमाल उत्तराखंड ब्रांड के नाम पर हो रहा है। दोषी अधिकारियों पर व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय की जाए। साथ ही जनता को भी जागरूक किया जाए कि ‘उत्तराखंड के नाम पर बिकने वाली हर चीज असली नहीं होती।’

अगर अभी भी सरकार ने इस पर कड़ा ऐक्शन नहीं लिया, तो न केवल राज्य का नाम मिट्टी में मिलेगा, बल्कि फार्मा हब और नैसर्गिक उत्पादों पर टिका उत्तराखंड का पूरा आर्थिक मॉडल भी ताश के पत्तों की तरह बिखर जाएगा।


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