संपादकीय विशेष | उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: राजनीति की नई पटकथा या असहमति की पराकाष्ठा? ✍️ अवतार सिंह बिष्ट, हिन्दुस्तान ग्लोबल टाइम्स / शैल ग्लोबल टाइम्स

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भारत के 14वें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अचानक इस्तीफा राजनीतिक पटल पर एक ऐसी अनहोनी घटना के रूप में सामने आया है, जिसकी कोई तात्कालिक वजह स्पष्ट नहीं दी गई। एक तरफ उनके इस्तीफे की टाइमिंग चौंकाती है, तो दूसरी तरफ इसकी पृष्ठभूमि में जो घटनाएं और संकेत सामने आ रहे हैं, वे संकेत करते हैं कि यह महज व्यक्तिगत कारण या स्वास्थ्य से जुड़ा निर्णय नहीं है, बल्कि सत्ता-संगठन के भीतर के अंतर्विरोधों का एक तीखा बिंदु हो सकता है।

स्वास्थ्य कारण या राजनीतिक संप्रेषण?

धनखड़ ने अपने इस्तीफे की वजह स्वास्थ्य बताई, लेकिन राजनीतिक हलकों में इसे गंभीरता से नहीं लिया जा रहा। सोमवार को संसद में उनकी उपस्थिति, सक्रियता और विपक्षी सांसदों से बातचीत — किसी भी दृष्टिकोण से यह दर्शाती नहीं थी कि वे किसी भी मानसिक या शारीरिक दबाव में हैं। इसके उलट, मंगलवार को जयपुर में रियल एस्टेट डेवलपर्स के साथ प्रस्तावित संवाद और उससे जुड़ी प्रेस विज्ञप्ति यह स्पष्ट करती है कि कार्यक्रम चल रहे थे, और कोई अचानक स्वास्थ्य आपातकाल जैसी स्थिति नहीं थी।

कहीं यह एनडीए की ‘बड़ी राजनीतिक योजना’ तो नहीं?कुछ विश्लेषक इसे भाजपा-एनडीए की बड़ी राजनीतिक रणनीति के हिस्से के तौर पर देख रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद एनडीए को घटक दलों को साधने, संगठन में नई भूमिकाएं तय करने और विपक्ष की रणनीति का जवाब देने के लिए नई सूरत में पेश होना पड़ रहा है। ऐसे में उपराष्ट्रपति पद को लेकर भी कोई बड़ा राजनीतिक समीकरण तैयार किया जा सकता है — जैसे किसी सहयोगी दल के वरिष्ठ नेता को यह पद सौंपना, जिससे गठबंधन की मजबूती और व्यापकता प्रदर्शित की जा सके।

किसान मुद्दे पर टकराव: विचारधारा से अलग रुख?धनखड़ जिस प्रकार किसानों के मुद्दे पर हाल ही में मुखर रहे, उसने सत्ता पक्ष को असहज किया। यह पहली बार नहीं है जब वे सरकार की नीतियों से सहमत नज़र नहीं आए। उन्होंने कृषि संकट को केवल तकनीकी नहीं, बल्कि भावनात्मक और सामाजिक मुद्दा करार दिया और सार्वजनिक मंचों से इस पर सरकार को अधिक संवेदनशील रवैया अपनाने की सलाह दी।

सुप्रीम कोर्ट विवाद: धनखड़ को अकेला छोड़ गई सरकार?अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों पर हस्ताक्षर के लिए समय सीमा तय करने पर की गई टिप्पणी ने संवैधानिक चर्चाओं को तीव्र कर दिया था। इस पर उपराष्ट्रपति ने संविधान के मूल ढांचे, शक्तियों के पृथक्करण और न्यायपालिका की सीमाओं पर विचार उठाए। जब सुप्रीम कोर्ट की अवमानना को लेकर याचिकाएं दाखिल हुईं, तो भाजपा नेतृत्व ने चुप्पी साध ली और खुद को इन बयानों से अलग कर लिया। यह राजनीतिक एकाकीकरण धनखड़ के लिए एक गंभीर झटका था, जिससे वह बेहद आहत हुए।

धनखड़ का बयान: ‘न दबाव में काम करता हूं, न प्रभाव में’इस्तीफे के तुरंत बाद जो बयान आया — “न दबाव में काम करता हूं, न प्रभाव में” — वह स्पष्ट संदेश है। यह बयान सिर्फ एक आत्मगौरव की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि यह संकेत है कि उनके कार्यकाल के दौरान कोई ऐसा दबाव था जिससे वे सहज नहीं थे, और जिस पर वे लगातार असहमति जता रहे थे।

क्या भविष्य में धनखड़ की नई भूमिका तय है?राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी जोरों पर है कि जगदीप धनखड़ को अब किसी और बड़ी भूमिका के लिए तैयार किया जा रहा है — संभवतः राजस्थान की राजनीति में उनकी वापसी, या कोई केंद्रीय जिम्मेदारी। ऐसे समय में जब भाजपा को राज्यों में जातीय समीकरण और प्रभावशाली चेहरों की जरूरत है, धनखड़ जैसे जाट नेता की भूमिका फिर से परिभाषित हो सकती है।

इस्तीफा सिर्फ इस्तीफा नहीं है…

जगदीप धनखड़ का इस्तीफा एक व्यक्ति का पद त्याग नहीं, बल्कि सत्ता के गलियारों में उठती गूंज है। यह संविधान, संस्थागत गरिमा और विचारधारा के बीच की खींचतान को उजागर करता है। यह घटना भारतीय राजनीति को चेतावनी देती है कि संस्थागत पदों की गरिमा केवल नियुक्तियों से नहीं, बल्कि पारस्परिक सम्मान और संवाद से बनती है।

अगर देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति असहज महसूस करता है और इस्तीफा देने को विवश होता है, तो यह केवल व्यक्ति की हार नहीं, बल्कि पूरी प्रणाली की आत्मचिंतन की घड़ी है।


आपका क्या मानना है — क्या जगदीप धनखड़ का इस्तीफा एक नए राजनीतिक अध्याय की शुरुआत है या सत्ता के भीतर की दरार का इशारा? अपने विचार हमें लिख भेजिए।

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