संपादकीय – वर्ष बदलते हैं, नाले नहीं!” हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स किसी अखबार के एक “डिजिटल क्रिएटर” पत्रकार महोदय ने बड़ी बारीकी से खोजबीन कर दावा किया कि वायरल वीडियो 2023 का है। बहुत बढ़िया! साहब, मान लिया। पर सवाल ये है कि क्या 2025 में हालात बदल गए?

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उत्तराखंड ,फेसबुक पेज देवभूमि उत्तराखंड पर वही वीडियो फिर से वायरल हुआ। बच्चों को गले तक पानी में डूबे, उफनते नाले को पार करते देख दिल काँप उठा। किसी ने लिखा – “हमारे बुजुर्ग कहा करते थे कि हम उफनती नदियाँ पार कर स्कूल जाया करते थे… आज भी हाल वही हैं।”

सही कहा। वर्ष बदल गए, सरकारें बदल गईं… पर नाले वही हैं।

और इधर पत्रकारिता के “फैक्ट चेकर्स” छाती ठोक कर कहते फिर रहे हैं – “वीडियो 2023 का है, झूठ फैलाना बंद करो।” अरे हुज़ूर, 2023 का हो या 2000 का, क्या बच्चों को अब पुल से स्कूल भेज रहे हो?

दैनिक जागरण के बागेश्वर ब्यूरो चीफ घनश्याम जोशी ने खुद कहा —

“यह वीडियो कपकोट तहसील के उच्च हिमालयी गांव बदियाकोट का है। वीडियो अभी का नहीं है। पैदल पुल बन गए हैं, लेकिन शॉर्टकट में कुछ बच्चे अभी भी गधेरों से होकर निकल जाते हैं।”

यानी पुल कहीं हैं, पर हालात वही पुराने। स्कूल वही दूर, रास्ते वही दुर्गम, और बरसात में वही उफनते नाले। फर्क बस इतना है कि तब वीडियो नहीं होते थे, अब हो गए हैं।

जो लोग आज “जनसंख्या परिवर्तन” के मुद्दे पर भाषण झाड़ते हैं, उनसे एक सवाल —

क्या कभी उत्तराखंड के मूल निवासियों के बच्चों के लिए कुछ किया?

उन बच्चों के लिए, जो रोज़ ज़िन्दगी को दांव पर लगाकर गधेरे पार करते हैं? उन मासूमों के लिए, जिनके सपनों में अक्सर बाढ़ आती है?

हाल ही में PCS परीक्षा देने जा रहे बच्चों का एक और वीडियो वायरल हुआ, जहाँ तेज़ धाराओं में लड़खड़ाते कदम देखे गए। तो भाई, अब बताओ — ये 2025 का था या 2015 का?

उत्तराखंड की पत्रकारिता का दुर्भाग्य है कि कुछ पत्रकार चाटुकारिता की ऐसी दलदल में फँस गए हैं कि सच देखने की नज़र खो बैठे। किसी पुल की खबर आ जाए तो सरकार की जय-जयकार में पन्ने रंग दिए जाते हैं। मगर सवाल ये है —

क्या हर गाँव में पुल है?

क्या हर बच्चे का रास्ता सुरक्षित है?

क्या हिमालय के गांवों की हकीकत बदल गई?

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स पूछता है — अगर वीडियो पुराना भी है, तो क्या समस्या नई नहीं है?

आज भी विकास के आँकड़ों में उत्तराखंड चमकता है। मगर कपकोट, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चमोली, टिहरी के सैंकड़ों गाँवों के लिए बरसात का मतलब है स्कूल की किताबें कंधे पर और मौत का डर दिल में।

ये राज्य गुलामी से आज़ाद तो हो गया, मगर अफ़सोस कि आज भी कुछ पत्रकार, कुछ अफसर और कुछ नेता उत्तराखंड की अव्यवस्था के गुलाम बने बैठे हैं।

हमें गर्व है उन बच्चों पर, जो हर रोज़ उफनते गधेरों में उतरकर स्कूल पहुँचते हैं। वही बच्चे असली उत्तराखंड हैं। और वो दिन भी आएगा, जब नाले नहीं, सपनों के पुल बनेंगे।

वर्ष बदलेंगे, और इस बार नाले भी बदलेंगे।


– हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स संपादकीय विभाग


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