संपादकीय “भरोसे पर टिकी शिक्षा व्यवस्था: अतिथि शिक्षकों के संघर्ष की अनसुनी दास्तान”

Spread the love

उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था में अतिथि शिक्षकों की भूमिका वर्षों से बेहद अहम रही है। चाहे बोर्ड परीक्षाएं हों, स्कूलों की नियमित कक्षाएं हों या किसी भी प्रकार की शैक्षणिक गतिविधियाँ—अतिथि शिक्षक हर मोर्चे पर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते रहे हैं। परंतु इसके बावजूद राज्य सरकार की उनके प्रति बेरुखी और असंवेदनशीलता का आलम यह है कि उन्हें न तो नियमित वेतन मिलता है, न ही स्थायीत्व की गारंटी। ताकुला ब्लॉक में हालिया घटनाक्रम इस उपेक्षा की कहानी को एक बार फिर उजागर करता है, जहाँ स्थायी शिक्षकों की अनुपस्थिति में अतिथि शिक्षक पूरे स्कूल का भार संभाल रहे हैं, लेकिन उन्हें ग्रीष्मकालीन अवकाश का वेतन तक नहीं मिलेगा। यह केवल एक आर्थिक मुद्दा नहीं, बल्कि नैतिक प्रश्न भी है कि क्या अतिथि शिक्षक इस समाज के सम्मानित कर्मियों में नहीं आते?

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह

: अतिथि शिक्षकों की मौजूदा स्थिति

  1. ताकुला ब्लॉक की घटना—एक उदाहरण, अनेक पीड़ाएं
  2. राजकीय शिक्षक संघ के चुनाव और स्कूलों की वास्तविकता
  3. श्रम और वेतन: शोषण की परिभाषा बदलती नहीं
  4. सरकारी उदासीनता: ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन अवकाश में वेतन कटौती
  5. विगत आंदोलनों का इतिहास और अधूरी घोषणाएं
  6. शिक्षा मंत्री के झूठे वादे: अधिवेशन में हुए आश्वासन की पोल खोलती हकीकत
  7. ब्लॉक अध्यक्ष कविता कांडपाल का बयान: पीड़ा की पुकार
  8. शिक्षा का भविष्य अतिथि शिक्षकों के कंधों पर क्यों?
  9. संविधान, श्रम कानून और न्यूनतम मानव गरिमा का उल्लंघन
  10. अन्य राज्यों की स्थिति और उत्तराखंड में सुधार की संभावना
  11. राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव या योजना बद्ध शोषण?
  12. समाज की भूमिका और मीडिया की चुप्पी
  13. न्याय की उम्मीद: क्या न्यायालय बन सकते हैं सहारा?
  14. एक स्थायी समाधान की ओर अपील

आरंभिक अनुच्छेद,अतिथि शिक्षकों की मौजूदा स्थिति,जब शिक्षा को राष्ट्र निर्माण का आधार कहा जाता है, तब यह भी देखना आवश्यक होता है कि उस शिक्षा को देने वालों की स्थिति क्या है। उत्तराखंड के सरकारी विद्यालयों में कार्यरत हजारों अतिथि शिक्षक वर्षों से एक ऐसे अस्थायी ढांचे में काम कर रहे हैं, जिसमें उनके पास ना नौकरी की सुरक्षा है, ना स्थायीत्व की उम्मीद। वे हर साल गर्मियों और सर्दियों की छुट्टियों में वेतन से वंचित कर दिए जाते हैं, परीक्षा कार्यों से लेकर विद्यालयीय व्यवस्थाओं तक हर जिम्मेदारी निभाने के बावजूद।

2. ताकुला ब्लॉक की घटना—एक उदाहरण, अनेक पीड़ाएं

ताकुला ब्लॉक में दो दिनों से चल रहे राजकीय शिक्षक संघ के चुनावों में सभी स्थायी शिक्षक भाग ले रहे हैं। परिणामस्वरूप, सारा शैक्षणिक भार अतिथि शिक्षकों के कंधों पर आ गया है। बच्चों की पढ़ाई से लेकर प्रशासनिक कार्यों तक, सब कुछ इन्हीं अतिथि शिक्षकों के भरोसे चल रहा है। इस स्थिति में सबसे दुखद बात यह है कि इन्हीं शिक्षकों को सरकार ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान वेतन नहीं दे रही।

3. राजकीय शिक्षक संघ के चुनाव और स्कूलों की वास्तविकता

चुनाव लोकतंत्र का अहम अंग हैं, और संघों का गठन शिक्षकों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक भी है। परंतु जब चुनाव के नाम पर स्कूलों को स्थायी शिक्षकों से खाली कर दिया जाता है और अतिथि शिक्षकों पर संपूर्ण भार डाल दिया जाता है, तो यह व्यवस्था की कमजोरी नहीं बल्कि अन्याय का प्रतीक बन जाती है।

ताकुला ब्लॉक समेत पूरे उत्तराखंड में अतिथि शिक्षक सरकारी स्कूलों की रीढ़ बने हुए हैं। शिक्षक संघ के चुनाव के चलते स्थायी शिक्षक अनुपस्थित हैं, और पढ़ाई का पूरा भार अतिथि शिक्षकों पर है। इसके बावजूद सरकार उन्हें ग्रीष्मकालीन अवकाश का वेतन नहीं दे रही, जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण संकट में है। कई आंदोलनों और शिक्षा मंत्री के आश्वासनों के बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई है। यह राज्य की शिक्षा व्यवस्था और सरकार की संवेदनहीनता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। अतिथि शिक्षकों के लिए स्थायी समाधान अब अनिवार्य हो गया है।



Spread the love