रुद्रपुर खानपुर त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में जीत-हार सिर्फ आंकड़े नहीं होते, वे भविष्य की राजनीति का रुझान तय करते हैं। उधम सिंह नगर की खानपुर पूर्व जिला पंचायत सीट से निर्दलीय प्रत्याशी सुषमा हाल्दार की ऐतिहासिक जीत न केवल एक महिला प्रत्याशी की सफलता है, बल्कि इससे कहीं अधिक यह पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल के राजनीतिक पुनर्जीवन का प्रतीक बन गई है।
प्रतिष्ठा की लड़ाई, संघर्ष की पटकथा
यह चुनाव सुषमा हाल्दार के नाम पर लड़ा जरूर गया, लेकिन असल में यह राजकुमार ठुकराल की प्रतिष्ठा की जंग बन चुका था। भाजपा से बाहर किए जाने के बाद ठुकराल की राजनीतिक प्रासंगिकता पर प्रश्नचिह्न लगने लगे थे। मगर खानपुर पूर्व में उनका जनसंपर्क, रणनीति और जमीनी पकड़ अब भी मजबूत है—यह इस चुनाव ने साफ कर दिया।
एकतरफा जीत और जनता का जनादेश
चुनाव परिणामों ने विरोधियों की नींद उड़ा दी है—12525 मतों से सुषमा हाल्दार की विजय, भाजपा समर्थित प्रत्याशी अमिता विश्वास को सिर्फ 5229 वोट, और 7296 वोटों का एकतरफा अंतर। यह जीत ठुकराल की सामाजिक स्वीकार्यता और चुनाव प्रबंधन कौशल का जीवंत प्रमाण है। यह जनादेश उस विश्वास का प्रतीक है जो आम जनता अब भी ठुकराल पर जताती है।
यह जीत एक संदेश भी है
पूर्व विधायक होने के बावजूद, राजकुमार ठुकराल ने कोई राजनीतिक अहंकार नहीं दिखाया। उन्होंने हर गांव में जाकर लोगों से व्यक्तिगत संवाद किया, सुषमा हाल्दार को “अपने प्रतिनिधि” के तौर पर प्रस्तुत किया और लगातार यह जताया कि यह सीट सिर्फ पंचायत नहीं, बल्कि क्षेत्रीय विकास और सम्मान की सीट है। उन्होंने अपने समर्थकों को एकजुट किया और परिणाम सामने है।
चुनावी पराजयों से उबरने की मिसाल
2022 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में हार के बाद अधिकांश लोगों ने ठुकराल को खत्म मान लिया था। लेकिन पहले सिटी क्लब चुनाव में संजय ठुकराल की शानदार जीत और अब सुषमा हाल्दार की पंचायत विजय—इन दोनों चुनावों ने यह साबित कर दिया कि राजकुमार ठुकराल केवल नेता नहीं, बल्कि चुनावी मनोविज्ञान समझने वाले कुशल रणनीतिकार हैं।
भाजपा के लिए भी एक चेतावनी
सुषमा हाल्दार की जीत भाजपा को भी आत्मविश्लेषण के लिए मजबूर करती है। पार्टी का अधिकृत प्रत्याशी इतनी बुरी तरह पराजित हुआ, जबकि ठुकराल—जो पार्टी से बाहर हैं—उन्होंने अपनी छवि, अनुभव और मेहनत से जीत सुनिश्चित कर दिखाई। इससे यह भी साफ होता है कि भाजपा ने ठुकराल जैसे नेता को दरकिनार कर संगठन को कमजोर किया है।
ठुकराल की वापसी की दस्तक
राजनीति में कभी किसी को न कम आंका जा सकता है, न भुलाया जा सकता है—राजकुमार ठुकराल इस कहावत के जीवंत उदाहरण हैं। खानपुर पूर्व की जीत सिर्फ सुषमा हाल्दार की नहीं, बल्कि उस जनता की है जो अपने पुराने सिपाही पर आज भी विश्वास करती है।
अब देखना यह है कि आने वाले समय में भाजपा और क्षेत्रीय राजनीति ठुकराल की इस पुनरावृत्ति को किस रूप में स्वीकार करती है—चुनाव परिणाम तो संकेत दे चुके हैं कि खेल अब फिर से खुला है…
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