पांच वर्षों की तपस्या – देवभूमि पलायन एवं बेरोजगारी उन्मूलन समिति की ऐतिहासिक यात्रा

Spread the love

प्रस्तावना:उत्तराखंड – एक ऐसा राज्य जो अपने सौंदर्य, संस्कृति और साहसिक संघर्षों के लिए जाना जाता है। लेकिन इस देवभूमि की सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि स्वतंत्र राज्य बनने के बावजूद यहां के दूरस्थ क्षेत्रों में आज भी पलायन, बेरोजगारी और बदहाल ग्रामीण जीवन का दंश झेला जा रहा है। इन्हीं परिस्थितियों को बदलने के लिए ‘देवभूमि पलायन एवं बेरोजगारी उन्मूलन समिति’ का गठन हुआ। आज चार वर्षों की संघर्षपूर्ण यात्रा पूरी कर इस समिति ने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि दृढ़ संकल्प हो, तो सामाजिक बदलाव संभव है।

संवाददाता, शैल ग्लोबल टाइम्स हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स अवतार सिंह बिष्ट रूद्रपुर उत्तराखंड (उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी)

  1. समिति की स्थापना: जनता की पीड़ा से उपजी जनचेतना

    2018 में किच्छा निवासी अनिल जोशी के नेतृत्व में इस समिति का गठन हुआ। उद्देश्य साफ था – उत्तराखंड के दूरस्थ गांवों से हो रहे पलायन को रोकना और युवाओं को रोज़गार के अवसर दिलाकर उन्हें अपने गाँव में ही सम्मानजनक जीवन देना। समिति की शुरुआत छोटे स्तर पर हुई, लेकिन जल्दी ही यह एक जनांदोलन का रूप लेने लगी।

  • कार्यशैली: ज़मीनी हकीकत से जुड़ी पहलकदमियां

    समिति ने कभी भी मंचीय भाषणबाज़ी या केवल दिखावटी कार्यक्रमों में खुद को नहीं झोंका। उन्होंने बाढ़ पीड़ितों को राहत सामग्री पहुंचाने, स्कूली बच्चों को मुफ्त कॉपियाँ-किताबें देने और युवाओं को स्वरोजगार की दिशा में प्रशिक्षित करने जैसे ठोस कार्य किए।

  • खुरपिया फार्म आंदोलन: न्याय के लिए 40 दिनों की तपस्या

    समिति का सबसे बड़ा ऐतिहासिक आंदोलन खुरपिया फार्म में हुआ, जहां भूमिहीनों को पाँच-पाँच एकड़ भूमि दिलाने की माँग को लेकर अनवरत 40 दिनों तक धरना प्रदर्शन किया गया। यह आंदोलन इतना प्रभावशाली था कि तत्कालीन राज्य सरकार को इसे उत्तराखंड विधानसभा में उठाना पड़ा। लेकिन दुर्भाग्यवश सरकार के गिरने के बाद यह मुद्दा प्रशासनिक फाइलों में दब गया। समिति ने इस पर भी हार नहीं मानी और लगातार जनचेतना के माध्यम से आवाज़ बुलंद की।

  • बकरी पालन योजना: आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर एक क्रांतिकारी कदम

    समिति ने अल्मोड़ा क्षेत्र में बकरी फार्म की स्थापना की। इस फार्म का उद्देश्य न केवल ग्रामीणों को आजीविका के साधन देना था, बल्कि उन्हें प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार की ओर अग्रसर करना भी था। स्थानीय लोगों को वाजिब कीमतों पर बकरियाँ उपलब्ध कराई जाती हैं और कई बार मुफ्त में भी वितरित की गई हैं।

  • प्रशासनिक सराहना और सामाजिक सम्मान

    उधम सिंह नगर जिला प्रशासन ने कई बार समिति के कार्यों की सार्वजनिक रूप से सराहना की है। प्रशासनिक अधिकारियों ने न केवल समिति की कार्यशैली को अनुकरणीय माना, बल्कि अन्य संगठनों को भी इससे प्रेरणा लेने की सलाह दी।

  • पीरामल फाउंडेशन और नीति आयोग के साथ सहभागिता

    समिति ने राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं जैसे पीरामल फाउंडेशन के साथ भी मिलकर काम किया है। नीति आयोग द्वारा आयोजित चर्चाओं, कार्यशालाओं और परियोजनाओं में समिति ने उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों की आवाज़ बनकर प्रतिनिधित्व किया है।

  • प्रदेशव्यापी विस्तार: गाँव-गाँव में जनसंगठन की नींव

    समिति का कार्यक्षेत्र अब केवल किच्छा या उधम सिंह नगर तक सीमित नहीं रहा। यह संगठन अब अल्मोड़ा, नैनीताल, बागेश्वर, चमोली, टिहरी, हरिद्वार और देहरादून तक फैल चुका है। हर जिले में स्थानीय प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित कर समिति के उद्देश्यों को गांवों तक पहुँचाया जा रहा है।

  • महिला और युवा सशक्तिकरण

    समिति ने विशेष रूप से महिलाओं और युवाओं को अपने अभियानों में जोड़ा है। स्वरोजगार प्रशिक्षण, सामूहिक सहायता समूहों का गठन और महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए लगातार कार्य किए गए हैं।

  • शिक्षा के क्षेत्र में योगदान

    समिति ने कई सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों में ज़रूरतमंद बच्चों को मुफ्त में किताबें, बैग्स और शैक्षिक सामग्री दी है। इसके साथ ही कई बार रात्रि कक्षाओं और कोचिंग कार्यक्रमों का आयोजन भी किया गया है, जिससे कमजोर तबकों के छात्रों को मदद मिल सके।

  • समिति की सोच: पलायन नहीं, पुनर्निर्माण

    समिति का मानना है कि पलायन की समस्या केवल रोजगार की कमी से नहीं, बल्कि शासन की उपेक्षा, खराब बुनियादी ढांचे और शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से भी जुड़ी है। इसलिए समिति एक समग्र दृष्टिकोण से गाँवों के पुनर्निर्माण पर कार्य करती है।

  • चुनौतियाँ और संघर्ष

    प्रारंभिक वर्षों में समिति को बहुत विरोध और उपेक्षा का सामना करना पड़ा। कुछ प्रभावशाली तत्वों ने इसे राजनैतिक रंग देने की कोशिश की, लेकिन समिति ने हमेशा गैर-राजनीतिक रहकर केवल जनहित पर ध्यान केंद्रित किया।

  • भविष्य की योजना: क्या सरकार देगी समर्थन?

    आज समिति अपने पांच वर्षों के संघर्ष को एक मिसाल के रूप में प्रस्तुत कर रही है। यह वक्त है कि उत्तराखंड सरकार इस संगठन को संस्थागत दर्जा दे और इसके कार्यों को सरकारी सहयोग प्रदान करे। यदि ऐसा होता है तो न केवल पलायन रुकेगा बल्कि उत्तराखंड को उसकी मूल पहचान भी लौटेगी।

  • समापन: एक आंदोलन, एक आशा, एक पुनर्जागरण

    ‘देवभूमि पलायन एवं बेरोजगारी उन्मूलन समिति’ आज उम्मीद की वह मशाल है, जो घाटियों में बुझती उम्मीदों को फिर से जगाने का कार्य कर रही है। अनिल जोशी और उनकी टीम ने यह साबित कर दिया है कि अगर इरादे नेक हों और रास्ता सही चुना जाए, तो सामाजिक परिवर्तन संभव है। यह केवल समिति की नहीं, बल्कि सम्पूर्ण उत्तराखंड की कहानी है – एक नई शुरुआत की।

  • शुभकामनाएं और सम्मान – चार वर्षों पर प्रमुख हस्तियों की प्रतिक्रियाएं:

  • अवतार सिंह बिष्ट, संवाददाता, शैल ग्लोबल टाइम्सहिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, अध्यक्ष – उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद: “समिति की ईमानदारी और जनसेवा का जज़्बा प्रेरणादायक है। चार वर्षों में इसने जो कार्य किए हैं, वे राज्य निर्माण आंदोलन की भावना को जीवित रखते हैं।”

  • राजकुमार ठुकराल, पूर्व विधायक: “समिति ने बिना किसी स्वार्थ के जिस तरह से युवाओं को रोजगार और गांवों को नया जीवन देने का प्रयास किया है, वह सराहनीय है।”

  • राजेश शुक्ला, पूर्व विधायक: “समिति का संघर्ष और उसकी जनसंपर्क शैली वास्तव में लोगों के दिलों तक पहुँची है।”

  • तिलकराज बहेड़, विधायक, किच्छा: “किच्छा से शुरू हुआ यह आंदोलन आज पूरे उत्तराखंड की आवाज बन गया है। अनिल जोशी जी को मैं व्यक्तिगत बधाई देता हूँ।”

  • सचिन शुक्ला, अध्यक्ष, नगला नगर पालिका परिषद: “समिति की हर योजना में जनभागीदारी और पारदर्शिता रही है, जो सराहनीय है।”

  • अरविंद पांडे, विधायक, गदरपुर एवं पूर्व शिक्षा मंत्री: “समिति का कार्यशैली शिक्षित युवाओं को गांवों से जोड़ने की प्रेरणा देती है।”

  • सौरभ बहुगुणा, कैबिनेट मंत्री, उत्तराखंड सरकार: “सरकार को ऐसे संगठनों के साथ मिलकर राज्य के दूरस्थ क्षेत्रों में कार्य करना चाहिए।”

  • पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड: “देवभूमि पलायन एवं बेरोजगारी उन्मूलन समिति का कार्य राज्य के आत्मनिर्भर उत्तराखंड निर्माण में महत्वपूर्ण है। मैं समिति को शुभकामनाएं देता हूँ।”

  • राम सिंह केड़ा, विधायक, भीमताल: “समिति ने जिस समर्पण से कार्य किया है, वह हम सभी जनप्रतिनिधियों के लिए अनुकरणीय है।”

  • रितु खंडूरी, विधानसभा अध्यक्ष, उत्तराखंड: “यह समिति जनआंदोलन का जीवंत उदाहरण है। मैं इसकी चार वर्षों की यात्रा को नमन करती हूँ।”

  • शिव अरोड़ा, विधायक, रुद्रपुर: “समिति ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में जो भूमिका निभाई है, वह इतिहास में दर्ज होगी।”

  • डॉ. धन सिंह रावत, शिक्षा मंत्री, उत्तराखंड: “समिति शिक्षा और रोजगार दोनों क्षेत्रों में बेहतरीन कार्य कर रही है।”

  • यशपाल आर्य, नेता प्रतिपक्ष, उत्तराखंड: “समिति ने मुद्दों पर गंभीरता से काम किया है और यह बात प्रशंसा के योग्य है।”

भुवन कापड़ी, खटीमा विधायक एवं उप नेता प्रतिपक्ष: “समिति ने प्रदेश के युवाओं को नई दिशा दी है। मैं इसकी टीम को शुभकामनाएं देता हूँ।”

  • देवभूमि पलायन एवं बेरोजगारी उन्मूलन समिति, जो उत्तराखंड में पलायन और बेरोजगारी की समस्याओं के समाधान हेतु सक्रिय है, ने किच्छा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक प्रेरणादायक पहल की है। समिति के अध्यक्ष अनिल जोशी के नेतृत्व में संगठन ने मशरूम उत्पादन का कार्य प्रारंभ किया है, जिससे न केवल स्थानीय युवाओं को स्वरोजगार के अवसर मिल रहे हैं, बल्कि उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण भी प्रदान किया जा रहा है।यह परियोजना समिति द्वारा चलाए जा रहे रोजगारोन्मुखी अभियानों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। किच्छा के ग्रामीण क्षेत्रों में समिति ने आधुनिक तकनीकों के माध्यम से मशरूम की खेती सिखाई, जिससे कम लागत में अधिक लाभ संभव हो सके। अब तक दर्जनों युवाओं और महिलाओं को इस कार्य में प्रशिक्षित किया जा चुका है, जो अब स्वयं उत्पादन कर रहे हैं या बाजार से जुड़कर आय अर्जित कर रहे हैं।

    समिति का उद्देश्य है कि पहाड़ी और मैदानी दोनों क्षेत्रों में लोगों को स्वरोजगार की ओर प्रेरित कर उन्हें अपने गांवों में ही आजीविका के साधन उपलब्ध कराए जाएं, जिससे पलायन रुके और आत्मनिर्भर उत्तराखंड का निर्माण हो।


Spread the love