ऐतिहासिक नामांकन या ऐतिहासिक भीड़? भारतीय जनता पार्टी समर्थित प्रत्याशी, समाजसेवी जसविंदर सिंह उर्फ बंटी खुराना का नामांकन

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जिला पंचायत चुनाव के तहत जिला पंचायत वार्ड-15 (दोपहरिया सीट) से भारतीय जनता पार्टी समर्थित प्रत्याशी, समाजसेवी जसविंदर सिंह उर्फ बंटी खुराना का नामांकन सचमुच ऐतिहासिक कहा जा सकता है। बरसात के बावजूद जिस तरह दोपहरिया सीट के अंतर्गत आने वाले गांवों के वोटर और समर्थक स्वयं के वाहनों से जिला पंचायत कार्यालय पहुंचे, वह दृश्य किसी बड़े राजनीतिक शक्ति-प्रदर्शन से कम नहीं था।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट

नामांकन में किच्छा के पूर्व विधायक श्री राजेश शुक्ला, कुलबीर सिंह ढिल्लों, मनदीप सिंह छाबड़ा, हरजीत सिंह, रंजीत सिंह, अमरजीत सिंह बब्बू, गुरदीप सिंह, गुरमीत सिंह बिंद्रा, कुलवंत सिंह, राजवीर सिंह, गुरविंदर सिंह, सुखविंदर सिंह, बलविंदर सिंह, हरप्रीत सिंह, और अनेक गणमान्य लोग मौजूद रहे। इन नेताओं और कार्यकर्ताओं ने बंटी खुराना के नामांकन को न केवल समर्थन दिया, बल्कि भारी उत्साह के साथ इसे शक्ति-प्रदर्शन का रूप भी दे डाला।

पूर्व विधायक राजेश शुक्ला, जो किच्छा विधानसभा से विधायक रह चुके हैं और जिनका गांव खुद क्षेत्र में राजनीतिक दृष्टि से खासा महत्व रखता है, ने बंटी खुराना के समर्थन में खुलकर प्रशंसा की। उन्होंने इस भीड़ को “जनता का स्नेह और भरोसे का प्रतीक” बताया। राजेश शुक्ला का कहना था कि बंटी खुराना लंबे समय से समाजसेवा में सक्रिय हैं और उनका नामांकन जनता की उम्मीदों का प्रतिनिधित्व करता है।

सच कहा जाए तो जिस तरह बारिश में भी समर्थकों का हुजूम उमड़ा, सैकड़ों वाहन जिला पंचायत परिसर में आ खड़े हुए, और नारेबाजी के बीच बंटी खुराना का नामांकन हुआ — वह नजारा न केवल प्रत्याशी के प्रति लोकप्रियता का संकेत था, बल्कि राजनीतिक समीकरणों को भी एक नया मोड़ देने वाला लग रहा था।

यह भीड़ केवल भीड़ थी या आने वाले चुनाव की तस्वीर? यह सवाल अब हर राजनीतिक विश्लेषक के मन में घूम रहा है। भीड़ का मतलब हमेशा वोटों में तब्दील होना नहीं होता, मगर इतनी बड़ी संख्या में लोगों का स्वेच्छा से आना, विशेषकर बरसात के मौसम में, अपने आप में राजनीतिक संकेतक है। यह संदेश देता है कि दोपहरिया सीट पर मुकाबला एकतरफा नहीं रहने वाला। बंटी खुराना के लिए यह एक मजबूत मनोबल जरूर है।

हालांकि, यह भी सच है कि राजनीति में अंतिम फैसला मतदान केंद्र पर ही होता है। भीड़ कभी-कभी “प्रबंधन” का हिस्सा होती है, मगर यहाँ कई लोगों की यह टिप्पणी थी कि समर्थक बिना किसी दबाव के, खुद के साधनों से पहुंचे। ऐसे में इस भीड़ को यूँ ही नजरअंदाज करना राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के लिए जोखिम भरा हो सकता है।

राजेश शुक्ला ने ठीक ही कहा कि बंटी खुराना का यह नामांकन और जनता का जोश, आने वाले चुनाव में एक “ऐतिहासिक जीत” की ओर संकेत कर रहा है। लेकिन सियासत की बिसात पर यह भीड़ वाकई जीत में बदल पाएगी या नहीं, यह तो आने वाला वक्त और मतपेटियां ही तय करेंगी।

फिलहाल, इतना तो तय है कि बंटी खुराना के नामांकन ने जिला पंचायत चुनाव को एक नया रोमांच जरूर दे दिया है।


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