
उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहाँ की हवा में एक सुकून और पहाड़ों की फिजाओं में एक आदरभाव घुला होता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह शांति बार-बार खलल में तब्दील होती रही है। ताजा मामला प्रेमनगर थाना क्षेत्र का है, जहाँ हरियाणा और पटना से पढ़ने आए तीन छात्रों को हुड़दंग मचाने पर गिरफ्तार किया गया। तेज आवाज़ में गाने बजाते, सड़क पर उत्पात मचाते इन छात्रों की कार सीज कर दी गई और पीजी संचालक पर भी 10 हजार का जुर्माना लगाया गया, जिसने इन युवकों का सत्यापन नहीं कराया था।
संवाददाता,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/ अवतार सिंह बिष्ट/उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी!
यह कोई इकलौती घटना नहीं है। यदि उत्तराखंड पुलिस रिकॉर्ड पर नज़र डालें तो साफ दिखता है कि बीते पांच सालों में देहरादून, ऋषिकेश, मसूरी और नैनीताल जैसे पर्यटक स्थलों पर हुड़दंग के मामलों में हरियाणा से आए युवाओं का नाम बार-बार सामने आया है। 2019 से 2024 तक सिर्फ देहरादून पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार, हुड़दंग, सड़क पर स्टंट, सार्वजनिक स्थानों पर शराबखोरी, लड़ाई-झगड़े या तेज रफ्तार ड्राइविंग के करीब 410 से अधिक मामलों में हरियाणा के युवाओं पर कार्रवाई की गई। इनमें से अकेले देहरादून ज़िले में ही करीब 275 केस दर्ज हुए।
इन मामलों में कार और बाइक सीज होने की घटनाएँ भी कम नहीं। कई बार पुलिस को ऐसे युवकों का पीछा करना पड़ता है, जो हाईवे पर या सिटी में 100-120 की स्पीड से गाड़ियाँ दौड़ाते हैं। इनके वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते हैं, जिससे राज्य की छवि भी धूमिल होती है।


हरियाणा के युवाओं का नाम क्यों बार-बार इन मामलों में आता है, यह सोचने की बात है। एक बड़ा कारण है “युवाओं की एडवेंचर की भूख” जो अक्सर बेलगाम रूप ले लेती है। दूसरे, छोटे शहरों और कस्बों के युवा जब देहरादून जैसे शिक्षण हब में आते हैं, तो उन्हें अचानक एक नई आज़ादी का अनुभव होता है, जिसके परिणामस्वरूप वे अनुशासन भुला बैठते हैं।
यह सही है कि हरियाणा के सभी युवा ऐसे नहीं हैं। पढ़ाई, खेल, सिविल सेवाओं और व्यवसाय में हरियाणा के युवाओं ने अपनी मेहनत से नाम कमाया है। लेकिन एक छोटा वर्ग, जो नशे, स्टंट और “दिखावा संस्कृति” में फंसा है, वह पूरे राज्य की छवि पर बट्टा लगा देता है।
देहरादून पुलिस ने हाल में “ड्रग्स फ्री कैंपस अभियान” शुरू किया है, जिसके तहत विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में विशेष निगरानी रखी जा रही है। प्रेमनगर की घटना इसी अभियान की सतर्कता का नतीजा कही जा सकती है। लेकिन सच्चाई यह है कि सिर्फ पुलिस कार्रवाई से समस्या हल नहीं होगी। विश्वविद्यालयों को सख्ती से हॉस्टल और पीजी सत्यापन कराना चाहिए। पीजी संचालकों को भी जिम्मेदार ठहराना जरूरी है, जैसा कि हालिया मामले में किया गया।
उत्तराखंड पर्यटन राज्य है। यदि ऐसी घटनाएँ नहीं थमीं, तो पर्यटक, निवेशक और यहाँ पढ़ने आने वाले दूसरे राज्यों के विद्यार्थी असहज महसूस करेंगे। यह सिर्फ कानून-व्यवस्था का मसला नहीं, बल्कि राज्य की छवि का प्रश्न भी है।
समय आ गया है कि हरियाणा, पंजाब, दिल्ली समेत पड़ोसी राज्यों के युवा समझें कि उत्तराखंड उनकी मौज-मस्ती का अड्डा नहीं, बल्कि एक देवभूमि है, जहाँ उनकी भी जिम्मेदारी है कि वह राज्य की शांति, कानून और संस्कृति का सम्मान करें।
क्योंकि आखिर में, हुड़दंग किसी राज्य विशेष का कलंक नहीं, बल्कि उस पूरे युवा वर्ग की जिम्मेदारी है, जो अपनी आज़ादी को अनुशासन में रखना नहीं सीख पाया है। उत्तराखंड को बचाना है तो ऐसे हुड़दंगियों पर कठोर कार्रवाई ही एकमात्र रास्ता है।

