
उत्तराखंड की जनता को सुशासन का भरोसा दिलाने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने फिर एक बड़ा कदम उठाया है। सीएम हेल्पलाइन 1905 की समीक्षा बैठक में उनकी नाराजगी इस बात का प्रमाण है कि शिकायत निवारण में अब सिर्फ आंकड़ों की बाजीगरी नहीं चलेगी। छह-छह माह तक लंबित रहने वाली शिकायतें किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं हैं। मुख्यमंत्री का यह कहना कि शिकायतों का नो पेंडेंसी के आधार पर त्वरित निस्तारण हो, सराहनीय है।
मुख्यमंत्री ने तहसील दिवस और थाना दिवस को एक ही दिन पूरे राज्य में आयोजित करने का निर्देश देकर प्रशासनिक मशीनरी को एक कसौटी पर खड़ा कर दिया है। यह कदम निश्चित तौर पर जनता और अफसरों के बीच दूरी को कम करेगा। लेकिन असली चुनौती वहां खड़ी होती है जहां शिकायतें बंद तो कर दी जाती हैं, पर समाधान धरातल पर नजर नहीं आता। सिर्फ कागजी कार्रवाई से जनता का भरोसा नहीं जीता जा सकता।
सरकारी विभागों में परिवहन, कृषि, समाज कल्याण, आबकारी और ऊर्जा विभाग की सराहना भले ही हुई है, पर लोक निर्माण, राजस्व, गृह और वित्त विभागों को लेकर मुख्यमंत्री की तल्खी बताती है कि ये विभाग अक्सर शिकायतों के दलदल में उलझे रहते हैं। यही वे विभाग हैं जिन पर आम आदमी का सीधा असर पड़ता है, और जहां भ्रष्टाचार की सबसे अधिक शिकायतें आती हैं।


मुख्यमंत्री का यह कहना कि शिकायतें अनावश्यक रूप से बंद न हों, और नकारात्मक फीडबैक पर सख्त कार्रवाई हो, सही दिशा में उठाया गया कदम है। लेकिन यह तभी सफल होगा जब जिलाधिकारी से लेकर विभागीय अधिकारी तक, सभी जिम्मेदार अफसर इस अभियान को अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी मानें।
जनता दर्शन, तहसील दिवस, थाना दिवस, अतिक्रमण हटाओ और सत्यापन अभियान—ये सब महत्वपूर्ण मंच हैं, लेकिन इनका असर तब ही दिखेगा जब जनता की आवाज को केवल सुना न जाए, बल्कि उसे समाधान की परिणति तक पहुँचाया जाए।
यह समय है कि अफसरशाही सिर्फ बैठक और प्रेस विज्ञप्तियों तक सीमित न रहे। मुख्यमंत्री की चेतावनी साफ है: लापरवाही पर कार्रवाई होगी। उत्तराखंड की जनता इसी कार्रवाई को होते देखना चाहती है।
— अवतार सिंह बिष्ट
संवाददाता, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स

