ज्योतिष शास्त्र में नवग्रह के बारे में बताया गया है। इनमें से 7 ग्रह तो ब्रह्मांड में दिखाई देते हैं लेकिन 2 ग्रह अदृश्य हैं यानी दिखाई नहीं देते। इसलिए इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है।

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ये 2 ग्रह हैं राहु-केतु। राहु-केतु को अशुभ ग्रह माना जाता है क्योंकि इनका स्वभाव बहुत क्रूर होता है। 18 मई को राहु मीन से निकलकर कुंभ में और केतु कन्या से निकलकर सिंह राशि में प्रवेश कर जाएगा। राहु-केतु के राशि परिवर्तन का असर सभी राशि के लोगों पर दिखाई देगा। धर्म ग्रंथों के अनुसार, राहु-केतु एक राक्षस के शरीर के 2 टुकड़े हैं। आगे जानिए एक राक्षस कैसे हुआ अमर और कैसे बना राहु-केतु…

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

समुद्र से कैसे निकला अमृत कलश?

धर्म ग्रंथों के अनुसार, जब देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उसमें से अनेक रत्न निकले। सबसे अंत में भगवान धन्वंतरि हाथ में अमृत कलश लेकर निकले। अमृत कलश को पाने के लिए देवता और दानवों में युद्ध होने लगा। ये युद्ध कईं सालों तक चलता है। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लेकर कहा कि ‘मैं देवता और दानवों को बारी-बारी से अमृत पिलाऊंगी। दोनों ने उनकी ये बात मान ली।

किस राक्षस ने छल से पी लिया अमृत?

मोहिनी रूपी भगवान विष्णु देवताओं और दानवों को बारी-बारी से अमृत पिलाने लगी। लेकिन वास्तव में मोहिनी सिर्फ देवताओं को ही अमृत पिला रही थी, ये बात स्वरभानु नाम के एक दैत्य ने जान ली और रूप बदलकर वह देवताओं के बीच में जाकर बैठ गया। जैसे ही स्वरभानु ने अमृत पिया, वैसे ही सूर्य और चंद्र देव ने उसे पहचान लिया।

कैसे एक राक्षस बन गया राहु-केतु?

जब मोहिनी रूपी भगवान विष्णु को ये बात पता चली तो अपने असली स्वरूप में आकर उन्होंने स्वरभानु का मस्तक काट दिया। लेकिन अमृत पीने की वजह से स्वरभानु की मृत्यु नहीं हुई और वह दो हिस्सों में बंट गय। स्वरभानु का मुख राहु और धड़ केतु कहलाया। बाद में भगवान विष्णु ने उसे नवग्रहों में स्थान दिया। इस तरह एक दानव को ग्रहों का पद मिल गया।


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