
अभी सावन महीना चल रहा है। इस महीने लोग पूरी श्रद्धा से शिव की पूजा करते हैं। इस महीने शिव के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। शिव अपने अनेक रूपों में श्मशान के देवता भी हैं। वे गृहस्थ हैं, लेकिन श्मशान में निवास करते हैं। आखिर ऐसा क्यों है कि शिव श्मशान में निवास करते हैं? इसके जरिए वे दुनिया को क्या संदेश देना चाहते हैं? आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जो आपके मन में आए होंगे।


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
सनातन धर्म में भगवान शिव को सबसे रहस्यमयी देवता माना जाता है। उनकी वेशभूषा ब्रह्मदेव और भगवान विष्णु से बिल्कुल अलग है। शिव पुराण के अनुसार गृहस्थ शिव के परिवार में माता पार्वती, भगवान गणेश, कार्तिकेय जी और नंदी शामिल हैं। गृहस्थ होते हुए भी उनका स्वरूप बिल्कुल विपरीत है। वहीं, कैलाशपति इसलिए कहलाते हैं क्योंकि वे अपने परिवार के साथ कैलाश पर रहते हैं। वहीं, श्मशान के देवता भी कहलाते हैं क्योंकि वे श्मशान के एकांत में रहते हैं। वे महंगे वस्त्रों और आभूषणों की जगह वीत की राख धारण करते हैं।
सांसारिक होते हुए भी शिव श्मशान में क्यों रहते हैं?
सबसे पहले यह समझते हैं कि भगवान शिव श्मशान में क्यों रहते हैं? शिव को आमतौर पर परिवार का देवता कहा जाता है। इसलिए, अधिकांश गृहस्थ अपने पूजा कक्ष में शिव परिवार की मूर्ति या चित्र रखते हैं। लेकिन, सांसारिक होते हुए भी वे श्मशान में रहते हैं। दरअसल, पूरा संसार या आपका परिवार मोह और माया का प्रतीक है। वहीं, श्मशान को वैराग्य का प्रतीक माना जाता है। अगर आप किसी के अंतिम संस्कार में शामिल होने श्मशान गए हैं, तो आपने सोचा होगा कि यह जीवन भर की भागदौड़ का अंत है। सनातन धर्म में इस विचार को क्षणिक वैराग्य कहा जाता है। भगवान शिव के श्मशान में रहने के पीछे हर प्राणी के जीवन प्रबंधन का सूत्र छिपा है।
श्मशान में रहने के पीछे छिपा है जीवन का मंत्र
भगवान शिव का गृहस्थ होते हुए भी श्मशान में रहना यह बताता है कि हर व्यक्ति को संसार में रहते हुए अपने सभी कर्तव्यों का पूरी निष्ठा से पालन करना चाहिए। लेकिन, इसके लिए मोह और माया में बंधे रहना जरूरी नहीं है। सरल शब्दों में शिव का यह स्वरूप सिखाता है कि जीवन में सबकुछ करते हुए भी मन और आत्मा से वैराग्य रखना चाहिए। यह संसार नश्वर है। इसलिए आपके जीवन में मौजूद हर चीज एक दिन नष्ट हो जाएगी। इसलिए संसार में रहते हुए भी किसी से मोह नहीं रखना चाहिए। व्यक्ति को किसी भी सुख या वस्तु से मोह नहीं रखना चाहिए। इसमें एक और सीख छिपी है कि व्यक्ति को अच्छी-बुरी परिस्थितियों में संतुलन बनाकर रहना चाहिए।
श्मशान में रहने के पीछे क्या है धार्मिक मान्यता
शिव के श्मशान में रहने को लेकर एक धार्मिक मान्यता भी है। दरअसल, सनातन धर्म में शिव को सृष्टि का संहारक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, यह सृष्टि बनती और नष्ट होती रहती है। भगवान ब्रह्मा सृष्टि का निर्माण करते हैं। भगवान विष्णु सृष्टि का पालन करते हैं। कलियुग के अंत में भगवान शिव सृष्टि का संहार करते हैं। हम सभी जानते हैं कि श्मशान में जीवन समाप्त हो जाता है। वहां सबकुछ राख हो जाता है। इसीलिए शिव ऐसे स्थान पर निवास करते हैं, जहां मानव शरीर, उस शरीर से जुड़े सभी रिश्ते, हर लगाव और सभी तरह के बंधन समाप्त हो जाते हैं। जीवों की मृत्यु के बाद आत्मा शिव में विलीन हो जाती है। इसीलिए शिव श्मशान में निवास करते हैं और श्मशान के देवता कहलाते हैं।
महादेव चिता की भस्म ही क्यों लगाते हैं?
क्या आपने कभी सोचा है कि महादेव अपने शरीर पर भस्म ही क्यों लगाते हैं? वो भी किसी लकड़ी की राख नहीं, बल्कि चिता की भस्म ही क्यों लगाते हैं? धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव को मृत्यु का देवता माना जाता है। उनके अनुसार शरीर नश्वर है और एक दिन जलकर राख हो जाएगा। भगवान शिव जीवन के इस पड़ाव का सम्मान करते हैं। वे अपने शरीर पर भस्म लगाकर इस सम्मान को व्यक्त करते हैं। इससे हमें यह संदेश भी मिलता है कि हमें इस शरीर पर घमंड नहीं करना चाहिए। सुंदर से सुंदर व्यक्ति भी मरने के बाद भस्म हो जाएगा। वहीं शिव भस्म लगाकर शरीर की पवित्रता का सम्मान करते हैं। मान्यता है कि शव को जलाने के बाद शरीर का दुख, सुख, बुराई और अच्छाई सब भस्म हो जाते हैं। इसलिए शिव चिता की राख को पवित्र मानते हैं और उसे धारण करते हैं।
भस्म लगाकर भगवान शिव क्या संदेश दे रहे हैं?
अघोरी, सन्यासी और कई साधु अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं। क्या इसके पीछे कोई विज्ञान है? दरअसल, भस्म हमारे शरीर के रोमछिद्रों को बंद कर देती है। शरीर पर भस्म लगाने से गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी नहीं लगती। इस तरह भस्म धारण करने वाले शिव यह संदेश भी देते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढाल लेना सबसे बड़ा पुण्य है। वहीं, एक कथा यह भी प्रचलित है कि जब भगवान शिव और माता सती को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया गया तो सती ने क्रोध में आकर खुद को अग्नि में समर्पित कर दिया, तब भगवान शिव उनके शव को लेकर धरती से लेकर आकाश तक हर जगह घूमते रहे। भगवान शिव की यह हालत विष्णु जी से देखी नहीं गई और उन्होंने माता सती के शव को छूकर भस्म कर दिया। इसके बाद शिव जी ने माता सती को याद किया और उसी भस्म को अपने शरीर पर लगा लिया।

