
दशकों तक भारत रूसी हथियारों का सबसे बड़ा आयातक रहा है। कई प्रकार के हथियार अब भी वहीं से आते हैं, पर भारत अब अपनी उत्पादन क्षमताएं भी तेज़ी से बढ़ा रहा है। यूक्रेन के खिलाफ रूस के लंबा खिंचते युद्ध से उत्पन्न भू-राजनीतिक बदलाव इस विकास को गति प्रदान कर रहा है।


रूस पर निर्भरता घटी : हथियारों के मामले में रूस पर भारत की निर्भरता लगभग 50 प्रतिशत तक कम हो गई है। रूस-यूक्रेन युद्ध को इस कमी का एक प्रमुख कारण माना जाता है। रूस अब भारत की रणनीतिक योजनाओं का निर्विवाद भविष्य नहीं रहा। भारत सरकार रक्षा उत्पादन में विविधता लाने पर अधिक ज़ोर दे रही है: रूस के अलावा, अमेरिका, इसराइल, फ्रांस और धीरे-धीरे जर्मनी भी इसमें भूमिका निभा रहे हैं।
रूस लंबे समय से भारत का मुख्य सैन्य साझेदार रहा है। लड़ाकू विमान, टैंक, पनडुब्बियां – यानी भारतीय सेना की रीढ़ – दशकों से उसी पर निर्भर रही है। लेकिन, यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से इस एकतरफा निर्भरता के अवांछित परिणाम भी उजागर होने लगे। कई वस्तुओं के आने में विलंब होने लगे या उनके ऑर्रडर रद्द कर देने पड़े। भारत ने अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करना शुरू कर दिया, और अब वह अपनी क्षमताओं के विस्तार में भारी निवेश करने लगा है।
आर्थिक और भू-राजनीतिक लक्ष्य : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपना ‘मेक इन इंडिया’ अभियान शुरू किया था। इस अभियान ने लेकिन 2022 से एक नई गति पकड़ी है, विशेषकर रक्षा उद्योग के क्षेत्र में। तेजस लड़ाकू विमान, अर्जुन युद्धक टैंक और स्थानीय स्तर पर निर्मित गोला-बारूद : भारतीय कारखाने अब पूरी क्षमता से काम कर रहे हैं।
निर्यात भी बढ़ रहा है – 2029 तक पांच अरब डॉलर से अधिक हो जाने का अनुमान है। भारतीय रक्षा-सामग्री के निर्यात का 50 प्रतिशत पहले से ही अमेरिका जाता रहा है; देखना है कि अमेरिका के सनकी राष्ट्रपति डॉनल्ड द्वारा छेड़ा गया ‘टैरिफ़ युद्ध’ अब क्या रंग लाता है। अन्यथा तो संकेत यही बताये जाते हैं कि ‘भारत वैश्विक रक्षा उत्पादन आपूर्ति श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।’

