
नेपाल में हालिया हिंसक घटनाओं ने एक बार फिर पड़ोसी देश के असली चेहरे को सामने ला दिया है। दून और गाजियाबाद में ट्रांसपोर्ट का कारोबार करने वाले रामबीर सिंह गोला अपनी पत्नी राजेश गोला के साथ कुछ दिन सुकून से बिताने काठमांडू गए थे। लेकिन, उनके जीवन की सबसे भीषण त्रासदी वहीं घात लगाए बैठी थी। जिस होटल में वे ठहरे थे, उसके बाहर अचानक उपद्रवियों ने हिंसा और आगजनी शुरू कर दी। अफरा-तफरी मच गई, लोग जान बचाने के लिए भागने लगे और इस भगदड़ में चौथी मंजिल से गिरकर राजेश गोला की दर्दनाक मौत हो गई।


।✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
पत्नी का शव अस्पताल में देखकर रामबीर बुरी तरह टूट गए। वे बार-बार यही कह रहे थे कि मंगलवार की रात पत्नी डिनर के समय बेहद खुश थी, लेकिन अब उनकी जिंदगी में सिर्फ यादें बची हैं। दुख की बात यह है कि पत्नी की मौत के बाद भी उनका संघर्ष खत्म नहीं हुआ। शव को भारत लाने के लिए वे लगातार कोशिश कर रहे हैं, लेकिन नेपाल दूतावास ने भी तत्काल मदद करने से इनकार कर दिया।
यह सवाल खड़ा करता है कि आखिर नेपाल सरकार और वहां का प्रशासन भारतीय नागरिकों के साथ ऐसा अमानवीय रवैया क्यों अपना रहा है? एक तरफ हिंसा के दौरान भारतीयों के शोरूम और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को लूटा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर संवेदनशील परिस्थितियों में भी दूतावास की चुप्पी और ठंडा रुख गहरी चिंता पैदा करता है।
दून में बसे मगर समाज के महासचिव रवि राना मगर ने भी स्पष्ट कहा कि नेपाली उपद्रवियों के हाथों भारतीयों को निशाना बनाया जा रहा है और उनके कारोबार को लूटपाट का शिकार बनाया जा रहा है। सवाल यह है कि पड़ोसी देश, जो भारत की मित्रता और सहयोग से हमेशा लाभ उठाता रहा है, वहां भारतीयों के लिए इतनी नफरत और दुश्मनी क्यों दिखाई जा रही है?
यह समय भारत सरकार और कूटनीतिक तंत्र के लिए चेतावनी है। अगर नेपाल में भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जाती और ऐसे अमानवीय व्यवहार पर लगाम नहीं लगाई जाती तो यह केवल व्यक्तिगत त्रासदियों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि दोनों देशों के रिश्तों पर स्थायी धब्बा छोड़ जाएगा।

