
रुद्रपुर। सोशल मीडिया पर इन दिनों एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें एक व्यक्ति के सामने पाँच फनों वाला सांप दिखाई दे रहा है। वीडियो में उपस्थित लोग उसे “शेषनाग” बताकर नमन कर रहे हैं। लोग श्रद्धा और विस्मय दोनों में डूबे हैं। इस वीडियो को लेकर दावे अनेक हैं, परंतु स्थान की पुष्टि अब तक नहीं हो सकी है।

धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख
हमारे पुराणों और शास्त्रों में शेषनाग का विशेष वर्णन मिलता है — कहा गया है कि भगवान विष्णु स्वयं शेषनाग की शय्या पर क्षीरसागर में विश्राम करते हैं। शेषनाग के “पाँच या सात फन” होने का उल्लेख विष्णु पुराण और भागवत पुराण में मिलता है। यही कारण है कि जब भी ऐसा कोई दृश्य या वीडियो सामने आता है, लोग उसे दैवीय चमत्कार मानकर नतमस्तक हो जाते हैं।
वीडियो की हकीकत या भ्रम?
हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स ने इस वायरल वीडियो की जाँच की तो पता चला कि यह किसी ग्रामीण क्षेत्र का दृश्य प्रतीत होता है। वीडियो में सांप के पाँच फन एक साथ दिखते हैं, लेकिन वीडियो की गुणवत्ता कम है, जिससे स्पष्ट रूप से कुछ कहना कठिन है। विशेषज्ञों का मानना है कि कई बार कैमरे के कोण, प्रकाश और गति के कारण एक ही फन की परछाईं कई बार दिखाई दे सकती है, जिससे पाँच फन होने का भ्रम उत्पन्न होता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, सांपों में पॉलीसेफली (Polycephaly) नामक एक दुर्लभ जैविक स्थिति होती है, जिसमें किसी जीव का सिर दो या अधिक बन जाता है। ऐसे मामलों में “दो सिर वाले सांप” तो कई बार देखे गए हैं, पर “पाँच सिर या फन” वाला मामला वैज्ञानिक रूप से अब तक प्रमाणित नहीं हुआ है।
आस्था बनाम यथार्थ
भारत में नाग पूजन का गहरा सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध है। नाग पंचमी से लेकर शिव पूजा तक, नागों को शक्ति, रक्षा और ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। इसलिए जब भी पाँच फनों वाला सांप जैसा दृश्य सामने आता है, तो जनता उसे ईश्वरीय संकेत मानने लगती है। लेकिन यह भी सच है कि आज के दौर में सोशल मीडिया पर कई “एडिटेड” वीडियो भी चलाए जाते हैं, जिससे सच और झूठ की पहचान मुश्किल हो जाती है।
हमारी राय
हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स का मानना है कि —
आस्था रखना गलत नहीं है, परंतु बिना प्रमाण के किसी भी वायरल वीडियो को “दैवीय घटना” बताना उचित नहीं। यह संभव है कि यह वीडियो वास्तविक भी हो, और यह भी कि यह तकनीकी भ्रम या वीडियो एडिटिंग का परिणाम हो।
हमें न तो अपनी श्रद्धा खोनी चाहिए, न ही सत्य की खोज से मुँह मोड़ना चाहिए।
अंत में।यदि यह दृश्य वास्तविक है तो यह प्रकृति का दुर्लभ चमत्कार है, और यदि भ्रम है, तो यह हमें सिखाता है कि आस्था और विज्ञान को साथ लेकर चलना ही सच्ची समझदारी है।
अब सवाल आपसे —
आप क्या मानते हैं?
क्या यह सचमुच “शेषनाग” का दर्शन है, या तकनीकी युग का एक भ्रम?
अपनी राय हमें भेजें —
📧 editor@hindustanglobaltimes.com
(यह रिपोर्ट सोशल मीडिया पर प्रसारित वीडियो पर आधारित है। स्थान की पुष्टि नहीं की जा सकी है। पाठकों से अनुरोध है कि इसे अंधविश्वास की दृष्टि से न देखें, बल्कि विवेक के साथ समझें।)




