क्या यह हत्या सामान्य क्राइम है या सामुदायिक आतंक का ट्रेलर? संपादकीय: रोहित नेगी हत्याकांड – क्या अब भी उत्तराखंड शांत राज्य कहलाने लायक बचा है? लेखक: अवतार सिंह बिष्ट, विशेष संवाददाता, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स

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देहरादून के डीबीआईटी कॉलेज चौक पर हुई छात्र रोहित नेगी की निर्मम गोलीकांड हत्या न केवल एक युवा की जान का अंत है, बल्कि उत्तराखंड की उस शांति और सौहार्द्र की भी सीधी हत्या है, जिस पर हम वर्षों से गर्व करते रहे हैं। खुलेआम गोली चलाकर एक छात्र को मौत के घाट उतार देना कोई सामान्य अपराध नहीं, यह एक सुनियोजित, आतंकवादी सोच से प्रेरित और सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाला कृत्य है।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट

यह एक ‘नशे का जहर’ और ‘हथियारों के आतंक’ से पनपते उपद्रवियों का आतंक था, जिसमें गोली भी चली, और भरोसा भी टूटा — उस सिस्टम पर भरोसा जो ‘शांति की भूमि’ का प्रहरी कहलाता है।


शहर की सड़कों पर उबालता युवा आक्रोश

बुधवार शाम जब झाझरा, सुद्धोवाला, भाऊवाला, तिलवाड़ी और डूंगा जैसे गांवों से हजारों युवा डीबीआईटी कॉलेज चौक पर इकट्ठा हुए और “रोहित नेगी के हत्यारों का एनकाउंटर करो” जैसे नारों से देहरादून की फिज़ा गूंज उठी, तो यह केवल गुस्से की नहीं, व्यवस्था के प्रति गहन अविश्वास की भी आवाज़ थी।

एसएसपी अजय सिंह ने मौके पर पहुंचकर कार्रवाई का आश्वासन तो दिया, लेकिन सवाल है—कब तक उत्तराखंड के युवा आश्वासनों पर भरोसा करते रहेंगे? कब तक कोई रोहित नेगी गोली का शिकार बनेगा और पुलिस केवल ‘सख्त कार्रवाई’ के बयान देकर लौट आएगी?


क्या यह हत्या सामान्य क्राइम है या सामुदायिक आतंक का ट्रेलर?

जिस तरह से खुलेआम रोहित नेगी को गोली मार दी गई, और जिस तरह से आरोपियों का बैकग्राउंड नशे के व्यापार, स्थानीय दादागीरी और बाहरी नेटवर्क से जुड़ा बताया जा रहा है, उससे यह सवाल पैदा होता है कि क्या यह महज एक आपसी रंजिश थी, या उत्तराखंड को अस्थिर करने की गहरी साजिश?

एक हिंदू युवक की हत्या, एक विशेष वर्ग के युवकों द्वारा, और वह भी कॉलेज क्षेत्र के पास — यह घटना उत्तराखंड की साम्प्रदायिक संरचना को झकझोरने के लिए काफी है। यदि इसे आतंकवादी घटना न माना जाए, तो और क्या माना जाए?


उत्तराखंड की युवा नसों में चढ़ता आक्रोश

सहदेव पुंडीर जैसे जनप्रतिनिधि भी घटना स्थल पर पहुंचे, लेकिन यह भी ध्यान देना होगा कि यह केवल राजनीतिक उपस्थिति नहीं, जनाक्रोश की तीव्र चेतावनी है। यदि सरकार और पुलिस ने समय रहते आरोपी को पकड़ा नहीं, तो ये आंदोलन केवल एक धरना नहीं, बल्कि एक जनविद्रोह का रूप ले सकता है।

उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) की चेतावनी भी गौर करने लायक है कि यदि कार्रवाई नहीं हुई तो राज्यव्यापी उग्र आंदोलन होगा। सवाल उठता है कि आखिर हम कब तक “संवेदनाएं व्यक्त करने” और “जांच के आदेश देने” की रट लगाए रहेंगे?


अब नारा नहीं, बुलडोजर चाहिए!

इस मामले में पहली और सबसे निर्णायक कार्रवाई होनी चाहिए – बुलडोजर कार्रवाई। रोहित नेगी के हत्यारों के अवैध निर्माण हों, नशे की दुकानें हों, हॉस्टल हों, या ठिकाने – सब पर सीधी कार्रवाई हो। जैसा उत्तर प्रदेश में माफियाओं के खिलाफ होता है, वैसा ही उत्तराखंड को भी अपनाना होगा।

यह ‘बुलडोजर न्याय’ केवल कार्रवाई नहीं, एक प्रतीक है — यह संदेश देता है कि राज्य की भूमि पर कोई अपराधी बेखौफ नहीं घूम सकता।


प्रशासनिक ढिलाई और नीति की विफलता

एसएसपी अजय सिंह ने अब क्षेत्रीय हॉस्टलों का सत्यापन, रात 10:30 बजे दुकानों का बंद होना और छात्रों की रात में आवाजाही पर रोक की बात कही है। लेकिन यह ‘घटना के बाद की पुलिसिंग’ है। असली चुनौती है ‘घटना से पहले की खुफिया विफलता’।

क्यों नहीं पहले पता चला कि क्षेत्र में नशा और अपराधियों का गठजोड़ पनप रहा है? क्यों प्रशासन और खुफिया तंत्र समय रहते सक्रिय नहीं हुआ?


क्या देहरादून अब नशे के तस्करों और हत्यारों की राजधानी बनती जा रही है?

प्रेमनगर, सहसपुर, नेहरू कॉलोनी, रायपुर — लगभग हर क्षेत्र में नशे और अपराधियों का नेटवर्क पनप रहा है। स्कूल-कॉलेज जाने वाले बच्चे तक अब ‘नशे के नेटवर्क’ से जूझ रहे हैं। यह उत्तराखंड नहीं, किसी गिरोहशाही राज्य की तस्वीर लगती है।


शहीदों के राज्य में गोली से मारे जा रहे हैं युवा

उत्तराखंड वो राज्य है जो अपने बेटों को देश की सीमाओं पर लड़ने के लिए भेजता है, लेकिन आज उन्हीं जवानों की संतानों को अपने ही शहर में गोली मारकर मारा जा रहा है। इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता है?


अब ‘शांतिप्रिय’ उत्तराखंड नहीं, ‘भयमुक्त’ उत्तराखंड चाहिए

अब वक्त आ गया है कि उत्तराखंड सरकार को ‘शांतिप्रिय’ छवि के मोह से निकलकर ‘भयमुक्त और न्यायप्रिय’ शासन की दिशा में निर्णायक कदम उठाने होंगे। हर हत्यारे को सज़ा मिले, हर गैंगस्टर का मकान टूटे, और हर अपराधी को जेल की कालकोठरी में धकेला जाए।


रोहित नेगी को न्याय नहीं मिला तो आने वाला हर युवा असुरक्षित रहेगा

रोहित नेगी केवल एक छात्र नहीं था, वह उत्तराखंड की युवा आत्मा का प्रतिनिधि था। उसकी हत्या के बाद यदि हम फिर भी शांत बैठे रहे, तो अगली गोली किसी और रोहित की छाती चीर देगी। और तब शायद कोई एसएसपी या विधायक भी भरोसा दिलाने के लिए नहीं पहुंचेगा।


“बोलो बुलडोजर लाओ, न्याय की दीवार उठाओ।

हत्यारों को सजा दिलाओ, उत्तराखंड को भयमुक्त बनाओ!”



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