
इसे छूना आत्मिक रूप से समृद्ध होने का दुर्लभ अवसर माना जाता है। ये रस्सी भक्तों के लिए भगवान की कृपा प्राप्त करने का एक शक्तिशाली साधन है। इसे श्रद्धा से छूना या खींचना न केवल पापों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि जीवन में सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि भी लेकर आता है। जब कोई भक्त इस रस्सी को आस्था से पकड़ता है, तो उसका विश्वास और भक्ति और भी दृढ़ हो जाती है। यहां से आप इन रस्सियों के नाम जान सकते हैं। साथ ही हम आपको इनसे जुड़ी धार्मिक मान्यता और महत्व की जानकारी भी दे रहे हैं।


जगन्नाथ मंदिर की रस्सियों के नाम क्या हैं?
जैसे भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथों के विशिष्ट नाम होते हैं, वैसे ही इन रथों को खींचने वाली रस्सियों के भी खास और पवित्र नाम हैं। बता दें कि भगवान जगन्नाथ के 16 पहियों वाले नंदीघोष रथ की रस्सी को शंखचूड़ा नाड़ी कहा जाता है। बलभद्र के 14 पहियों वाले तालध्वज रथ की रस्सी को वासुकी नाम से जाना जाता है। सुभद्रा के 12 पहियों वाले पद्मध्वज रथ की रस्सी को स्वर्णचूड़ा नाड़ी कहा जाता है। इन रस्सियों का कार्य केवल रथों को खींचना भर नहीं है, बल्कि धार्मिक दृष्टि से ये अत्यंत शुभ और पवित्र मानी जाती हैं। प्रत्येक रस्सी भगवान की दिव्य शक्ति, ऊर्जा और आशीर्वाद की प्रतीक है, और इनका आध्यात्मिक महत्व रथ यात्रा की गरिमा को और भी बढ़ा देता है।
रथ की रस्सी को कौन छू सकता है?
जगन्नाथ रथ यात्रा की सबसे विशेष बात यह है कि रथ की रस्सी को हर श्रद्धालु छू सकता है – इसमें न तो कोई धर्म, जाति या वर्ग का भेद होता है और न ही कोई सीमित प्रवेश। जो भी भक्त आस्था और भक्ति भाव के साथ पुरी आता है, वह भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचने वाली रस्सी को पकड़ सकता है।
ऐसा माना जाता है कि रथ की रस्सी खींचना स्वयं भगवान जगन्नाथ की सेवा करने के समान है। यह एक अत्यंत पुण्यकारी कर्म है, जिससे भक्तों को विशेष आशीर्वाद और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है। इसी कारण हर वर्ष लाखों श्रद्धालु इस अद्वितीय अवसर का हिस्सा बनने के लिए पुरी पहुंचते हैं।
रथ की रस्सी को छूना और खींचना धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि जो भक्त श्रद्धा से इस रस्सी को छूता है, उसके पाप मिट जाते हैं और उसे भगवान जगन्नाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह कर्म आत्मा की शुद्धि का माध्यम बनता है और व्यक्ति मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।
भक्तों की भावना इतनी प्रबल होती है कि कई बार अत्यधिक भीड़ के कारण रस्सी तक पहुंचना भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है, फिर भी लोग हरसंभव प्रयास करते हैं ताकि इस पुण्य कर्म में भागीदार बन सकें। ऐसा भी कहा जाता है कि यदि कोई भक्त रथ की रस्सी को बिना छुए लौट जाए, तो उसकी यात्रा अधूरी मानी जाती है, और भगवान उसे फिर से बुलाते हैं, ताकि वह इस दिव्य अनुभूति को पूर्ण कर सके।

