चिन्यालीसौड़ से बड़ी खबर: आंदोलनकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले पर बनाई रणनीति, बड़े आंदोलन की चेतावनी? संपादकीय: आंदोलनकारियों का सम्मान और सुप्रीम कोर्ट की लड़ाईसंपादकीय: आंदोलनकारियों का सम्मान और सुप्रीम कोर्ट की लड़ाई

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चिन्यालीसौड़ से बड़ी खबर: आंदोलनकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले पर बनाई रणनीति, बड़े आंदोलन की चेतावनी

चिन्यालीसौड़, 21 सितम्बर 2025।
राज्य आंदोलनकारी सम्मान परिषद की एक अहम बैठक रविवार को नगर पालिका सभागार कक्ष में आयोजित की गई। बैठक में परिषद के पदाधिकारियों और आंदोलनकारियों ने लंबी चर्चा करते हुए साफ कहा कि आंदोलनकारियों के सम्मान और अधिकारों की अनदेखी अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

बैठक का मुख्य एजेंडा सर्वोच्च न्यायालय में लंबित उस याचिका पर रहा, जिसमें आरक्षण के विरोध से जुड़े मुद्दों पर सुनवाई चल रही है। परिषद ने कहा कि इस मामले में पहले ही माननीय नैनीताल उच्च न्यायालय से आंदोलनकारियों को न्याय मिल चुका है। अब सुप्रीम कोर्ट में ठोस रणनीति बनाकर आगे की लड़ाई लड़ी जाएगी।

परिषद ने यह भी निर्णय लिया कि आंदोलनकारियों के हक की रक्षा के लिए हर स्तर पर संघर्ष जारी रहेगा और यदि जरूरत पड़ी तो एक बड़ा जनांदोलन खड़ा किया जाएगा। वक्ताओं ने जोर देकर कहा कि उत्तराखंड राज्य निर्माण में बलिदान देने वाले आंदोलनकारियों की उपेक्षा किसी भी हाल में स्वीकार नहीं की जाएगी।

बैठक में परिषद अध्यक्ष बिजेन्द्र जगूड़ी, प्रवेश जगूड़ी, जयवीर सिंह चौहान, बलवीर सिंह चौहान, जगदीश प्रसाद, मुलायम सिंह, यशवंत सिंह बिष्ट, स्वरूप सिंह सहित अनेक आंदोलनकारी और सदस्य मौजूद रहे। सभी ने एक स्वर में कहा कि आंदोलनकारियों का सम्मान किसी कीमत पर आंचिलित नहीं होने दिया जाएगा और आवश्यकता पड़ी तो परिषद “सड़क से सदन” तक आंदोलन छेड़ने को पूरी तरह तैयार है।

संपादकीय: आंदोलनकारियों का सम्मान और सुप्रीम कोर्ट की लड़ाई

21 सितम्बर को चिन्यालीसौड़ में आयोजित राज्य आंदोलनकारी सम्मान परिषद की बैठक केवल एक संगठनात्मक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह उस पीड़ा और चिंता की अभिव्यक्ति थी जो उत्तराखंड राज्य निर्माण में बलिदान देने वाले आंदोलनकारियों के भीतर वर्षों से पनप रही है।

बैठक का केंद्रबिंदु सर्वोच्च न्यायालय में लंबित वह याचिका रही, जिसमें आरक्षण से जुड़ा मुद्दा विचाराधीन है। परिषद का यह तर्क उचित है कि जब नैनीताल उच्च न्यायालय आंदोलनकारियों के पक्ष में फैसला दे चुका है, तब सर्वोच्च न्यायालय में भी न्याय मिलने की उम्मीद को मजबूत किया जाना चाहिए। यह केवल एक कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि आंदोलनकारियों के आत्मसम्मान और उनके बलिदान की पहचान की लड़ाई है।

राज्य निर्माण के पच्चीस वर्षों बाद भी आंदोलनकारियों की उपेक्षा, उनकी पीढ़ियों के प्रति असंवेदनशीलता और राजनीतिक उदासीनता इस बात का प्रमाण है कि व्यवस्था ने उनके योगदान को केवल प्रतीकों तक सीमित कर दिया है। यदि परिषद “सड़क से सदन” तक आंदोलन की बात कर रही है, तो यह सरकार के लिए चेतावनी है कि आंदोलनकारियों के धैर्य की परीक्षा अब और न ली जाए।

आवश्यक है कि सरकार और समाज दोनों यह स्वीकारें कि आंदोलनकारी केवल इतिहास के पन्नों की कहानी नहीं हैं, बल्कि वे वही शक्ति हैं जिनकी बदौलत यह राज्य अस्तित्व में आया। उनके सम्मान पर आंच आना पूरे उत्तराखंड के स्वाभिमान पर चोट होगी।

अब समय है कि राज्य आंदोलनकारियों के हितों की रक्षा के लिए ठोस नीतिगत कदम उठाए जाएँ और उन्हें न्याय मिले। अन्यथा इतिहास एक बार फिर गवाह बनेगा कि जिनके बलिदान से उत्तराखंड बना, उन्हें ही न्याय के लिए फिर सड़क पर उतरना पड़ा।

इस बैठक ने स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले दिनों में राज्य आंदोलनकारी सम्मान परिषद सरकार और व्यवस्था के सामने बड़ा मोर्चा खोल सकती है।



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