
दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने सूझबूझ, अथक प्रयास और खुफिया जानकारी के जरिए इस अपराधी को रोहिणी से गिरफ्तार कर लिया.


एक खौफनाक दोपहर जिसने झकझोर दी थी दिल्ली
28 फरवरी 2002 करोल बाग से 25 लाख रुपये लेकर लौट रहे मोहन लाल बंसल की कार को आनंद पर्वत के पास चार हथियारबंद हमलावरों ने घेर लिया. गोलियां चलीं. बंसल की मौके पर ही मौत हो गई. कार और नकदी लेकर आरोपी फरार हो गए. यह कोई आम लूट नहीं थी, यह था दिल्ली के सबसे खतरनाक गिरोह की खूनी दस्तक. मुख्य आरोपी मुकेश उर्फ गुज्जर तब से पुलिस की नज़रों से ओझल था. इस खौफनाक वारदात की आग 16 साल बाद भी बुझी नहीं थी और अब उसी आग ने अपराधी को जला डाला.
कभी अखाड़े से निकला था पहलवान, बन गया कातिल
उत्तर प्रदेश से आया एक किशोर, जो मंगोलपुरी के अखाड़ों में कुश्ती सीखने गया था, जल्द ही गैंगवार और रक्तपात के दलदल में उतर गया. 1992 में पहली हत्या की, इसी के साथ उसका अपराध की दुनिया से नाता जुड़ता चला गया. दिल्ली के जेबकतरों और जुआरियों से हफ्ता वसूली शुरू की, फिर हथियार उठा लिए. उसके गिरोह में शामिल थे संजीव, राकेश और विजय – चारों ने मिलकर सशस्त्र डकैतियों की एक काली दुनिया खड़ी की.
पुलिस मुठभेड़ और भागता न्याय
डकैती के कुछ ही दिनों बाद पुलिस ने घेराबंदी की. एक जबरदस्त मुठभेड़ में गिरोह का सरगना संजीव मारा गया. बाकी गिरफ्तार हुए. लेकिन मुकेश ट्रायल के दौरान भाग गया. कोर्ट ने उसे अपराधी घोषित कर दिया. इस बीच उसके दो साथी दोषी करार देकर उम्रकैद की सजा काट रहे हैं – और मुकेश, वह एक नई पहचान के साथ अपराध की दुनिया में फिर से सक्रिय हो गया.
कैसे हुई गिरफ्तारी?
हेड कांस्टेबल राजेश को खुफिया सूचना मिली कि मुकेश रोहिणी लॉकअप में अपने एक साथी से मिलने आ रहा है. इंस्पेक्टर पंकज ठाकरान की अगुआई और एसीपी नरेंद्र बेनीवाल की रणनीति के तहत एक हाई-प्रोफाइल टीम तैयार की गई. मुकेश पर 19 जघन्य मामलों का इतिहास है और अब वह इतिहास बनने वाला है. उसकी गिरफ्तारी भारतीय दंड संहिता और बीएनएसएस की धारा 35(3) के तहत की गई है. अब उससे जुड़े तमाम मामलों की परतें खुलेंगी.
