पिछले कुछ वर्षों से हिमालय क्षेत्र में वर्षा की मात्रा में आई कमी निरंतर बनी रहेगी । जलवायु परिवर्तन से मानसून का मिजाज बदल चुका है।


आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के वरिष्ठ वायुमंडलीय विज्ञानी डा नरेंद्र सिंह ने बताया कि बढ़ते तापमान के चलते मौसम पहले जैसा नहीं रहा, अब अनिश्चित हो चला है। जिसने वैश्विक जलवायु को प्रभावित किया है। यह परिवर्तन भविष्य में भी जारी रहेगा। इस वर्ष मार्च अप्रैल की गर्मी में तेजी के साथ अप्रत्याशित उछाल आया।
सप्ताहभर पहले मानसून की दस्तक
समय से पहले तापमान बढ़ने से मानसूनी वर्षा को प्रभावित करने की आशंका जताई जाने लगी थी। जिस कारण मानसून समय से करीब सप्ताहभर पहले दस्तक दे गया। हिमालय क्षेत्र में भी 10 से 15 जून के मध्य पहुंचने की संभावना बन गई है। इस बार मानसून की बारिश का स्वरूप बदला हुआ नजर आएगा।
फुहारों के साथ निरंतर बरसने वाला मानसून नजर नहीं आएगा, बल्कि थोड़ा समय भारी वर्षा कर कुछ दिन के लिए ब्रेक पर चला जाएगा। जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून का स्वभाव बदला चुका है। कहीं अधिक तेज वर्षा होगी तो कुछ स्थानों में सामान्य से बहुत कम होगी। कम समय में तेज बारिश से बाढ़ की संभावना अधिक रहेंगी। साथ ही इसकी समयावधि में भी परिवर्तन आ सकता है।
यानी मानसून अक्टूबर तक लंबा रह सकता और जल्द भी विदा हो सकता है। इसका बड़ा प्रभाव कृषि क्षेत्र में देखने को मिल सकता है। किसानों को मानसून की वर्षा के अनुसार ही खेती करनी होगी। साथ ही जल संसाधनों की उपलब्धता और प्रबंधन भी मानसून के नए स्वरूप को ध्यान में रखकर करना होगा। मानसून से जुड़े स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ सकती हैं। इसके लिए सभी को सावधानियां बरतनी होंगी।
हिमालय में क्षेत्र में वर्षा में बड़ा चिंता का विषय
नैनीताल: डा नरेंद्र सिंह ने बताया कि हिमालय क्षेत्र में वर्षा में निरंतर वर्षा की कमी बड़ी चिंता का विषय है। एरीज हिमालय वर्षा में शोध कर 2018 में रिपोर्ट प्रकाशित कर चुका है। वर्षा में कमी हिमालय क्षेत्र ही नहीं बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी आई है, जबकि कुछ हिस्सों में वृद्धि हुई है। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा में बदलाव आ रहा है।
नैनीताल में मानसून की बारिश का ग्राफ निरंतर गिरता जा रहा है। सिंचाई विभाग झील नियंत्रण कक्ष द्वारा प्राप्त पिछले 10 वर्ष मे जून 15 से 15 अक्टूबर के बीच हुई मानसूनी बारिश का आंकड़ा:
- 2024 – 1934 मिमी
- 2023 – 1668 मिमी
- 2022 – 1669 मिमी
- 2021 – 1497 मिमी
- 2020 – 1014 मिमी
- 2019 – 1039 मिमी
- 2018 – 1577 मिमी
- 2017 – 2388 मिमी
- 2016 – 2537 मिमी
- 2015 – 3131 मिमी

