नंदा देवी राजजात यात्रा : देवभूमि की आत्मा और चौसिंग्या खाडू का दिव्य रहस्य

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नंदा देवी राजजात यात्रा : देवभूमि की आत्मा और चौसिंग्या खाडू का दिव्य रहस्य

✧ लेखन : आध्यात्मिक संपादक ✧संवाददाता,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/ अवतार सिंह बिष्ट/उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी!


भूमिका : देवभूमि का आह्वान

जब हिमालय की बर्फीली चोटियाँ सूरज की पहली किरणों से सुनहरी हो उठती हैं, और घाटियों में घंटियों की मधुर ध्वनि गूंजने लगती है, तभी समझिए कि उत्तराखंड की आत्मा जाग उठी है। यह भूमि न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना है, बल्कि यहाँ की हर एक चोटी, हर एक नदी, हर एक वनखंड, देवताओं और लोक आस्थाओं की जीवंत गाथा है। इन्हीं आस्थाओं का शिखरबिंदु है — श्रीनंदा देवी राजजात यात्रा

नंदा देवी, उत्तराखंड की कुलदेवी, “हिमालय की बेटी,” लोक संस्कृति, श्रद्धा और मातृत्व का प्रतीक हैं। उनकी यात्रा में हिमालय की रहस्यमयता, लोक जीवन का उल्लास, और मनुष्य-प्रकृति-ईश्वर के बीच गहन तादात्म्य एक साथ दिखाई देता है।


नंदा देवी : हिमालय की कुलदेवी

नंदा देवी का उल्लेख पुराणों, लोककथाओं और ऐतिहासिक ग्रंथों में बार-बार मिलता है। वे शंकर भगवान की पुत्री कही जाती हैं। एक लोक मान्यता के अनुसार, नंदा देवी का विवाह कुमाऊँ के राजा से हुआ। विवाह के बाद वे अपने मायके (गढ़वाल) से ससुराल (कुमाऊँ) जाती हैं। नंदा देवी को विदा करने का ही प्रतीकात्मक रूप है नंदा देवी राजजात यात्रा

नंदा देवी शिखर (7816 मीटर), भारत की दूसरी सबसे ऊँची चोटी, भी देवी नंदा का ही प्रतीक माना जाता है। गढ़वाल और कुमाऊँ दोनों ही क्षेत्रों में नंदा देवी का वही स्थान है, जो किसी परिवार में कुलदेवी का होता है।


नंदा राजजात यात्रा : महाकुंभ की भांति

नंदा राजजात यात्रा को हिमालय का महाकुंभ कहा जाता है। यह हर 12 वर्ष में एक बार निकलती है। परंपरा है कि गढ़वाल नरेश या उनके प्रतिनिधि इस यात्रा की अगुवाई करते हैं। यात्रा का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक भी है। यह एक ऐसा अवसर है, जब गढ़वाल और कुमाऊँ के लोग अपनी भौगोलिक, भाषाई और सामाजिक भिन्नताओं से ऊपर उठकर एक हो जाते हैं।

यात्रा की कुल लंबाई करीब 280 किलोमीटर है। कठिन पर्वतीय रास्तों, ऊँचाई, वर्षा, और बर्फबारी के बावजूद, लाखों श्रद्धालु हर बार इस यात्रा में शामिल होते हैं।


यात्रा का प्रारंभ : बसंत पंचमी की प्रतीक्षा

यात्रा के लिए पहला अनुष्ठान मौडवी पूजा है। यह एक प्रकार का उद्घोष है कि अब देवी की यात्रा का समय निकट है। परंतु यात्रा की निश्चित तिथि बसंत पंचमी पर घोषित होती है। देवप्रवर्तन के लिए ग्रह-नक्षत्र देखे जाते हैं। इस वर्ष (2025) भी बसंत पंचमी पर ही घोषणा होनी है कि 2026 की राजजात कब निकलेगी।


चौसिंग्या खाडू : दिव्यता का प्रतीक

अब आते हैं उस रहस्यमय पात्र पर, जिसके बिना राजजात की कल्पना अधूरी है — चौसिंग्या खाडू।

“खाडू” गढ़वाली में मेंढे (मेढ़ा) को कहते हैं। राजजात यात्रा की अगुवाई एक विशेष मेंढा करता है, जिसके चार सींग होते हैं। इसे ही चौसिंग्या खाडू कहा जाता है।

चार सींगों वाले मेढ़े का जन्म अत्यंत दुर्लभ घटना है। यह न केवल जैविक चमत्कार है, बल्कि इसे देवी की विशेष कृपा और देव संकेत भी माना जाता है। जिस गाँव या परिवार में ऐसा मेढ़ा जन्म लेता है, उसे अत्यंत पुण्यशाली समझा जाता है।

कोटी गांव, चमोली जिले में हाल ही में ऐसा ही एक चार सींगों वाला मेढ़ा (करीब 5 माह का) हरीश लाल के यहाँ जन्मा है। लोग इसे आगामी नंदा राजजात यात्रा से जोड़कर देख रहे हैं। परंतु, जैसा कि श्रीनंदा देवी राजजात समिति के अध्यक्ष डॉ. राकेश कुंवर ने कहा — “वही मेंढा चुना जाएगा, जिसे देवी स्वयं चयनित करेंगी।” इसमें कोई व्यक्तिगत इच्छा नहीं चलती। निर्णय परंपरा और शास्त्रों से ही होता है।


चार सींग का प्रतीकात्मक अर्थ

चार सींगों वाला खाडू केवल जैविक विचित्रता नहीं। इसका गहरा आध्यात्मिक अर्थ है —

  1. चार दिशाएँ — पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण
  2. चार वेद — ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद
  3. चार युग — सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग
  4. चतुर्भुज शक्ति — देवी के चार भुजाओं का रूपक

इसलिए चौसिंग्या खाडू को देवी की साक्षात मूर्ति माना जाता है। यात्रा के दौरान उसे विशेष वस्त्र, आभूषण और घंटियों से सजाया जाता है।


280 किलोमीटर की यात्रा : पग-पग पर आस्था

यात्रा का आरंभ नंदा के मायके (नन्दप्रयाग, कुरुड़, या कर्णप्रयाग क्षेत्र से) होता है। यात्रा के प्रमुख पड़ावों में ये स्थान आते हैं:

  • कुरुड़
  • नौटी
  • कुलिंग
  • कोटी
  • वाण
  • पातर नचौनी
  • बग्ज्याल
  • रूपकुंड
  • होमकुंड

रूपकुंड (5029 मीटर) यात्रा का सबसे दुर्गम पड़ाव है। यहाँ की झील रहस्यमय कंकालों के लिए प्रसिद्ध है। लोक मान्यता है कि यह नंदा देवी की यात्रा के दौरान हुए किसी प्राचीन हादसे के कारण है।

रूपकुंड से आगे यात्रा होमकुंड पहुँचती है, जहाँ देवी की मूर्ति, चौसिंग्या खाडू, और अन्य पवित्र सामग्री को अंतिम बार पूजित किया जाता है। यहीं देवी को “वापसी की अनुमति” दी जाती है।


समाज और संस्कृति का संगम

नंदा राजजात केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता का महोत्सव है। इस यात्रा में सभी जाति, धर्म, आर्थिक वर्ग के लोग शामिल होते हैं। महिलाएँ, पुरुष, बच्चे, वृद्ध — सब एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं। यहाँ कोई भेद नहीं। यही इस यात्रा की सबसे बड़ी शक्ति है।

यात्रा के दौरान लोकनृत्य, लोकगान, ढोल-दमाऊ की थाप, और पारंपरिक वेशभूषा — सब मिलकर इसे एक जीवंत सांस्कृतिक उत्सव में बदल देते हैं।


राजनीतिक और प्रशासनिक महत्व

गढ़वाल नरेश के नाम पर यह यात्रा निकलती है। ऐतिहासिक काल में गढ़वाल राज्य के लिए नंदा देवी कुलदेवी थीं। इसलिए राजजात परंपरा राजशाही से जुड़ी रही। आज भी प्रशासन इस यात्रा को गंभीरता से लेता है, क्योंकि लाखों लोगों की उपस्थिति एक बड़े आयोजन को सफलतापूर्वक संचालित करने की चुनौती होती है।


आधुनिक संदर्भ

पिछली नंदा राजजात यात्रा 2014 में सम्पन्न हुई। अब अगली यात्रा 2026 में प्रस्तावित है। आधुनिक युग में यात्रा की चुनौतियाँ बदल गई हैं — जैसे मोबाइल नेटवर्क की दिक्कत, पर्यावरणीय दबाव, भीड़ प्रबंधन, और आपदा संभावनाएँ। लेकिन श्रद्धालुओं का उत्साह हर बार सरकार को इन चुनौतियों से पार पाने की ताकत देता है।


कोटी गांव का चौसिंग्या खाडू : एक नई आशा

कोटी गांव में जन्मे चार सींग वाले खाडू ने पूरे इलाके में उत्सुकता बढ़ा दी है। कोटी गांव न केवल नंदा राजजात का पड़ाव है, बल्कि यहाँ नंदा देवी का एक प्राचीन मंदिर भी है। लोग इसे देवी की विशेष कृपा मान रहे हैं।

बकरीपालक हरीश लाल और उनके बेटे गौरव का कहना है कि उन्होंने 20 साल में पहली बार ऐसा मेढ़ा देखा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि समिति इस खाडू को देवी यात्रा के लिए चुनती है या नहीं।


विज्ञान और आध्यात्म का संगम

चार सींग वाला खाडू विज्ञान के लिए एक अनोखी घटना है। इसे Polyceraty कहा जाता है, यानी एक ही सिर पर चार सींगों का होना। यह जीन के Mutations के कारण संभव है। परंतु उत्तराखंड में इसे केवल जैविकी की दृष्टि से नहीं देखा जाता — यह देवी की कृपा और आशीर्वाद का संकेत माना जाता है।


नंदा देवी और पर्यावरण चेतना

नंदा देवी क्षेत्र अब नंदा देवी बायोस्फियर रिजर्व के नाम से विश्व धरोहर है। नंदा राजजात यात्रा भी स्थानीय लोगों में पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी जगाती है। यात्रा के दौरान कई संगठनों द्वारा स्वच्छता अभियान, कचरा प्रबंधन, और जैव विविधता संरक्षण पर जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं।


आस्था और अध्यात्म का चरम

इस यात्रा में अद्भुत अनुभव होते हैं। लोगों के अनुसार कई बार ऐसा लगता है जैसे रास्ते में देवी स्वयं मौजूद हों। लोककथाओं में कई ऐसे किस्से हैं, जहाँ अदृश्य सहायता मिलने का अनुभव किया गया। जैसे कोई भारी बर्फबारी के बाद अचानक रास्ता साफ हो जाना, या किसी बीमार यात्री का अचानक स्वस्थ हो जाना। लोग इसे देवी की कृपा ही मानते हैं।

संवाददाता,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/ अवतार सिंह बिष्ट/उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी!


यात्रा का समापन : विदाई का करुण क्षण

यात्रा का अंतिम चरण होता है होमकुंड में देवी का विसर्जन। वहाँ देवी से आशीर्वाद मांगा जाता है कि वह अपने ससुराल (कुमाऊँ) में सुख-शांति से रहें और फिर बारह साल बाद मायके लौटें। लोग आंसू भरी आँखों से देवी को विदा करते हैं।


नंदा राजजात : एक आध्यात्मिक धरोहर

नंदा राजजात केवल एक परंपरा नहीं। यह हिमालय की आत्मा का उत्सव है। यह याद दिलाती है कि मनुष्य केवल भौतिक प्राणी नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना भी है। चौसिंग्या खाडू, जो कभी जन्म ही नहीं लेता, जब जन्म लेता है, तो वह पूरे समाज में उम्मीद, आस्था और चमत्कार की भावना भर देता है।

आज कोटी गाँव का खाडू फिर लोगों को वही विश्वास दे रहा है कि नंदा देवी स्वयं अपने भक्तों का मार्गदर्शन कर रही हैं

नंदा राजजात यात्रा का यही संदेश है —

“पर्वतों के शिखर तक पहुँचना मुश्किल है, पर मनुष्य की आस्था उन शिखरों से भी ऊँची है।”


अंतिम शब्द

अब जब 2026 की यात्रा निकट आ रही है, सभी श्रद्धालु, शोधकर्ता, लोक कलाकार, साधु-संत और आम जनता अपनी-अपनी तरह से तैयारी कर रही है। इस यात्रा में हर कोई शामिल होना चाहता है, क्योंकि यह केवल एक देवी यात्रा नहीं — यह देवभूमि उत्तराखंड की धड़कन है।

हो सकता है अगली यात्रा में कोटी गाँव का चार सींग वाला खाडू ही अगुआ बने। परंतु एक बात निश्चित है — नंदा देवी की कृपा से ही सब कुछ संभव है।



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