केदारनाथ की पंचमुखी डोली यात्रा 2025: आस्था, परंपरा और दिव्यता का महासंगम भूमिका!संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

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उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित श्री केदारनाथ धाम हिन्दू धर्म के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिसे भगवान शिव का सबसे पवित्र धाम माना जाता है। यह न केवल तीर्थाटन का केंद्र है बल्कि श्रद्धा, भक्ति और सनातन संस्कृति का जीवंत प्रतीक भी है। प्रत्येक वर्ष शीतकाल में जब भारी बर्फबारी के कारण मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं, तब भगवान केदारनाथ की पंचमुखी चलविग्रह डोली गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर, ऊखीमठ में प्रतिष्ठित की जाती है। गर्मियों के आगमन के साथ जब यात्रा पुनः आरंभ होती है, तब यह डोली विधिवत यात्रा कर पुनः केदारनाथ धाम पहुंचती है। वर्ष 2025 की यह यात्रा आस्था, परंपरा और दिव्यता से ओतप्रोत रही।

विश्वनाथ मंदिर से आरंभ
29 अप्रैल 2025 को श्री केदारनाथ जी की पंचमुखी डोली का शुभारंभ उत्तरकाशी जिले के प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर, गुप्तकाशी से हुआ। जयकारों की गूंज, घंटियों की मधुर ध्वनि और भक्तों की आंखों में आस्था की चमक इस दृश्य को अलौकिक बना रही थी। भक्तों ने पुष्पवर्षा की, पारंपरिक वाद्य यंत्रों की मधुर ध्वनि में शिव भक्ति के भजन गूंज रहे थे। डोली के साथ रावल, तीर्थ पुरोहित, मंदिर समिति के पदाधिकारी, स्थानीय प्रशासन और हजारों श्रद्धालु उपस्थित रहे।

फाटा पहला विश्राम स्थल
गुप्तकाशी से डोली फाटा के लिए रवाना हुई। पूरा मार्ग श्रद्धालुओं से भरा हुआ था। स्थानीय लोगों ने डोली का स्वागत जल, पुष्प और भोग से किया। फाटा में डोली का रात्रि विश्राम हुआ। यहाँ भव्य आरती का आयोजन हुआ, जिसमें स्थानीय ग्रामवासियों के साथ देश-विदेश से आए श्रद्धालुओं ने भाग लिया। डोली के दर्शनार्थ उमड़ी भीड़ ने यह सिद्ध कर दिया कि आस्था की शक्ति किसी भौगोलिक सीमाओं में बंधी नहीं होती।

गौरीकुंड की ओर प्रस्थान
30 अप्रैल को पंचमुखी डोली फाटा से गौरीकुंड के लिए प्रस्थान करती है। यह स्थान माँ पार्वती की तपोभूमि और गौरामाई मंदिर के कारण अत्यंत पवित्र माना जाता है। डोली जब इस पवित्र स्थल पर पहुंचती है तो वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर उठता है। यहां पारंपरिक पूजन के बाद रात्रि विश्राम किया जाता है। गौरामाई मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की गई। श्रद्धालु “जय बाबा केदार” के जयकारों के साथ अपने आराध्य की यात्रा के सहभागी बनते हैं।

केदारनाथ धाम की ओर आरोहण
1 मई को डोली यात्रा का अंतिम चरण आरंभ होता है जब पंचमुखी डोली गौरीकुंड से केदारनाथ धाम के लिए प्रस्थान करती है। कठिन हिमालयी चढ़ाई, ग्लेशियर, और चट्टानी मार्ग होने के बावजूद श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बनता है। यात्रा मार्ग में सुरक्षाबलों, स्थानीय स्वयंसेवकों और स्वास्थ्य विभाग की टीमें निरंतर सेवा में लगी रहती हैं।

2 मई: कपाट उद्घाटन का पावन क्षण
2 मई की सुबह 7:00 बजे श्री केदारनाथ मंदिर के कपाट विधिवत वैदिक मंत्रोच्चार और धार्मिक परंपराओं के साथ खोले गए। पंचमुखी डोली के धाम आगमन के बाद विशेष पूजा संपन्न हुई। रावल, मंदिर समिति और शासन-प्रशासन के उच्च अधिकारी उपस्थित रहे। सबसे पहले भगवान केदारनाथ को श्रृंगार, जलाभिषेक और भोग समर्पित किया गया। तत्पश्चात भक्तों के लिए प्रथम दर्शन की अनुमति दी गई। इस दौरान हजारों श्रद्धालु मंदिर परिसर में उपस्थित थे, जिनके चेहरे पर दिव्य संतोष और भावनात्मक उल्लास साफ झलक रहा था।

यात्रा का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रभाव
यह यात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है बल्कि स्थानीय संस्कृति, परंपरा और अर्थव्यवस्था से भी जुड़ी हुई है। डोली मार्ग पर लगे मेलों, भंडारों, हस्तशिल्प बाजारों और स्थानीय व्यंजनों ने न केवल यात्रियों को सेवा प्रदान की बल्कि स्थानीय रोजगार को भी प्रोत्साहित किया। स्कूलों, स्वयंसेवी संस्थाओं और महिला समूहों ने भी अपनी भूमिका निभाई। यह यात्रा सांस्कृतिक जागरण और सामाजिक समरसता का भी संदेश देती है।

श्रद्धा की अमिट छाप
पूरी यात्रा के दौरान कई ऐसे भावुक क्षण देखने को मिले जब वृद्ध, दिव्यांग और छोटे बच्चों ने भी बाबा के दर्शन हेतु कठिन यात्रा तय की। एक वृद्ध महिला जो 20 वर्षों से बाबा के दर्शन के लिए प्रतीक्षा कर रही थी, ने अपने अश्रुपूरित नेत्रों से कहा, “अब जीवन सफल हो गया।” ऐसे अनेक उदाहरण इस यात्रा को एक सामाजिक और आध्यात्मिक आंदोलन बना देते हैं।

समापन
श्री केदारनाथ की पंचमुखी डोली यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह सनातन संस्कृति के पुनर्जागरण की यात्रा है। यह यात्रा बताती है कि आधुनिकता के युग में भी परंपराएं जीवित हैं, और जन-जन के हृदय में भगवान शिव के प्रति अगाध श्रद्धा विद्यमान है। यह डोली यात्रा एक पवित्र संवाद है, जो देवता और भक्त के बीच आत्मिक संबंध को पुनर्स्थापित करती है।

केदारनाथ की पंचमुखी डोली यात्रा सनातन भारत की आध्यात्मिक चेतना का महोत्सव है, जो आने वाली पीढ़ियों को भी धर्म, आस्था और सेवा के पथ पर अग्रसर करती रहेगी।


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