शक्तिमान प्रकरण की पुनः सुनवाई, बढ़ती कोविड सख़्ती, बारिश-बिजली का कहर: उत्तराखंड में संकट और चेतावनी का दौर रिपोर्ट: अवतार सिंह बिष्ट, विशेष संवाददाता, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर

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एक घोड़े की चीख और न्याय की प्रतीक्षा
उत्तराखंड में न्यायिक प्रक्रियाएं कभी-कभी जीवंत स्मृतियों को पुनर्जीवित कर देती हैं। ऐसा ही मामला फिर से सुर्खियों में है — शक्तिमान नामक पुलिस घोड़े की मृत्यु से जुड़ा प्रकरण। वर्ष 2016 में भारतीय जनता पार्टी द्वारा कांग्रेस सरकार के विरुद्ध देहरादून में किये गए विधानसभा घेराव के दौरान शक्तिमान घायल हुआ था। उसके बाद इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई।

इस मामले में भाजपा के तत्कालीन विधायक और वर्तमान में धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी पर लाठी मारने का आरोप लगा था। पिथौरागढ़ निवासी होशियार सिंह बिष्ट की याचिका पर नैनीताल उच्च न्यायालय ने 2024 में सुनवाई पूरी कर ली थी, पर अब यह मामला न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की एकलपीठ में 9 जून से पुनः सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।

बिष्ट की याचिका में सवाल यह उठता है: क्या कोई भी आम नागरिक, यदि वह सीधे मामले में शिकायतकर्ता या गवाह न भी हो, तो क्या वह न्याय की माँग नहीं कर सकता? अगर न्याय सिर्फ प्राथमिकी दर्ज कराने वालों के ही लिए आरक्षित हो तो संविधान की आत्मा कहां बचेगी?


स्वास्थ्य प्रणाली की अग्निपरीक्षा: कोविड की वापसी का खतरा

जहां न्याय व्यवस्था बीते की परछाइयों से जूझ रही है, वहीं स्वास्थ्य विभाग भविष्य की आहट से डरा हुआ है। एशिया और भारत के कई राज्यों में कोविड के मामलों में फिर से वृद्धि हो रही है, मुंबई में दो मौतें हो चुकी हैं।

केंद्र सरकार के निर्देशों पर उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग ने सभी जिलों में कोविड सर्विलांस और जांच बढ़ा दी है। स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर राजेश कुमार के अनुसार, लक्षण आधारित स्क्रीनिंग, सभी अस्पतालों में सतर्कता, और आईडीएसपी टीमों को सक्रिय मोड में काम करने के निर्देश दिए गए हैं।

हालांकि अभी तक राज्य में कोविड का कोई नया मामला सामने नहीं आया है, लेकिन 13 जिलों के सीएमओ को सतर्कता बरतने का स्पष्ट संदेश गया है। यह एक शिक्षक के लिए सीख है कि महामारी चाहे बीत जाए, प्रत्येक संस्था को सतत सतर्क रहना ही चाहिए।


प्राकृतिक आपदा और मनुष्यता की परख

राज्य के कई हिस्सों में 21 मई से 27 मई तक मौसम विभाग ने ऑरेंज और येलो अलर्ट जारी किया है। तेज हवाएं, बिजली गिरना, ओलावृष्टि और भूस्खलन की आशंका जताई गई है।

  • 21 मई को: देहरादून, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, बागेश्वर, टिहरी — अधिक प्रभावित
  • 22 से 27 मई: चंपावत, पौड़ी, नैनीताल, बागेश्वर — येलो अलर्ट
  • चारधाम मार्गों पर विशेष चेतावनी जारी — पैदल यात्रियों को पत्थर गिरने और फिसलन से बचने के निर्देश

नैनीताल में डेढ़ घंटे की ओलावृष्टि, बिजली गुल, सड़कों पर बोल्डर। अल्मोड़ा-हल्द्वानी मार्ग पर गुजरात के पर्यटकों की कार पर बोल्डर गिरा — सौभाग्य से वे सुरक्षित बचे।

खटीमा के चकरपुर में बिजली गिरने से एक मकान का छज्जा क्षतिग्रस्त हुआ।

यह सब उत्तराखंड के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और तेज़ी से हो रहे अनियोजित विकास की भयावह तस्वीर प्रस्तुत करता है। शिक्षण संस्थानों में “आपदा प्रबंधन” और “जलवायु चेतना” को अब पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा।


चारधाम यात्रा के दौरान मृत्यु: स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा उजागर,20 मई को यमुनोत्री और फिर गंगोत्री की यात्रा पर निकले श्रद्धालु सी.पी. रमेश को सीने में दर्द की शिकायत हुई। उत्तरकाशी में उपचार के बाद ऋषिकेश AIIMS के लिए रेफर किया गया, लेकिन कंडीसौड़ के पास उनकी एम्बुलेंस में मृत्यु हो गई।

सवाल यह उठता है कि क्या चारधाम जैसे कठिन और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पर्याप्त चिकित्सा व्यवस्था है?

यह घटना बताती है कि जब तक उत्तराखंड की प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं पहाड़ों तक नहीं पहुँचेंगी, तब तक तीर्थयात्रा ‘आस्था’ नहीं बल्कि ‘जोखिम’ का नाम रहेगा।


सामाजिक और प्रशासनिक परिप्रेक्ष्य ,

उत्तराखंड आज कई मोर्चों पर संघर्ष कर रहा है — न्यायिक संवेदनशीलता, स्वास्थ्य सुरक्षा, मौसमीय आपदाएं और प्रशासनिक लापरवाही। शक्तिमान की मौत सिर्फ एक पशु की नहीं, एक प्रशासनिक संवेदनहीनता की बानगी थी। वहीं, कोविड और मौसमीय आपदाएं भविष्य के प्रति हमारी तैयारियों की पोल खोल रही हैं

एक शिक्षक, पत्रकार या प्रशासनिक अधिकारी के लिए यह समय है — जिम्मेदारी से सोचने का, ईमानदारी से लिखने का और पूरी पारदर्शिता से निर्णय लेने का। यह सिर्फ खबर नहीं, उत्तराखंड की कसौटी है — जहां संवेदना, सजगता और सतर्कता ही हमारा मार्गदर्शक बन सकती है।



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