हरिद्वार के प्रसिद्ध मनसा देवी मंदिर (Mansa Devi Temple) में हाल ही में भगदड़ की घटना सामने आई है, जिससे यह मंदिर एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है. यह मंदिर न केवल श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि देवी मनसा से जुड़ी पौराणिक और लोक मान्यताओं का भी प्रतीक है.

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देवी मनसा को आयुर्वेद और पुराणों में विषहरण की देवी और औषधियों की संरक्षक के रूप में माना जाता है. ऐसे में चलिए, देवी मनसा के इतिहास, कथाओं और महत्व के बारे में विस्तार से जानते हैं.

कौन हैं देवी मनसा? (Mansa Devi Temple)

हरिद्वार के पर्वतीय क्षेत्र में बसे इस मंदिर का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है. पर्वतीय जनजातियाँ देवी मनसा को वनदेवी और औषधियों की देवी के रूप में पूजती हैं. आयुर्वेद में विष को औषधि के रूप में उपयोग किए जाने की मान्यता है और इसी के आधार पर देवी मनसा को सभी प्रकार के विषों की संरक्षक देवी माना जाता है.

पौराणिक मान्यताएं: शिव की पुत्री के रूप में मनसा

विष्णु पुराण, शिव पुराण और महाभारत जैसे ग्रंथों में देवी मनसा को शिवजी की पुत्री के रूप में वर्णित किया गया है. एक कथा के अनुसार, अंधकासुर के उत्पात से क्रोधित शिवजी के मस्तक से गिरे पसीने की बूंद एक नाग माता द्वारा बनाई गई मूर्ति पर गिरी, जिससे वह मूर्ति सजीव हो उठी और मनसा नामक कन्या का जन्म हुआ. एक अन्य कथा में बताया गया है कि समुद्र मंथन के समय शिवजी ने जब विष पिया, तो उनके शरीर से निकली विषाक्त बूंदों को नाग पत्नियों ने ग्रहण किया, जिससे एक कन्या का जन्म हुआ—जो बाद में विषहरण की देवी के रूप में पूजी जाने लगीं.

क्या है महाभारत से जुड़ा मनसा देवी का रहस्य? (Mansa Devi Temple)

महाभारत में देवी मनसा को जरत्कारु के नाम से जाना जाता है. उनका विवाह ऋषि जरत्कारु से हुआ और उनके पुत्र आस्तीक ने राजा जन्मेजय द्वारा आयोजित सर्प यज्ञ को रोका था, जिसमें नागों का विनाश हो रहा था. इस यज्ञ का उद्देश्य परीक्षित की मौत का बदला लेना था, जिन्हें तक्षक नाग ने डंसा था. इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि देवी मनसा केवल नागों की देवी ही नहीं, बल्कि सृष्टि की रक्षा और संतुलन बनाए रखने वाली शक्ति भी हैं.

चांद सौदागर और सती बिहुला की कथा

बंगाल के प्रसिद्ध ‘मनसा मंगल काव्य’ में देवी मनसा की कथा चांद सौदागर नामक व्यापारी से जुड़ी है, जो केवल शिवजी की पूजा करता था. देवी मनसा ने अपनी पूजा न करवाने के चलते उसके पुत्रों को मार दिया. अंततः सती बिहुला, जो चांद सौदागर के सबसे छोटे पुत्र की पत्नी थी, अपने मृत पति के शव को नाव में लेकर स्वर्ग पहुंची और देवी-देवताओं को प्रसन्न कर अपने पति को जीवित करवा लाई. इस कथा का संदेश यही है कि पूजा किसी पर थोपी नहीं जा सकती, बल्कि यह आंतरिक श्रद्धा और विश्वास से उत्पन्न होती है.

देश के विभिन्न हिस्सों में देवी मनसा के मंदिर

देवी मनसा के मंदिर देश के विभिन्न हिस्सों में हैं, जैसे: हरिद्वार (उत्तराखंड), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), दिसपुर (असम), चंडीगढ़ और पंचकूला, मंडी (हिमाचल प्रदेश). इन मंदिरों में देवी को सर्पछत्र और सांपों के प्रतीक चिह्नों के साथ दर्शाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि ‘मनसा देवी’, ‘आस्तीक मुनि’ और ‘जरत्कारु’ का स्मरण करने से सर्पदंश का भय समाप्त होता है और विष का प्रभाव निष्क्रिय हो जाता है.

पौराणिक गौरव की छाया भी रहती है विराजमान

देवी मनसा केवल एक पौराणिक पात्र नहीं हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति में आस्था, प्रकृति, औषधि विज्ञान और सामाजिक चेतना का अद्भुत संगम हैं. उनकी पूजा में लोक और शास्त्र दोनों की गूंज सुनाई देती है. हरिद्वार स्थित उनका मंदिर इस विश्वास का केंद्र है, जहाँ श्रद्धा के साथ-साथ पौराणिक गौरव की छाया भी विराजमान रहती है.


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