
रुद्रपुर की गल्ला मंडी में रविवार रात प्रॉपर्टी विवाद ने दो जिंदगियों को लील लिया। दुकान पर कब्जे के लिए आए बदमाशों ने सुनियोजित तरीके से दुकान मालिक गुरमेज सिंह और उनके बेटे मनप्रीत सिंह को गोलियों से भून डाला। घटना ने न सिर्फ गल्ला मंडी, बल्कि पूरे शहर को हिलाकर रख दिया।
संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता
लेकिन अब असली सवाल यह है — गोलीबारी के बाद घायल आरोपी दिनेश सलूजा की टांग में गोली किसने मारी?


सोशल मीडिया पर उठ रहे सवाल:
पुलिस की निगरानी में अस्पताल में भर्ती मुख्य आरोपी दिनेश सलूजा के इलाज की तस्वीरें सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर जनता का गुस्सा फूट पड़ा। यूजर्स ने तीखे सवाल उठाए:
- क्या मरा हुआ आदमी भी गोली चला सकता है?
- निहत्थे मृतक ने हत्यारे को कैसे घायल कर दिया?
- फर्जी क्रॉस केस बनाने के लिए आरोपी ने खुद को गोली मारी?
- अगर गुरमेज सिंह के पास हथियार होते तो हत्यारे बच नहीं पाते। किसान जाट समाज से होने के बावजूद वे निहत्थे थे।
- पैसे से मीडिया और केस दोनों को खरीद लिया गया है?
कई यूजर्स ने मीडिया पर भी सवाल उठाते हुए चैनलों को ‘बिकाऊ’ करार दिया और मांग की कि मीडिया पीड़ित परिवार के दर्द को समझे, न कि व्यूज के लिए झूठी खबरें चलाए।
अब तक सामने आए तथ्य:
- मृतक गुरमेज सिंह ने जिस दुकान को बैंक नीलामी से खरीदा था, उसी पर कब्जे की कोशिश में हत्या हुई।
- आरोपी दिनेश सलूजा व अन्य ने कथित रूप से जेसीबी मंगवाकर दुकान तोड़ने की कोशिश की।
- गुरमेज सिंह और उनका बेटा मनप्रीत मौके पर पहुंचे तो उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग की गई।
- दोनों की मौके पर ही मौत हो गई। गुरमेज के एक अन्य बेटे हनी ने किसी तरह जान बचाई।
- आरोपी दिनेश सलूजा पुलिस हिरासत में घायल मिला, टांग में गोली लगी है।
- गोली किसने मारी — पुलिस, पीड़ित या खुद — इस पर अब तक पुलिस का कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
क्या कहता है CCTV फुटेज?
बताया जा रहा है कि कब्जे के दौरान की पूरी घटना CCTV में कैद है। पुलिस फुटेज की जांच कर रही है। लेकिन सोशल मीडिया पर आरोप हैं कि:
- गोलीबारी एकतरफा थी।
- गुरमेज सिंह और उनके बेटे निहत्थे थे।
- दिनेश सलूजा ने फर्जी बचाव का ड्रामा रचने के लिए खुद को घायल किया।
पुलिस की भूमिका और जनता का गुस्सा
SSP मणिकांत मिश्रा ने कहा कि आरोपियों की पहचान हो चुकी है और जल्द गिरफ्तारी सुनिश्चित की जाएगी। लेकिन अभी तक गोली के स्रोत पर कोई साफ जवाब नहीं दिया गया है।
इस चुप्पी ने जनता में यह भावना गहरा दी है कि कहीं न कहीं मामला दबाया जा रहा है। सिख समाज, व्यापारी वर्ग और आम लोग खुलकर कह रहे हैं कि:
- अब रुद्रपुर में कानून का नहीं, बल्कि गुंडों का राज है।
- अगर अपराधियों पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो जनता खुद सुरक्षा के कदम उठाएगी।
रुद्रपुर में जमीन कब्जों पर खून बहने की पुरानी घटनाएं:
- 2022 ट्रांजिट कैंप फायरिंग: जमीन विवाद में युवक की हत्या।
- 2023 आजाद नगर चाकूबाजी: मकान कब्जे के विवाद में एक की मौत।
- 2024 खेड़ा क्षेत्र संघर्ष: भूखंड विवाद में लाठी-डंडों से मारपीट।
इन घटनाओं से साफ है कि रुद्रपुर में जमीन विवाद अब सीधे जानलेवा झगड़ों में तब्दील हो रहे हैं, और प्रशासन का भय लगातार घट रहा है।
रुद्रपुर में पिता-पुत्र की निर्मम हत्या ने एक बार फिर पुलिस-प्रशासन और राजनीतिक व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
जब जनता सोशल मीडिया पर यह पूछने को मजबूर हो जाए कि —
“क्या मरा हुआ आदमी भी गोली मार सकता है?”
तो समझिए कि भरोसे की नींव हिल चुकी है।
अब देखना यह है कि पुलिस जांच इस हकीकत तक पहुँचती है या फिर एक और घटना दबा दी जाएगी।क्रमशः
यह क्राइम स्टोरी बहुत ही पेचीदा और रहस्यमय है, जिसमें एक दुकान विवाद से शुरू हुआ मामला अंततः दोहरे हत्याकांड में तब्दील हो गया। इसे एक थ्रिलर के अंदाज़ में रिपोर्ट करना न सिर्फ पत्रकारिता को नई धार देगा, बल्कि समाज के भीतर चल रहे उन अंधेरे गठजोड़ों की परतें भी खोलेगा, जो अक्सर नजर नहीं आते। नीचे विस्तृत रिपोर्ट और शीर्षक सहित प्रस्तुत है:
The Crime Story: गल्ला मंडी के खूनी सौदे का रहस्य – सलूजा बंधु, खून, और अदृश्य मास्टरमाइंड
रिपोर्टर: अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, उत्तराखंड
शहर की नींद टूटी उस रात, जब गल्ला मंडी के सीने में गोलियों की आवाज़ गूंजी। एक पिता और उसका जवान बेटा खून में लथपथ ज़मीन पर गिर चुके थे, और रुद्रपुर की हवा में खून की गंध तैर रही थी। पर सवाल यह है – क्या यह सिर्फ दुकान का झगड़ा था या इसके पीछे कोई साजिश की परतें छुपी थीं?
अध्याय 1: दुकान या मौत का सौदा?
गुरमेज सिंह, ईश्वर कॉलोनी के निवासी, ने पांच साल पहले सलूजा बंधुओं – अवधेश और दिनेश – से गल्ला मंडी की एक दुकान किराए पर ली थी। मामला तब गरमा गया जब सलूजा बंधुओं ने आर्थिक तंगी में दुकान को 50 लाख के लोन पर बैंक में गिरवी रख दिया। लोन नहीं चुका पाने के कारण दुकान नीलाम हो गई और बताया गया कि गुरमेज सिंह ने बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत से उसे मात्र 48 लाख में खरीद लिया।
लेकिन दुकान की असल कीमत थी करोड़ों में। साथ ही नजूल की भूमि पर भी वर्षों से सलूजा बंधुओं का कब्जा था। ऐसे में गुरमेज के नाम दुकान का होना, सलूजा बंधुओं के लिए अपमान से कम नहीं था – और शायद यह अपमान ही बना खून का कारण।
अध्याय 2: अदृश्य सौदे और बैकडोर की बातचीत
सूत्र बताते हैं कि सलूजा बंधुओं ने कई बार गुरमेज को दुकान लौटाने की पेशकश की – 48 लाख के ऊपर 20 से 25 लाख अतिरिक्त देने को भी तैयार हुए – लेकिन गुरमेज टस से मस नहीं हुए। इसी बीच, सलूजा बंधु शहर के नामी पूंजीपतियों से अपनी पुरानी दुकान और नजूल जमीन बेचने की फिराक में थे। पर अब वह संपत्ति उनके हाथ से जा चुकी थी।
यह भी बताया जा रहा है कि कुछ “रियल एस्टेट खिलाड़ियों” और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की नज़र उस जगह पर थी, जिसकी कीमत आज 10 से 12 करोड़ आंकी जा रही है। क्या वही लोग इस साजिश के अदृश्य सूत्रधार हैं?
अध्याय 3: खूनी रात – गोलियों की गूंज
बीती रात 2 बजे, सलूजा बंधु लगभग एक दर्जन लोगों के साथ जेसीबी लेकर दुकान की दीवार तोड़ने पहुंचे। जानकारी मिलते ही गुरमेज सिंह अपने बेटों के साथ मौके पर पहुंचे। और फिर – धांय… धांय… – गोलियों की आवाज़ आई, और गुरमेज व उनके बेटे मनप्रीत का जीवन समाप्त हो गया।
चौंकाने वाली बात यह रही कि इसी दौरान दिनेश सलूजा के पैर में भी गोली लग जाती है – पर सवाल यह है: खुद की चलाई या किसी और ने मारी? और क्यों?
अध्याय 4: पर्दे के पीछे के खिलाड़ी – कौन है असली मास्टरमाइंड?
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, सलूजा बंधु अकेले नहीं थे। उनके साथ एक दर्जन से अधिक लोग थे, जिनमें से कुछ की पहचान अपराधी प्रवृत्ति के लोगों के रूप में हुई है। अब पुलिस की जांच इस ओर है कि:
- हथियार किसने दिए?
- फायरिंग किसने की?
- सलूजा को गोली किसने मारी?
- निजी अस्पताल में रातोंरात भर्ती करवाने के पीछे कौन था?
क्या सलूजा बंधु सिर्फ मोहरे हैं? क्या कोई असली मास्टरमाइंड पर्दे के पीछे बैठा है, जो सलूजा बंधुओं के कंधे पर बंदूक रखकर गोली चलवा रहा था?
अध्याय 5: पुलिस की जांच – कब खुलेगा रहस्य?
पुलिस अब इस मामले की तह तक जाने के लिए मोबाइल कॉल डिटेल्स, सीसीटीवी फुटेज, और सर्विलांस तकनीक का सहारा ले रही है। सलूजा बंधुओं के पारिवारिक सदस्यों तक की जांच हो रही है। सूत्रों की मानें तो कल इस दोहरे हत्याकांड का प्रारंभिक खुलासा हो सकता है।
पर बड़ा सवाल अभी भी बरकरार है –
क्या यह दो हत्याएं किसी निजी रंजिश का परिणाम थीं, या एक सुनियोजित षड्यंत्र की नींव?
समापन: सच के इंतज़ार में शहर
रुद्रपुर का हर नागरिक इस वक्त सच्चाई जानना चाहता है। लोग पूछ रहे हैं:
- आखिर कौन हैं वे अज्ञात चेहरे जो मौके पर मौजूद थे?
- सलूजा बंधुओं को हथियार कहां से मिले?
- क्या किसी बड़े राजनीतिक या आर्थिक ताकतवर का इस मामले में हस्तक्षेप है?
शहर अब जवाब चाहता है। और यह कहानी खत्म नहीं हुई है – ये बस शुरुआत है उस अंधेरे की जो सिस्टम, लालच और अपराध की मिलीभगत से पनपता है।
