देवभूमि उत्तराखंड में सावन 16 जुलाई से: हरेला की हरियाली और शिवभक्ति की पुकार

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देवभूमि उत्तराखंड, जहाँ कण-कण में देवत्व की अनुभूति होती है, वहाँ सावन का महीना केवल एक ऋतु परिवर्तन का संकेत नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उल्लास और सांस्कृतिक सरोकारों का उत्सव है। इस वर्ष भले ही पंचांगानुसार 11 जुलाई से सावन मास प्रारंभ हो चुका हो, परन्तु उत्तराखंड में सौर गणना के अनुसार सावन का आगमन 16 जुलाई को सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश के साथ होगा। इसी दिन उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकपर्व हरेला का उत्सव भी धूमधाम से मनाया जाएगा।

संवाददाता,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/ अवतार सिंह बिष्ट/उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी!


हरेला : हरियाली का पर्व, सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक?हरेला केवल हरियाली का पर्व नहीं है, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक अस्मिता और प्रकृति-भक्ति का जीवंत प्रमाण है। इस पर्व पर हर परिवार अपने आँगन में गेहूँ, जौ, तिल, धान आदि के बीज रोपता है। दस दिनों में अंकुरित होकर जब नन्हे हरे पौधे निकलते हैं, तो उसे हरेला कहा जाता है। हरेला कटकर बड़े-बुजुर्गों द्वारा आशीर्वाद के रूप में घर के सदस्यों को दिए जाते हैं।

हरेला का तात्पर्य है – हरियाली और नवजीवन का संदेश। यह पर्व उत्तराखंड के वासियों को प्रकृति से प्रेम, वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। इस दिन हर घर में एक पौधा अवश्य लगाया जाता है। लोकगीत गाए जाते हैं –

“हरेला हर्याली क भ्याटा,

धरती आकाश सौं उज्याला।”

हरेला के साथ ही सावन मास में प्रकृति की हरियाली और आध्यात्मिकता का समन्वय दिखाई देता है। और देवभूमि उत्तराखंड में यह समन्वय और भी गहरा हो जाता है, क्योंकि यहाँ प्रकृति और देव एक ही सत्ता के दो रूप माने जाते हैं।


उत्तराखंड में सावन : क्यों है विशेष?सावन उत्तराखंड के लिए इसलिए भी विशेष है क्योंकि यहाँ की संस्कृति का केंद्र स्वयं शिव हैं। चाहे हिमालय की चोटियाँ हों, गुफाएँ हों, अथवा नदियों का उद्गम स्थल – हर जगह शिव के अस्तित्व की छाया मिलती है। उत्तराखंड की धरती ही “केदारखंड” और “मानसखंड” कहलाई जाती है, जहाँ आदि शंकराचार्य से लेकर लोक कवियों तक ने शिव को सर्वश्रेष्ठ आराध्य कहा।

उत्तराखंड के लिए शिव केवल देवता नहीं, बल्कि लोक-जीवन के अभिन्न अंग हैं। शिव ही यहाँ के पहाड़ों के स्वामी हैं, नदियों के प्रवाह में शिव का स्पंदन है। केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ जैसे पवित्र तीर्थस्थल सावन मास में विशेष धार्मिक महत्त्व रखते हैं।


सावन में उत्तराखंड के धार्मिक आयोजन?उत्तराखंड में 16 जुलाई से शुरू होने वाले सावन मास में विभिन्न धार्मिक गतिविधियाँ देखने को मिलेंगी, जैसे:

सोमवार व्रत एवं शिवाभिषेक

सावन में विशेषकर सोमवार के दिन व्रत रखकर शिवलिंग पर जल, दूध, घृत, दही, मधु, बेलपत्र, धतूरा और भस्म अर्पित की जाती है। ‘ऊँ नमः शिवाय’ का जाप करते हुए शिवलिंग का अभिषेक करने से विशेष पुण्य और मनोकामना पूर्ति का विश्वास है।

कांवड़ यात्रा,उत्तराखंड के विभिन्न जिलों से लोग गंगाजल लेकर पैदल यात्रा करते हुए स्थानीय शिवमंदिरों में अभिषेक करते हैं। यह कांवड़ यात्रा सावन में यहाँ की प्रमुख धार्मिक परंपरा है।

विशेष रुद्राभिषेक और महाशिव पुराण पाठ

कई मंदिरों में सावन के अवसर पर रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप और शिव पुराण का अखंड पाठ होता है।

झूलों और लोकगीतों की परंपरा
सावन में महिलाओं द्वारा झूले डाले जाते हैं। गीत गाए जाते हैं – “झूला पड़ग्या बदरीनाथ के द्वार…”। यह उत्सव भक्ति और उल्लास का सुंदर मिश्रण है।

हरेला के साथ वृक्षारोपण अभियान

हरेला के दिन राज्यभर में वृक्षारोपण अभियान चलाया जाता है। लोग इसे शिवभक्ति का हिस्सा मानते हैं, क्योंकि शिव को भी प्रकृति और वनस्पतियों का संरक्षक कहा गया है।


वैदिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से सावन का महत्व?वैदिक मान्यता के अनुसार श्रावण मास में सूर्य दक्षिणायन होते हैं, अर्थात देवताओं का रात्रिकाल प्रारंभ होता है। इस समय शिवजी ही समस्त ब्रह्मांड के पालनकर्ता माने जाते हैं। ब्रह्म पुराण, स्कंद पुराण और शिव पुराण में सावन मास को विशेष रूप से शिव पूजा के लिए श्रेष्ठ बताया गया है।

ज्योतिष के अनुसार, सावन में शिव पूजा से विशेष ग्रह दोष शांति होती है। सोमवार का व्रत चंद्रमा को बलवान करता है, जिससे मानसिक शांति और समृद्धि मिलती है। विवाह में बाधाएँ दूर होती हैं, रोग-शोक मिटते हैं।


उत्तराखंडवासियों के लिए शिव क्यों आराध्य?उत्तराखंडवासी शिव को क्यों आराध्य मानते हैं, इसका कारण है कि शिव ही हिमालय के अधिपति हैं। उनकी भव्यता, सरलता, औघड़ स्वरूप उत्तराखंड के पर्वतीय जीवन के अनुरूप हैं। यहाँ का प्रत्येक व्यक्ति शिव के समान सहनशील, सरल और सादगीपूर्ण जीवन को आदर्श मानता है।शिव का रूप यहाँ के पहाड़ों में बसता है। केदारनाथ शिव हैं, त्रिशूल पर्वत शिव का प्रतीक है, अलकनंदा-भागीरथी शिव की जटाओं से निकली नदियाँ हैं।

सावन का संदेश : प्रकृति और भक्ति का अद्भुत संगम?सावन देवभूमि उत्तराखंड में केवल पूजा-पाठ का महीना नहीं, बल्कि यह वह समय है जब प्रकृति अपने पूरे यौवन पर होती है। हरेला, वृक्षारोपण, लोकगीत, झूले और शिव आराधना – यह सब सावन को यहाँ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से अत्यंत समृद्ध बनाते हैं।

इस सावन, उत्तराखंडवासी न केवल शिव की आराधना करेंगे, बल्कि हरियाली और प्राकृतिक धरोहर को संजोने का भी संकल्प लेंगे। सच ही कहा गया है – “शिव में ही समस्त सृष्टि का आधार है, और उत्तराखंड उसी शिवत्व का जीवंत प्रतीक।”

कुमाऊं क्षेत्र के प्रमुख शिव मंदिर (शिव देवालय)

जागेश्वर धाम (अल्मोड़ा)प्राचीनतम शिव मंदिर समूह। यहाँ 124 छोटे-बड़े मंदिर हैं। “जागेश्वर ज्योतिर्लिंग” होने का भी दावा। बैजनाथ मंदिर (बागेश्वर ज़िला)

गोमती नदी किनारे स्थित। कत्यूरी राजाओं द्वारा 12वीं सदी में निर्मित। शिव-पार्वती की अद्भुत मूर्तियाँ। बागनाथ मंदिर (बागेश्वर)

सरयू-गोमती संगम पर स्थित। बागनाथ मेला प्रसिद्ध। शिवजी को “बागनाथ” रूप में पूजा जाता है। गोलू देवता मंदिर (चेतई, अल्मोड़ा)
यद्यपि गोलू देवता स्थानीय देवता हैं, परंतु यहाँ शिव की पूजा भी साथ होती है।चौकोड़ी शिव मंदिर (पिथौरागढ़)

शिव-पार्वती के मंदिर, मनोहारी हिमालय दृश्य।कटारमल सूर्य मंदिर (अल्मोड़ा)

सूर्य देवता को समर्पित, पर यहाँ भी शिव पूजा होती है।कालीनाग मंदिर (रानीखेत)
नागदेवता के साथ शिव पूजा।कौसानी शिव मंदिर (बिनसर महादेव)
शिव-पार्वती का मंदिर, अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य। रुद्रनाथ मंदिर (रानीखेत क्षेत्र)

शिव के रुद्र रूप को समर्पित।उत्तराखंड का कुमाऊं अंचल प्रकृति और देवताओं का आंगन है, जहाँ हरियाली को विशेष महत्व दिया जाता है। यहाँ सावन के आगमन पर हरेला पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है। हरेला का अर्थ ही हरियाली है। यह पर्व न केवल कृषि और प्रकृति के प्रति आभार है, बल्कि सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक भी है।एहरेला केवल प्रकृति का उत्सव नहीं, बल्कि शिवभक्ति से भी जुड़ा है। सावन मास शिव को समर्पित होता है, और उत्तराखंड के कण-कण में शिवत्व बसता है। जागेश्वर, बैजनाथ, बागनाथ जैसे शिवधामों में विशेष पूजन और हरियाली उत्सव का संगम देखने को मिलता है। हरेला का संदेश साफ है — प्रकृति को सहेजना ही असली धर्म है।

हरियाली में ही शिव का निवास है, और यही हरेला का सार है।




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