श्राद्ध एक ऐसा कर्म है जिसमें श्रद्धा निस्वार्थ भाव और समर्पण जरूरी है। यह सर्वोत्तम पुण्य कर्म है। अपने कर्मों के प्रायश्चित के लिए भी श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।श्राद्ध को पितृ पक्ष भी कहते हैं,इसमें पितरों के प्रति सम्मान दिया जाता है जो दिन रहता है।

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श्राद्ध कर्म श्रद्धा से कोई भी कर सकता है। आजकल बहुत गलत अवधारणा बन गई है कि सब लोग श्राद्ध नहीं कर सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। बड़ा या छोटा बेटा ही श्राद्ध कर सकता है, जिनके माता-पिता है वो श्राद्ध नहीं कर सकते, इन सब बातों को जानते है….

श्राद्ध कौन कौन कर सकता है जानें

श्राद्ध की महत्ता का उल्लेख महाभारत रामायण गरूड़ पुराण में मिलता है। रामायण में माता सीता और राम के द्वारा किये गए तर्पण का उल्लेख मिलता है तो महाभारत में भीष्म पितामह ने श्राद्ध की महत्ता का उल्लेख किया है।इसलिए श्राद्ध हर किसी को श्रद्धा से करना चाहिए।

अगर परिवार में पिता की मृत्यु होती है तो पुत्र को ही श्राद्ध का अधिकार होता है। किसी पिता के एक से अधिक बेटे हैं तो फिर बड़े बेटे को ही अंतिम संस्कार करना चाहिए।लेकिन अगर सारे बच्चे अलग ऱहते है तो सब कर सकते है।फिर भी यदि संयुक्त रूप से एक ही श्राद्ध करें तो वह अच्छा होता है।

अगर बड़ा बेटा नहीं है तो फिर छोटा बेटा श्राद्ध कर सकता है। अगर किसी के पुत्र नहीं है तो फिर उसका श्राद्ध पौत्र, प्रपौत्र, पत्नी, भाई, बेटी का पुत्र, भतीजा, पिता, मां, बहु, बहन और भांजा श्राद्ध कर सकते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार, अगर पितृ पक्ष में कोई नहीं है, तो फिर मातृ पक्ष का व्यक्ति श्राद्ध कर सकता है।

पिता का पिंडादान कर्म बेटे को ही करना चाहिए, लेकिन बेटा नहीं है तो पत्नी कर सकती है।. पत्नी नहीं है तो कोई सहोदर भाई कर सकता है।

जिनकी अविवाहित मृत्यु हुई हो श्राद्ध उसके सगे भाई कर सकते हैं और जिसके सगे भाई न हो, उसका श्राद्ध उसके दामाद या पुत्री के पुत्र (नाती) को और परिवार में कोई न होने पर उसने जिसे उत्तराधिकारी बनाया हो, वह व्यक्ति उसका श्राद्ध कर सकता है।

जिनके माता-पिता जीवित है उन्हे श्राद्ध नियम मानना चाहिए या नहीं

जिनके माता-पिता अभी जीवित हैं, क्या उन्हें भी श्राद्ध करना चाहिए? नहीं । हर किसी को अपने मृत पुर्वजों का ही श्राद्ध कर्म में नियमो का पालन करना चाहिए। जिनके माता पिता जीवित है वो माता पिता के कामों में सहयोग कर अपना कार्य कर सकते है, लेकिन अगर श्राद्ध के नियमों के पालन की बात है तो जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म करता है सिर्फ उसे ही नियम पालन करना चाहिए बाकी अपने जीवित माता पिता के रहते इन नियमों का पालन बच्चो को करना जरूरी नहीं है।

शास्त्रों में माता-पिता को ऊँचा स्थान मिला है। जब तक वे जीवित हैं, तब तक वे ही हमारे प्रत्यक्ष हैं। उनके रहते हुए पिंडदान या तर्पण के नियमों को मानना सही नहीं माना जाता, क्योंकि यह क्रिया केवल दिवंगत पूर्वजों के लिए होती है। जीवित माता-पिता को अन्न, वस्त्र और सेवा देना ही वास्तविक श्राद्ध है।

जिनके माता-पिता जीवित हैं, उन्हें अपने पितरों का आशीर्वाद उनके माध्यम से मिलता है। जीवित माता-पिता की सेवा, देखभाल और उनके प्रति सम्मान ही असली श्राद्ध होता है।

लेकिन, जिनके माता-पिता जीवित हैं, वे पूर्णत: श्राद्ध से दूर नहीं रहते। वे इस अवधि मे गाय, ब्राह्मण, साधु-संत और जरूरतमंदों को भोजन करा सकते हैं। दान-पुण्य कर सकते हैं, जैसे वस्त्र, अनाज, जल या धन का दान।लेकिन जिस तरह आपके माता-पिता अपने पूर्वजों के लिए नियमों का पालन करते है उतना मानना जरूरी नहीं होता है। श्राद्ध पक्ष का महत्व पूर्वजों को स्मरण और सम्मान देने से जुड़ा है। लेकिन जिनके माता-पिता जीवित हैं, उनके लिए सबसे बड़ा श्राद्ध अपने माता-पिता की सेवा, उनकी खुशहाली और संतोष है।

मान्यता हैं कि इन दिनों में पित्तर धरती पर आते हैं और आशीर्वाद देकर जाते हैं। ऐसे में समस्त पूर्वजों एवं मृत परिजनों का तर्पण किया जाता हैं। लेकिन पितरों के साथ ही उन्हें भी जल दिया जा सकता हैं, जिससे वो तृप्त होते है।

note- ये जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है, इसकी सत्यता की पुष्टि हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स नहीं करता है।


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