सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि किसी भी अदालत को ‘निचली अदालत’ कहना संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस एजी मसीह ने 1981 के एक हत्या मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए दो दोषियों को बरी करते हुए यह टिप्पणी की।

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कोर्ट को निचली अदालत कहने पर सुप्रीम कोर्ट नाराज

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह

पीठ के लिए फैसला लिखने वाले जस्टिस ओका ने कहा-‘फैसला सुनाने से पहले हम आठ फरवरी, 2024 के आदेश में दिए गए निर्देश को दोहराते हैं कि सुनवाई अदालत के रिकार्ड को निचली अदालत के रिकॉर्ड के रूप में संदर्भित नहीं किया जाना चाहिए। किसी भी अदालत को निचली अदालत के रूप में वर्णित करना हमारे संविधान के लोकाचार के खिलाफ है।’

पिछले वर्ष फरवरी में एक सर्कुलर जारी किया था

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने आदेश को प्रभावी बनाने के लिए पिछले वर्ष फरवरी में एक सर्कुलर जारी किया था। उन्होंने कहा कि हाई कोर्टों को निर्देश का संज्ञान लेना चाहिए और उसके अनुसार कार्य करना चाहिए।

पीठ का फैसला दो दोषियों की अपील पर आया, जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के अक्टूबर 2018 के फैसले को चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने हत्या के मामले में उनकी दोषसिद्धि और जेल की सजा को बरकरार रखा था।

आजीवन कारावास की सजा सुनाई

शीर्ष अदालत ने कहा कि मई 1981 में पुलिस ने तीन आरोपितों के खिलाफ एक व्यक्ति की हत्या और एक महिला को घायल करने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की थी। अक्टूबर 1982 में ट्रायल कोर्ट ने दो आरोपितों को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जबकि तीसरे आरोपित को बरी कर दिया। दोनों दोषियों ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

अभियोजन पक्ष ने निष्पक्ष जांच नहीं की

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने निष्पक्ष जांच नहीं की, क्योंकि उसने कुछ अभियोजन पक्ष के गवाहों के हलफनामों के रूप में महत्वपूर्ण सामग्री को दबा दिया।

पीठ ने कहा- ‘भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपित को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है। यहां तक कि पुलिस का भी यह दायित्व है कि वह निष्पक्ष जांच करे। यह निष्पक्षता का एक महत्वपूर्ण पहलू है।’


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