उत्तराखंड  हाईकोर्ट ने एक महिला अधिवक्ता को ऑनलाइन यौन उत्पीड़न और जान से मारने की धमकियां मिलने पर गंभीर आपत्ति जताई है। यह महिला अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट में एक बच्ची से रेप मामले के आरोपी का बचाव करते हुए जमानत दिलाने में सफल रही थीं।

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कोर्ट ने स्वतः मामले का संज्ञान लेते हुए कहा कि महिलाओं की गरिमा हमारे समाज और संस्कृति में किसी भी हालत में छेड़ी नहीं जा सकती।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की पीठ ने सोशल मीडिया पर फैले धमकियों और अपमानजनक पोस्ट्स की कड़ी निंदा की। कोर्ट ने कहा कि X ,फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ऐसे भड़काऊ, डराने वाले और अपमानजनक संदेश साझा किए गए, जिनमें अधिवक्ता की जान लेने के लिए ‘सुपारी’ तक देने की बातें थीं। कुछ पोस्ट्स में कोर्ट के फैसले को भी मजाक बताया गया और सीधे-सीधे उनके और उनके परिवार के खिलाफ हिंसा भड़काई गई।

सुरक्षा देने के निर्देश

लाइव लॉ डॉट इन की रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक और साइबर क्राइम विभाग के आईजी को तुरंत कार्रवाई करने और अधिवक्ता की पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया। नैनीताल पुलिस अधीक्षक को अधिवक्ता और उनके परिवार की सुरक्षा के लिए दो व्यक्तिगत सुरक्षा अधिकारी नियुक्त करने और उनके कार्यालय या घर के आसपास किसी भी प्रदर्शन या सभा पर रोक लगाने को कहा गया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी इस मामले में शामिल करते हुए उनसे अपमानजनक सामग्री हटाने के निर्देश दिए गए हैं।

आपत्तिजनक पोस्ट पर ऐक्शन

25 सितंबर को हुई अगली सुनवाई में पुलिस ने बताया कि सुरक्षा के लिए दो अधिकारी तैनात कर दिए गए हैं और तीन मुख्य पोस्ट्स व दस अन्य आपत्तिजनक कमेंट्स की पहचान कर कार्रवाई की जा रही है। सोशल मीडिया कंपनियों से जवाब की प्रतीक्षा है। कोर्ट ने कहा कि महिला की गरिमा अति महत्वपूर्ण है और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को तत्काल उपयुक्त कदम उठाने होंगे। कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई 17 अक्टूबर तय की है।


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