
विश्लेषणात्मक और व्यंग्यात्मक संपादकीय लेख का ड्राफ्ट, जो 2027 विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र रुद्रपुर के विधायक शिव अरोड़ा के बदलते राजनीतिक और आध्यात्मिक रुझान
हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स संपादकीय लेख | विशेष रिपोर्ट
2027 के चुनावी बिगुल की आहट अभी से सुनाई देने लगी है और रुद्रपुर की सियासत में हलचल तेज हो चली है। इन हलचलों के बीच एक नाम लगातार सुर्खियों में है — विधायक शिव अरोड़ा। कभी अपने राजनीतिक ग्राफ के “लो-फ्लो” से जूझ रहे अरोड़ा अब ऐसे आध्यात्मिक रंग में रंगे दिखते हैं जैसे कि रुद्रपुर की राजनीति को रामायण और भागवत कथा से ही साधने का संकल्प ले लिया हो।
कीर्तन से सत्ता तक: आध्यात्मिकता का नया एजेंडा
ट्रांजिट कैंप हो या खानपुर मुड़िया — हर श्री महानाम कीर्तन में हाजिरी, हर मंच से रुद्रपुर की समृद्धि और खुशहाली की मंगलकामना… लगता है जैसे अरोड़ा अब “विधायक” कम और “संत” अधिक हो गए हैं। बालाजी धाम दरबार में हनुमान जन्मोत्सव के अवसर पर पूजन-अर्चन करते समय उनके चेहरे का तेज देखकर रुद्रपुर की जनता को अब राजनीति में भी प्रभु कृपा के संकेत मिलने लगे हैं।
जनता के मुद्दे और ‘जनसंख्या असंतुलन’ का राजनीतिक गणित
लेकिन शिव अरोड़ा सिर्फ धार्मिक मंचों पर ही नहीं, ज़मीनी मुद्दों पर भी तगड़ा पकड़ बनाए हुए हैं। खानपुर मुड़िया जैसे गाँवों में जनसंख्या असंतुलन और नियमविरुद्ध आवंटन जैसे मुद्दों पर वो जिस दृढ़ता से बोलते हैं, उससे लगता है कि अब वो “धार्मिक भावनाओं” और “राष्ट्रवादी नीतियों” को चुनावी हथियार बनाकर चलने को तैयार हैं।
संगठन में दरार, कार्यकर्ताओं में नाराज़गी — लेकिन अरोड़ा हैं तैयार
2027 के चुनाव में शिव अरोड़ा को चुनौती देने वाले कोई और नहीं, बल्कि वही चेहरे हैं जो कभी मंच पर अरोड़ा के नाम की घोषणा करते हुए थकते नहीं थे। सत्ता के शिकर तक पहुंच चुके ये चेहरे आज दो गुटों में बंट चुके हैं। लेकिन क्या वे भूल गए कि उन्हीं के राजनीतिक डीएनए में शिव अरोड़ा की छाप है?
शिव अरोड़ा को राजनीति में कोई बदलाव नहीं लाना पड़ा — न उनके व्यवहार में, न उनके संवाद में। पर अब लगता है जैसे उनके पुराने सहयोगी ही उन्हें चुनौती देने के लिए खड़े हो रहे हैं। जो “राजनीतिक खेती” अरोड़ा ने वर्षों तक सींची, उसी खेत में अब दूसरे नेता अपनी रोटियां सेंकना चाहते हैं। लेकिन क्या सत्ता के इस खेत में शिव अरोड़ा अब भी अकेले हल चलाने में सक्षम हैं? जवाब शायद “हां” में है।
फेसबुक से फॉलोअर्स तक — डिजिटल रणभूमि पर भी मजबूत पकड़
सोशल मीडिया की बात करें तो अरोड़ा का फेसबुक पेज उनके फॉलोअर्स की बढ़ती संख्या के साथ यह संकेत दे रहा है कि जनता उन्हें एक बार फिर मौका देने को तैयार है। आध्यात्मिक सम्मेलन में उनकी उपस्थिति से लेकर वनवासी कल्याण आश्रम और बजरंग दल के आयोजनों में सहभागिता — अरोड़ा की रणनीति स्पष्ट है: “भक्ति और शक्ति” दोनों का मेल।
वेंडिंग ज़ोन की बंदरबांट — 2027 की राजनीति में नई फांस
लेकिन राजनीति में सब कुछ आध्यात्मिक नहीं होता। नगर पालिका में वेंडिंग ज़ोन को लेकर चल रही उठा-पटक एक बड़ा मुद्दा बनती जा रही है। जो दुकानदार उजड़ गए हैं, उनका गुस्सा सड़कों पर है, जबकि दुकानें मिली हैं तो सिर्फ ‘सिफारिशशुदा’ चेहरों को। यह मुद्दा आने वाले समय में विधायक अरोड़ा के लिए एक कांटा भी बन सकता है और विपक्ष के लिए मौका भी।
2027 में अरोड़ा के आगे कौन?
विधायक शिव अरोड़ा अब केवल एक नेता नहीं, एक ब्रांड बन चुके हैं — धर्म, राजनीति, विकास और डिजिटल प्रचार का मिश्रण। जिन विरोधियों ने उनकी छांव में राजनीति सीखी, वे अब उन्हीं की पीठ में छुरा भोंकने को तत्पर हैं। लेकिन शिव अरोड़ा की चालें और संतुलन बताता है कि वे न केवल इन हमलों से निपटने को तैयार हैं, बल्कि 2027 में रुद्रपुर की सियासत को फिर से अपने नाम करने को बेताब हैं।
उनके विरोधियों के लिए सलाह — राजनीति में उगता सूरज छांव देने नहीं आता, जलाने आता है। और फिलहाल रुद्रपुर की राजनीति में वो सूरज शायद शिव अरोड़ा ही हैं।
