
इस साल ये व्रत 26 मई सोमवार को पड़ रहा है।


बरगद के पेड़ के नीचे इस व्रत को करने के पीछे मान्यता है कि सावित्री की तपस्या से प्रभावित होकर सत्यवान के प्राण यमराज ने वट वृक्ष के नीचे ही लौटाए थे। इस व्रत को करने से सुहागिनों को अखंड सौभाग्य मिलता है। वहीं, जो कुंवारी कन्याएं इस व्रत को करती हैं, उन्हें सुयोग्य वर मिलता है।
संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह
ऐसे में यदि आप इस कठिन व्रत का पालन करने की सोच रही हैं, तो Astropatri के पंडित आनंद सागर पाठक से जानिए इस व्रत का क्या मुहूर्त है और कैसे इसे किया जाना चाहिए। चलिए पहले जानते हैं अमावस्या तिथि कब से कब तक रहेगी।
वट सावित्री अमावस्या मूहुर्त
आरंभ- दोपहर 12:11 बजे से, 26 मई
समाप्त- प्रातः 08:31 बजे तक, 27 मई
वट सावित्रि व्रत की पूजा विधि
व्रत रखने वाली महिला ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे, लाल या पीले रंग के वस्त्र पहनें।
जिस वट (बरगद) वृक्ष के नीचे पूजा करनी है, वहां साफ-सफाई करें और पूजा का आसन बिछा लें।
पूजा स्थल पर सावित्री और सत्यवान की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
वट वृक्ष की जड़ में जल चढ़ाएं, फिर चंदन, हल्दी, रोली, अक्षत और फूल अर्पित करें।
वट वृक्ष के चारों ओर लाल सूती धागा लपेटते हुए सात बार परिक्रमा करें और हर परिक्रमा में पति की लंबी उम्र की कामना करें।
शृंगार की सामग्री जैसे सिंदूर, कुमकुम, बिंदी, चूड़ियां और मेहंदी आदि चढ़ानी चाहिए।
पूरे मन से व्रत कथा का पाठ करें या सुनें। यह इस व्रत का मुख्य भाग होता है।
पूजा के बाद वट वृक्ष और सावित्री-सत्यवान की आरती करें और हाथ जोड़कर प्रार्थना करें।
पूजा के बाद ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को फल, वस्त्र, मिठाई या धन का दान करें। यह व्रत को पूर्ण करता है।
अगले दिन सुबह सूर्योदय के बाद फल या हल्का भोजन लेकर व्रत का पारण करें।
