क्या जश्न का समय है या आत्ममंथन का? – उत्तराखंड में भाजपा के 11 साल की उपलब्धियों की पड़ताल” लेखक: अवतार सिंह बिष्ट, संपादक – शैल ग्लोबल टाइम्स / उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद

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भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा केंद्र में मोदी सरकार के 11 वर्षों की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए 9 जून से 9 जुलाई तक चलाए जा रहे अभियान की तैयारियां उत्तराखंड में भी अंतिम चरण में हैं। इस संकल्पित प्रचार-अभियान में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्वयं देहरादून में पत्रकार वार्ता के ज़रिए सरकार की उपलब्धियों का बखान करेंगे। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह वास्तव में “उल्लास” का समय है या “आत्ममंथन” का?

विकसित भारत के अमृतकाल की बात – उत्तराखंड में कितनी साकार?भाजपा की प्रचार रणनीति में “विकसित भारत का अमृतकाल” बार-बार गूंजता है, लेकिन उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में इस कथन की सच्चाई को ज़मीनी नजर से देखना ज़रूरी है। 2000 में राज्य गठन के बाद से उत्तराखंड के विकास की मूल अवधारणा थी – स्थानीय संसाधनों पर आधारित आत्मनिर्भरता, पलायन पर रोक, शिक्षा और स्वास्थ्य का सशक्त ढांचा, और पहाड़ी क्षेत्रों में समावेशी विकास।

अब जब हम केंद्र सरकार के 11 साल और उत्तराखंड में भाजपा सरकार के निरंतर कार्यकाल को देखते हैं, तो यह सवाल उठता है कि:

क्या यह विकास उस मूल कल्पना के अनुरूप है जिसके लिए उत्तराखंड राज्य आंदोलन हुआ था?

📉 भाजपा सरकार की प्रमुख नाकामियां – उत्तराखंड आंदोलनकारी दृष्टिकोण से?पलायन का मुद्दा – जस का तस

  1. “रिवर्स पलायन” का नारा दिया गया, लेकिन आज भी हजारों गांव वीरान हैं। पहाड़ी जिलों में रोजगार नहीं, स्वास्थ्य नहीं, और शिक्षा बदहाल है। ऐसे में ‘विकसित भारत’ के दावे बेमानी लगते हैं।
  2. स्वास्थ्य सेवाएं – जिला अस्पतालों से लेकर पीएचसी तक बदहाल
    आयुष्मान भारत और गोल्डन कार्ड योजनाएं ज़मीनी स्तर पर पूरी तरह लागू नहीं हैं। वरिष्ठ नागरिकों, पेंशनरों और गरीबों को महीनों तक रिफंड नहीं मिलता।
  3. शिक्षा – शिक्षा का निजीकरण और सरकारी स्कूलों की दुर्दशा
    2025 बोर्ड परीक्षा परिणामों ने यह उजागर कर दिया है कि सरकारी स्कूलों की हालत निराशाजनक है। निजी स्कूलों को बढ़ावा और गरीब छात्रों की अनदेखी भाजपा की नीति बन चुकी है।
  4. भ्रष्टाचार – एक के बाद एक घोटाले
    TDC घोटाला, UKSSSC भर्ती घोटाले, पटवारी-लेखपाल परीक्षा पेपर लीक, और पंचायतों में PM आवास की धांधलियां – यह सब भाजपा के “सुशासन” की असलियत खोलते हैं।
  5. राज्य आंदोलनकारियों की उपेक्षा
    उत्तराखंड राज्य के लिए अपने प्राण देने वाले आंदोलनकारियों के परिजनों को आज भी उनका हक नहीं मिला। आंदोलनकारी पहचान पत्रों से लेकर नौकरियों तक में भेदभाव आज भी जारी है।

भाजपा की उपलब्धियां – कुछ सकारात्मक बिंदु?न्यायप्रिय पत्रकारिता और आंदोलनकारी चेतना के बावजूद, निष्पक्षता में यह भी स्वीकार करना होगा कि भाजपा सरकार की कुछ पहलें उल्लेखनीय रही हैं:

  1. चारधाम प्रोजेक्ट और केदारनाथ पुनर्निर्माण
    धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने में सरकार की भूमिका अहम रही है। सड़कों का निर्माण तेज़ हुआ है।
  2. इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार (रेल / सड़क परियोजनाएं)
    ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट की प्रगति, ऑल वेदर रोड की गति को एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा सकता है।
  3. बाहरी निवेश को आकर्षित करने की कोशिशें
    निवेश समिट, स्टार्टअप नीति, और योग पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रयास सराहनीय हैं, बशर्ते यह जनकल्याण में तब्दील हों।

🧭 राज्य की परिकल्पना:मूल भावना से दूर क्यों?उत्तराखंड की परिकल्पना थी – “छोटा, सुंदर, पारदर्शी और आत्मनिर्भर पहाड़ी राज्य”। लेकिन आज यह राज्य राजनीतिक प्रयोगशाला, प्रशासनिक भ्रष्टाचार और कॉर्पोरेट लालच की गिरफ्त में दिखता है।

  • निचले स्तर पर लोकतंत्र कमजोर हुआ है, ग्राम प्रधान, BDC, Zila Panchayat की बातों को नजरअंदाज़ कर योजनाएं बनाई जाती हैं।
  • नौकरशाही और बिल्डर लॉबी की भूमिका ने “स्थानीय जनहित” को हाशिए पर डाल दिया है।

🧱 भाजपा के 11 साल: जश्न नहीं, जनमंथन चाहिए

यदि भाजपा यह मान रही है कि केंद्र और राज्य में लगातार सरकार चला लेने मात्र से उपलब्धियों की सूची तैयार हो जाती है, तो यह आत्मप्रशंसा का भ्रम है।

वास्तव में इन 11 सालों को ‘जन संवाद और जन समीक्षा का समय’ बनाया जाना चाहिए था, न कि सिर्फ मीडिया मैनेजमेंट का।


🗣️ समापन विचार: क्या चाहिए उत्तराखंड को?हर जिले में जन संवाद शिविर, जहाँ जनता से पूछा जाए कि क्या उन्हें वाकई योजनाओं का लाभ मिला?राज्य आंदोलनकारियों को निर्णय प्रक्रिया में प्राथमिकता, क्योंकि उन्होंने यह राज्य संघर्ष से पाया है।आर्थिक व सामाजिक सूचकांक के आधार पर जिला विकास रैंकिंग प्रकाशित की जाए।सत्ता के प्रचार से ज्यादा, जनता की प्राथमिकताओं को सरकार के एजेंडे में जगह मिले।यह समय आत्ममंथन का है, आत्मश्लाघा का नहीं। अगर भाजपा अपने 11 साल की ईमानदार समीक्षा कर जनता की सच्ची समस्याओं का समाधान चाहती है, तभी यह अभियान सार्थक माना जाएगा। नहीं तो यह सिर्फ़ ‘तुष्टिकरणी तमाशा’ रह जाएगा।”



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