
भू कानून क्या है? भू कानून उत्तराखंड। LAND LAW. दोस्तों इन्ही सवालो के बारें में ही आज हमारा लेख है. उत्तराखंड में लगातार जन आंदोलनों, सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों से लगातार उठ रही मांगों के सापेक्ष यह जानना जरूरी है कि



भू-कानून वास्तविक रूप से पहाड़ों में बाहरी लोगों अर्थात् राज्य से बाहर के लोगों की भूमि क्रय करने की सीमा का निर्धारण करता है।
उत्तराखण्ड भू कानून बहुत लचीला है, भूमि क्रय की अधिकतम सीमा को समाप्त करने के कारण बाहरी राज्यों के लोग उत्तराखण्ड में जमीन का क्रय बिना सीमा के आसानी से कर रहे हैं।
आखिर इस कानून की मॉग क्यों बढ़ रही है? इस कानून के न होने से उत्तराखण्ड जैसे पर्वतीय राज्यों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
वर्तमान में इसी विषय पर तमाम सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर चर्चाऐं व एक प्रभावी भू कानून हिमांचल प्रदेश की तर्ज यह बनाये जाने की मॉग जोर-शोर से चल रही है।
आज के इस लेख में भू कानून क्या है? भू कानून उत्तराखंड LAND LAW OF UTTARAKHAND के बारें में विस्तृत रूप से बात करेंगे।
भू कानून उत्तराखंड का संक्षिप्त परिचय
भू कानून क्या है ? भू कानून उत्तराखंड। LAND LAW OF UTTARAKHAND :
उत्तराखंड में लगातार जन आंदोलनों, सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों से लगातार उत्तराखंड भू कानून को संशोधित किये जाने की मांग उठ रही है।
राज्य के अस्तित्व में आने के बाद वर्ष 2002 तक उत्तराखण्ड में अन्य राज्यों के लोग केवल 500 वर्ग मीटर भूमि खरीद सकते थे। बाद में यह सीमा 250 वर्ग मीटर कर दी गयी।
कालान्तर में वर्ष 2018 में LAND LAW यानि उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950 में उपधारा 143-क व 154-2 जोड़कर बाहरी राज्यों के लोगों के लिए जमीन खरीदने की अधिकतम सीमा समाप्त कर दी गयी।
भू कानून का उत्तराखंड पर प्रभाव :-
वर्ष २०२२ में हुए विधान सभा चुनाव में भी जनता ने यही आशा के साथ वोट किया है कि उत्तराखंड में एक प्रभावी भू कानून बने तथा सरकार के ऊपर यही दबाव रहा है जिसके चलते सरकार द्वारा इसे प्राथमिकता के साथ लेते हुए सरकार गठन के कुछ ही महीनों के बाद एक समिति का गठन कर दिया गया , समिति की रिपोर्ट के बारें में इस लेख के अंत में बात करेंगे आइये पहले जानते हैं की उत्तराखंड के इस लचीले भू कानून से उत्तराखंड की जन भावनाओं पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है।
आप जानते हैं की उत्तराखंड में पलायन एक मुख्य समस्या के रूप में उभरा है। पलायन के कारन गांव गांव खाली हो रहे है। जिसका फायदा गैर उत्तराखंडियों द्वारा उठाया जा रहा है तथा उत्तराखण्ड की गरीब जनता की मजबूरियों का फायदा उठाकर लालच देकर कम दाम पर जमीन खरीदी जा रही है, जिससे उत्तराखण्ड के गॉवों की संस्कृति, खान-पान, वेश भूषा, रहन-सहन इत्यादि भी बदल रहा है तथा यह जनसांख्यिकीय बदलाव का भी प्रत्यक्ष उदाहरण है और इसके प्रति पूर्ण रूप से जिम्मेदार है, जो केवल लचर भू-कानून के कारण ही प्रभावी हुआ है।
यह कानून उत्तराखण्ड जैसे पर्वतीय राज्य के लिए इसलिए खतरनाक है कि इससे पहाड़ को सामाजिक आर्थिक व यहॉ की संस्कृति ही प्रभावित नहीं होगी, बल्कि रहन-सहन, जीवन शैली को भी प्रभावित करेगी और अधिकॉश लोग अपने ही राज्य में भूमिहीन हो जायेंगे।
भू-कानून उत्तराखंड की मॉग हिमांचल प्रदेश में लागू भू-कानून के समान क्यों हो रही है? आखिर क्या है हिमांचल प्रदेश का भू कानून ?
वर्ष 1972 में हिमांचल प्रदेश में बनाये गये कानून के अन्तर्गत बाहरी लोग, अधिक पैसे वाले लोग हिमांचल में भूमि नहीं खरीद पायेंगे। चूॅकि उस समय हिमांचल के लोग इतने सम्पन्न नहीं थे और यह आशंका थी कि वहॉ बाहरी राज्य के लोगों को जमीन बेच देंगे और भूमिहीन हो जायेगे तथा इनकी संस्कृति भी विलुप्ति को ओर बढ़ जायेगी।
जिस कारण हिमांचल प्रदेश में लैंड रिफार्म एक्ट, 1972 अस्तित्व में लाया गया, जिसके तहत हिमॉचल में बाहरी लोग वहॉ कृषि भूमि नहीं खरीद पायेंगे, तथापि कॉमर्शियल प्रयोग के लिए जमीन किराये पर ले सकते हैं।
एक्ट में यह भी प्राविधान किया गया कि बाहरी राज्य के व्यक्ति को हिमांचल में रहते हुए 15 साल हो गये हों, तो वे वहॉ जमीन खरीद सकते हैं। किन्तु इस प्रतिबन्ध का विरोध होने पर इसे बाद में बढ़ाकर 30 वर्ष कर दिया गया।
उत्तराखंड में भू कानून संशोधन पर सरकार की कार्यवाही:-
उत्तराखंड में भू-कानून के अध्ययन और परीक्षण के लिए पुष्कर धामी ने प्रदेश का मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद जुलाई 2021 में भू-कानून के अध्ययन के लिए उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था, जिसमे बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय, अरुण ढौंडियाल, पूर्व आईएएस अधिकारी व दरबान सिंह गर्ब्याल के अलावा समिति में हाल तक सचिव राजस्व रहे दीपेंद्र कुमार चौधरी सदस्य शामिल थे.
समिति द्वारा ड्राफ्ट तैयार करने के लिए राज्य के सभी जिलाधिकारियों से प्रदेश में अब तक भूमि क्रय की स्वीकृतियों के विवरण मांगे थे तथा समिति द्वारा इन रिपोर्ट के आधार पर अपनी रिपोर्ट तैयार कर मुख्यमंत्री को सौंपी गयी।
उत्तराखंड में जल्द लागू होगा भू कानून
समिति की रिपोर्ट के मुख्य फोकस बिंदु इस प्रकार है :-
1 . इसी प्रकार सूक्ष्म लघु और मध्यम श्रेणी के उद्योगों के लिए भूमि क्रय करने की अनुमति भी जिलाधिकारी स्तर से हटाकर शासन स्तर पर ही दिए जाने की सिफारिश की गई है।
- पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों में औद्योगिक प्रयोजनों आयुष शिक्षा स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा उद्यान पर्यटन और कृषि के लिए 12.05 एकड़ से ज्यादा भूमि आवेदक को देने की व्यवस्था को समाप्त करते हुए हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर आवश्यकतानुसार न्यूनतम भूमि दिए जाने की संसूति की गयी है।
- प्रदेश में बंदोबस्त की प्रक्रिया को दोबारा शुरू करने की सिफारिश की गई है, कहा गया है कि धार्मिक प्रयोजन के लिए कोई निर्माण या भूमि क्रय करने पर अनिवार्य रूप से जिलाधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर शासन द्वारा निर्णय लिया जाए।
- समिति ने नदी, नालों वन क्षेत्रों चारागाहों या अन्य सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण कर अवैध कब्जे निर्माण या धार्मिक स्थल बनाने वालों के खिलाफ कड़ी सजा के साथ ही संबंधित विभागों के अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई के प्रावधान की सिफारिश की है।
- पारदर्शिता के लिए क्रय. विक्रय भूमि हस्तांतरण और स्वामित्व संबंधी समस्त प्रक्रिया को ऑनलाइन करने और वेबसाइट के माध्यम से संबंधित जानकारी सार्वजनिक मंच पर रखने की संस्तुति भी की गई है।
- जिस प्रयोजन के लिए क्रय की गई उसका उल्लंघन रोकने के लिए शासन स्तर पर एक संस्था बनाने की संस्तुति की गई है सरकारी विभाग अपनी खाली भूमि पर बोर्ड लगाएगी।
- वर्तमान में भूमि क्रय करने के पश्चात भूमि का सदुपयोग करने के लिए दो साल की अवधि निर्धारित है। राज्य सरकार अपने विवेक के अनुसार इसे बढ़ा सकती है। इसमें संशोधन की सिफारिश करते हुए समिति ने इसे विशेष परिस्थितियों में एक वर्ष बढाकर अधिकतम तीन वर्ष करने की अनुशंसा की गयी है।
कृषि व औद्योगिक क्षेत्र के लिए संस्तुति - कृषि या औद्योगिक प्रयोजन के लिए खरीदी गई कृषि भूमि के कुछ प्रकरणों में दुरुपयोग के मद्देनजर इसकी अनुमति जिलाधिकारी के स्तर से हटाकर शासन स्तर से दिए जाने की संस्तुति की है।
- बड़े उद्योगों के अतिरिक्त केवल चार या पांच सितारा होटल/रिसॉर्ट/ हॉस्पिटल / इंस्टीट्यूट को ही भूमि क्रय करने की अनुमति दी जाए जबकि अन्य प्रयोजनों के लिए लीज पर ही भूमि उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाएगी।
- सिडकुल और औद्योगिक इकाइयों के समीप आस्थानों में खाली पड़े औद्योगिक भूखंड और बंद पड़ी फैक्ट्रियों की भूमि का आवंटन औद्योगिक प्रयोजन हेतु किया जाए।
- सिफारिशों में कहा गया है कि विभिन्न प्रयोजनों के लिए खरीदी जाने वाली भूमि पर श्रेणी ग व घ में स्थानीय लोगों को 70 प्रतिशत रोजगार आरक्षण सुनिश्चित हो और उच्चतर पदों पर उन्हें योग्यतानुसार वरीयता दी जाए।
उत्तराखंड भारत का सांस्कृतिक व ऐतिहासिक दृश्टिकोण से संपन्न राज्य है। अतः इसकी संस्कृति, सनातन, सामाजिक आर्थिक उन्नयन के लिए सशक्त भू कानून की नितांत आवश्यकता है।
मित्रों आज हमने भू कानून उत्तराखंड। भू कानून क्या है ? LAND LAW OF UTTARAKHAND के बारें में लेख पढा। आपको यह लेख कैसा लगा जरूर बताना आपका कथन मेरे लिए मार्गदर्शन का काम करेगा।

