
संपादकीय:उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी: अलग राज्य की लड़ाई जीतने के बाद सम्मान की लड़ाई बाकी
उत्तराखंड का निर्माण एक ऐतिहासिक जनसंघर्ष का परिणाम था, जिसे आंदोलनकारियों ने अपने खून-पसीने और बलिदान से संभव बनाया। लेकिन जिस प्रदेश के लिए उन्होंने वर्षों तक संघर्ष किया, उसी प्रदेश में आज वे अपने अधिकार और सम्मान के लिए लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं। उत्तराखंड को भारत के 27वें राज्य के रूप में पहचान दिलाने वाले इन आंदोलनकारियों का अब तक पूर्ण चिह्नीकरण नहीं हो पाया है। वहीं, शहीद आंदोलनकारियों के परिवारों को दी जाने वाली सम्मान राशि भी नाममात्र की रह गई है, जिसे बढ़ाने की मांग लंबे समय से की जा रही है।
संघर्ष से हासिल किया राज्य, लेकिन सम्मान अधूरा
उत्तराखंड आंदोलन की पृष्ठभूमि संघर्ष और बलिदान से भरी पड़ी है। मुजफ्फरनगर कांड से लेकर खटीमा गोलीकांड तक, इस आंदोलन में सैकड़ों आंदोलनकारियों ने अपनी जान दी और हजारों ने जेल यातनाएं झेलीं। उनके बलिदान से उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड अस्तित्व में आया, लेकिन आज वही आंदोलनकारी और उनके परिजन अपने हक और पहचान के लिए संघर्षरत हैं।


चिह्नीकरण में देरी से नाराजगी
राज्य आंदोलनकारियों का सबसे बड़ा मुद्दा अब चिह्नीकरण को लेकर है। आज भी कई आंदोलनकारियों की पहचान सरकारी सूची में दर्ज नहीं हो पाई है, जिससे वे उन सुविधाओं से वंचित हैं, जो राज्य ने उनके लिए घोषित की थीं। प्रशासनिक सुस्ती और राजनीतिक उदासीनता के कारण कई आंदोलनकारियों को अपना हक पाने के लिए बार-बार दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।
सम्मान राशि और पेंशन का मुद्दा
राज्य आंदोलनकारियों को लोकतंत्र सेनानियों की तरह सम्मान पेंशन दिए जाने की मांग लंबे समय से की जा रही है।
- उत्तराखंड सरकार की ओर से आंदोलनकारियों को जो पेंशन दी जाती है, वह न्यूनतम जीवनयापन के लिए भी पर्याप्त नहीं है।
- विधायकों और पूर्व विधायकों के वेतन और भत्ते बढ़ाने के फैसले बार-बार लिए जाते हैं, लेकिन राज्य के असली निर्माता आंदोलनकारियों के लिए ऐसी कोई पहल नहीं होती।
- शहीद आंदोलनकारियों के परिजनों को दी जाने वाली सम्मान राशि भी बढ़ाने की मांग लगातार उठ रही है, लेकिन सरकारें इस ओर कोई ठोस कदम नहीं उठा रही हैं।
राजनीतिक अनदेखी से नाराज हैं आंदोलनकारी
राज्य आंदोलनकारियों का कहना है कि जब चुनाव आते हैं, तब राजनीतिक दल उनके बलिदान की दुहाई देते हैं, लेकिन सत्ता में आते ही वे उनकी मांगों को नजरअंदाज कर देते हैं। यही कारण है कि कई आंदोलनकारी अब सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं।
मांगें क्या हैं?
- चिह्नीकरण की प्रक्रिया को जल्द पूरा किया जाए और वंचित आंदोलनकारियों को उनका हक दिया जाए।
- राज्य आंदोलनकारी पेंशन को बढ़ाया जाए ताकि वे सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर सकें।
- शहीद आंदोलनकारियों के परिजनों की सम्मान राशि बढ़ाई जाए और इसे विधायकों की पेंशन के समान महत्व दिया जाए।
- आंदोलनकारियों को लोकतंत्र सेनानियों की तरह सरकारी सुविधाएं और सम्मान प्रदान किया जाए।
उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद अध्यक्ष अवतार सिंह बिष्ट,उत्तराखंड राज्य की नींव जिन आंदोलनकारियों ने अपने संघर्ष और बलिदान से रखी, आज वही अपनी पहचान और अधिकार के लिए जूझ रहे हैं। सरकारों को चाहिए कि वे राज्य आंदोलनकारियों को केवल चुनावी मुद्दा न समझें, बल्कि उनके सम्मान, पेंशन और चिह्नीकरण से जुड़ी मांगों को जल्द से जल्द पूरा करें। यह केवल एक वर्ग विशेष की मांग नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड के स्वाभिमान और न्याय का सवाल है।
