उत्तराखंड भाजपा: जब अपना ही दर्पण धुंधला हो!प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

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संपादकीय लेख;उत्तराखंड भाजपा में इन दिनों जो चल रहा है, वह किसी राजनीतिक धारावाहिक से कम नहीं। प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट की हालिया टिप्पणी, जिसमें उन्होंने संयम बरतने की नसीहत दी, दरअसल एक बड़े राजनीतिक नाटक का हिस्सा है। यह टिप्पणी पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत की ओर इशारा करती है, जिन्होंने अवैध खनन को लेकर राज्य सरकार के खनन सचिव पर सवाल उठाए थे। जब सचिव महोदय ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया, तो त्रिवेंद्र सिंह रावत का जवाबी हमला विवाद का कारण बन गया।

लेकिन सवाल यह है कि संयम की यह सीख देने वाले महेंद्र भट्ट खुद कितने संयमित हैं? यह वही प्रदेश अध्यक्ष हैं, जिन्होंने आंदोलनकारियों को ‘सड़क छाप’ कहकर नवाज़ा था। अगर किसी भी व्यक्ति को संयम से बोलना चाहिए, तो क्या यह बात भाजपा के शीर्ष नेताओं पर लागू नहीं होती? क्या यह नसीहत पहले खुद पर लागू नहीं करनी चाहिए?

भाजपा का यह दोहरा चरित्र अब उत्तराखंड की जनता के लिए नया नहीं है। जब त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री थे, तब पार्टी के अंदर ही उन्हें किनारे लगाने की साजिशें होती रहीं। सत्ता से बेदखल होने के बाद वे अब ‘सच’ बोलने लगे हैं, लेकिन सवाल यह भी उठता है कि जब वे खुद सत्ता में थे, तब उनका यह ईमानदार चेहरा कहां था?

उत्तराखंड भाजपा की राजनीति में यह कोई पहली बार नहीं हुआ है। सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग हमेशा अपने से नीचे वालों को संयम की नसीहत देते हैं, लेकिन खुद जब बोलते हैं तो राजनीतिक गरिमा ताक पर रख देते हैं। आज महेंद्र भट्ट संयम की दुहाई दे रहे हैं, कल कोई और नेता यही बात दोहराएगा। मगर असली मुद्दा यह है कि उत्तराखंड की राजनीति में कब शुचिता और ईमानदारी आएगी? जब तक सत्ता की लालसा और अंतर्कलह बनी रहेगी, तब तक यह सवाल अनुत्तरित ही रहेगा।


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