
उत्तराखंड की शांत वादियों में बढ़ती नशे की लत के खिलाफ खोले गए नशा मुक्ति केंद्र, अब खुद अपराध और अमानवीयता के केंद्र बनते जा रहे हैं। प्रेमनगर, देहरादून में एक 52 वर्षीय युवक अजय कुमार की चम्मच घोंपकर हत्या, कोई एकाकी मामला नहीं, बल्कि उत्तराखंड में पनपते नशा मुक्ति केंद्रों के अपराधीकरण की एक वीभत्स मिसाल है।


केंद्र या कत्लगाह?
मांडूवाला स्थित कर्मा वेलफेयर सोसाइटी नामक केंद्र में जिस बेरहमी से अजय की हत्या हुई, उसने पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया है। हरमनदीप सिंह और गुरदीप सिंह नामक दो आरोपी युवक, जिन्हें नशा छुड़वाने के लिए केंद्र में रखा गया था, वही अब हत्यारे बन चुके हैं। पुलिस को दिए बयान में उन्होंने बताया कि यह हत्या एक मामूली विवाद का परिणाम थी — यह सिद्ध करता है कि इन केंद्रों में मानसिक परामर्श, नियंत्रण, और अनुशासन नाम की कोई चीज़ मौजूद नहीं।
सरकारी घोषणाएं केवल खोखली बातें
2021 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देहरादून व हल्द्वानी में सरकारी नशा मुक्ति केंद्र खोलने की घोषणा की थी। लेकिन तीन साल बीत गए, जमीन पर कुछ नहीं। ऐसे में प्राइवेट और मनमानी करने वाले केंद्रों को खुली छूट मिल चुकी है। किसी की जान जाए या गरिमा — जिम्मेदार कोई नहीं।
अपराधियों का नया अड्डा
नशा मुक्ति केंद्र अब पारदर्शिता से दूर, अवैध रूप से चलने वाले छोटे जेलों में तब्दील हो चुके हैं। कुछ सेंटरों के संचालनकर्ता खुद पूर्व आपराधिक पृष्ठभूमि वाले होते हैं या बाहरी राज्यों जैसे यूपी, हरियाणा, राजस्थान से आए संगठनों से जुड़े होते हैं। बिना किसी योग्यता के स्टाफ रखे जाते हैं, जिनमें कुछ ‘जल टाइप’ निगरानीकर्ता होते हैं, जो डर और ज़ुल्म से मरीजों को काबू में रखते हैं।
नाम मात्र के मनोचिकित्सक, असल में प्राइवेट ठग
इन केंद्रों में नियुक्त तथाकथित मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ महीने में एक बार भी नहीं आते। इलाज के नाम पर मरीजों को जूते में पानी पिलाने, बुरी तरह पीटने और यहां तक कि दुष्कर्म व हत्या तक की घटनाएं हुई हैं। कई बार इन केंद्रों में नशे की आपूर्ति भी अंदर ही कराई जाती है ताकि मरीज लंबा वक्त रुके और अधिक पैसा वसूला जा सके।
उत्तराखंड में ऐसे प्रमुख मामले:
- अक्टूबर 2021: लाइफ केयर फाउंडेशन में युवक की संदिग्ध मौत
- अगस्त 2021: केंद्र संचालक पर युवती से दुष्कर्म का आरोप
- अगस्त 2021: 12 युवक एक साथ केंद्र से भागे
- सितंबर 2022: जागृति फाउंडेशन में मरीज की संदिग्ध मौत
- अक्टूबर 2022: 10 लोग केंद्र से फरार
यह सूची दर्शाती है कि केंद्रों की देखरेख भगवान भरोसे है।
झूठे वादे और छलावा
नशा छुड़ाने के नाम पर ये केंद्र लोगों से मोटी रकम ऐंठते हैं, कई बार परिजनों को महीनों मिलने तक नहीं दिया जाता, ताकि अंदर क्या हो रहा है किसी को पता न चले। ये केंद्र गली-मोहल्लों में पनप चुके हैं और दूसरे राज्यों में बड़े-बड़े पोस्टर, होर्डिंग और ऑनलाइन प्रचार के जरिए लोगों को लुभाते हैं।
समाधान क्या हो सकता है?
- सभी नशा मुक्ति केंद्रों का विशेष रजिस्ट्रेशन अनिवार्य हो
- प्रत्येक केंद्र में नियमित पुलिस व प्रशासनिक जांच
- स्टाफ की योग्यता, आपराधिक रिकॉर्ड की समय-समय पर जांच
- पब्लिक रिपोर्टिंग सिस्टम विकसित हो – जैसे हेल्पलाइन और डिजिटल शिकायत पोर्टल
- सरकारी केंद्रों को शीघ्र चालू किया जाए ताकि निजी लूट तंत्र पर लगाम लगे
समाप्ति में…
यदि हम आज भी आंख मूंद कर बैठे रहे, तो वह दिन दूर नहीं जब ये नशा मुक्ति केंद्र, अपराधियों की फैक्ट्रियां बनकर पूरे समाज को खोखला कर देंगे। सरकार, प्रशासन, और समाज — तीनों को मिलकर अब निर्णायक कदम उठाना होगा। नहीं तो नशा और उसके इलाज के नाम पर यह नया संगठित अपराध तंत्र हमारे युवाओं और उनके परिवारों को निगलता जाएगा।
