
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद पहली बार भ्रष्टाचार के खिलाफ इतने व्यापक स्तर पर सख्त कार्रवाई देखने को मिली है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में राज्य सरकार ने “जीरो टोलरेंस ऑन करप्शन” नीति को न सिर्फ घोषित किया, बल्कि उसे ज़मीन पर उतारने में भी कोई कोताही नहीं बरती। यह पहली बार है जब भ्रष्टाचार के आरोपी बड़े से बड़े अधिकारियों को भी संरक्षण नहीं मिला, और सतर्कता विभाग की सक्रियता ने जनता को यह विश्वास दिलाया है कि सरकार अब सिर्फ घोषणाओं तक सीमित नहीं, बल्कि कार्रवाई की सरकार है।


सितारगंज में रंगेहाथ गिरफ्तारी—जीरो टोलरेंस की मिसाल
सोमवार को ऊधम सिंह नगर जिले के सितारगंज में मुख्य आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ पकड़ा जाना इस बात का प्रमाण है कि भ्रष्टाचार चाहे किसी भी स्तर पर हो, अब वह छिपा नहीं रह सकता। सतर्कता विभाग की टीम की यह कार्रवाई उन सैकड़ों ईमानदार नागरिकों और शिकायतकर्ताओं के लिए एक सकारात्मक संकेत है जो अब बिना डर के भ्रष्टाचार की सूचना दे सकते हैं।
विशेष हेल्पलाइन 1064—जनभागीदारी को प्रोत्साहन
भ्रष्टाचार विरोधी नीति को जनसहयोग से जोड़ने हेतु सरकार ने टोल फ्री नंबर 1064 शुरू किया है, जिसने आम नागरिक को एक प्रभावी माध्यम दिया है कि वह किसी भी भ्रष्ट गतिविधि की जानकारी गोपनीय रूप से दे सके। यही कारण है कि बीते तीन वर्षों में 80 से अधिक भ्रष्ट अधिकारी सलाखों के पीछे भेजे गए हैं।
हालिया चर्चित गिरफ्तारियां—परिवर्तन का संकेत
- नैनीताल PWD इंजीनियर: बिल भुगतान में रिश्वत मांगने पर गिरफ्तारी
- देहरादून विद्युत विभाग का JE: कनेक्शन देने के बदले रिश्वत
- LIU कर्मी: मुख्य आरक्षी सहित रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ
- कर्णप्रयाग आबकारी इंस्पेक्टर, रुद्रपुर जिला आबकारी अधिकारी, काशीपुर रोडवेज AGM, हरिद्वार BEO, देहरादून GST अधिकारी, और पौड़ी कानूनगो—सभी पर कार्रवाई हुई, जो दशकों से तंत्र में घुसे भ्रष्टाचार के वायरस पर कड़ा प्रहार है।
धामी सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति
मुख्यमंत्री धामी की कार्यशैली से यह स्पष्ट है कि वे राजनीतिक दबाव में आने वालों में से नहीं हैं। यह पहली बार है जब सरकार ने भ्रष्ट अधिकारियों को पार्टी, पद या पहचान से ऊपर उठकर केवल उनके अपराध के आधार पर देखा है। यह प्रशासनिक इमानदारी उस सपने को साकार करती है जो राज्य आंदोलनकारियों ने भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड की कल्पना के साथ देखा था।
संपत्ति घोषणा की पहल—ऊपर से नीचे तक पारदर्शिता
सरकार द्वारा अधिकारियों और मंत्रियों की संपत्ति सार्वजनिक करने की पहल, ट्रांसफर-पोस्टिंग में पारदर्शिता, और डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम जैसे कदम इस अभियान को मजबूती देते हैं।
जनआस्था की पुनःस्थापना
भ्रष्टाचार पर धामी सरकार की यह सक्रियता उत्तराखंड को न केवल प्रशासनिक दृष्टि से मज़बूत बनाएगी, बल्कि राज्य निर्माण आंदोलन की आत्मा—जनकल्याण और पारदर्शिता—को भी पुनर्जीवित करेगी।
अब जब आम नागरिक को यह यकीन होने लगा है कि उसकी शिकायत सुनी जा रही है और कार्रवाई हो रही है, तब जाकर “न्यायप्रिय देवभूमि” की मूल भावना फिर से जागृत होती दिख रही है।
यह शुरुआत है—पर अंत नहीं। अगर यही रफ्तार बनी रही, तो उत्तराखंड एक दिन भ्रष्टाचार मुक्त राज्य की मिसाल बनकर उभरेगा।
