आकाश की गूंज: स्वदेशी मिसाइल सिस्टम ने पाकिस्तान की नापाक साजिश को नाकाम किया ✍️ संपादकीय लेख — अवतार सिंह, संपादक, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स

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गुरुवार की रात जब पाकिस्तान ने एक बार फिर जम्मू-कश्मीर की सरहद पर नापाक हरकत करने की कोशिश की, तो भारतीय सेना की आंखों में आक्रोश नहीं— आत्मविश्वास की चमक थी। और इस आत्मविश्वास की सबसे बड़ी वजह थी स्वदेशी रूप से विकसित आकाश मिसाइल सिस्टम, जिसने एक के बाद एक दुश्मन के ड्रोन और मिसाइलों को हवा में ही नेस्तनाबूद कर दिया।

यह सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं थी—यह भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता, वैज्ञानिक संकल्प और सामरिक समझदारी का पराक्रम था। यह उस भारत की तस्वीर थी, जो अब रक्षा के क्षेत्र में भी “मेड इन इंडिया” पर गर्व करता है और विश्व को यह संदेश दे रहा है: अब हम सिर्फ रक्षा नहीं, प्रतिरोध भी स्वदेशी ताकत से करेंगे।

आकाश: विज्ञान का सपूत और राष्ट्ररक्षा का प्रहरी

आकाश कोई सामान्य मिसाइल सिस्टम नहीं है। यह एक वैज्ञानिक का सपना, एक राष्ट्र की सुरक्षा की परिकल्पना और 15 वर्षों की तपस्या का साकार रूप है। डॉ. प्रह्लाद रामाराव— जिनकी आंखों में उस रात भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा— ने जब कहा कि “अपने बच्चे को दुश्मन के लक्ष्यों को गिराते हुए देखना जीवन का सबसे सुखद दिन है”, तो वह सिर्फ एक पिता की नहीं, एक वैज्ञानिक योद्धा की बात कर रहे थे।

78 वर्षीय डॉ. रामाराव, जिनके करियर की शुरुआत डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के मार्गदर्शन में हुई थी, आज भी एक सच्चे मिसाइल मैन की तरह राष्ट्र की सेवा में सक्रिय हैं। और उनकी बनाई यह प्रणाली न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से श्रेष्ठ है, बल्कि सामरिक स्तर पर भी भारत के लिए ढाल और तलवार दोनों की भूमिका निभा रही है।

आकाश की रणनीतिक क्षमता: भारत के लिए अभेद्य कवच

  • यह मिसाइल प्रणाली सतह से हवा में मार करने वाली प्रणाली है जो 20 किमी की ऊंचाई तक एक साथ कई लक्ष्यों को भेदने में सक्षम है।इसमें “फायर एंड फॉरगेट” तकनीक है, यानी एक बार निशाना साधने के बाद इसे मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती।इलेक्ट्रॉनिक काउंटर-काउंटर उपायों के कारण यह दुश्मन के इलेक्ट्रॉनिक हस्तक्षेप से अप्रभावित रहती है।इसका लांचर मोबाइल है, यानी सेना इसे कहीं भी ले जाकर तैनात कर सकती है।रियल टाइम थ्रेट असेसमेंट और मल्टी-सेंसर डेटा प्रोसेसिंग जैसी क्षमताएं इसे आधुनिकतम बना देती हैं।

‘पूरा आकाश हमारा है’— नारा नहीं, अब सच्चाई है डॉ. रामाराव का यह नारा — “पूरा आकाश हमारा है” — अब केवल एक प्रेरणास्पद पंक्ति नहीं रही, यह भारत की सामरिक सच्चाई बन चुकी है। आकाश ने न सिर्फ हमारे सीमावर्ती इलाकों को सुरक्षित किया बल्कि पश्चिमी भारत के बड़े शहरों को भी हमलों से बचाया।

आश्चर्य नहीं कि आर्मेनिया जैसे देश ने इस पर 6,000 करोड़ रुपये खर्च कर इसे खरीदा। आकाश अब सिर्फ एक मिसाइल नहीं, भारत की टेक्नोलॉजिकल डिप्लोमेसी का प्रतीक भी बन चुका है।

भारतीय वैज्ञानिकों के आत्मबल की उड़ान यह क्षण उन तमाम भारतीय वैज्ञानिकों को समर्पित है, जो वर्षों तक प्रयोगशालाओं में, गोपनीय मिशनों में और सरकारी उपेक्षाओं के बीच तपस्वियों की तरह कार्य करते हैं। आकाश प्रणाली को शुरू में भारतीय सेना द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था, लेकिन वैज्ञानिकों का विश्वास अडिग रहा। और आज वही सेना, वही आकाश को अपना गर्व मान रही है।

आकाश केवल रक्षा नहीं, प्रेरणा भी है गुरुवार की रात को भारत ने केवल एक सैन्य जीत नहीं पाई, उसने आत्मनिर्भरता की विजय पताका फहराई। आकाश मिसाइल प्रणाली इस बात का प्रमाण है कि जब राष्ट्र अपने वैज्ञानिकों पर विश्वास करता है, तब उसका भविष्य सुरक्षित होता है।

आज जरूरत है कि हम आकाश की गूंज को सिर्फ सीमाओं पर ही नहीं, अपने हर नीति निर्णय में महसूस करें। रक्षा में आत्मनिर्भरता, विज्ञान में निवेश, और राष्ट्र निर्माण में स्वदेशी तकनीक को सर्वोच्च प्राथमिकता देना ही सच्ची राष्ट्रसेवा होगी।आकाश की तरह हर क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर और अजेय बनाना ही इस युग का असली मिशन होना चाहिए।



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