
यह मिशन आइस्पेस का दूसरा प्रयास था, अमेरिका के बाद जापान पहला देश बनता जहां की एक प्राइवेट कंपनी चांद पर सफलतापूर्वक लैंडिंग कराती.
दो साल पहले आइस्पेस का पहला मिशन भी असफल रहा था. इस बार रेजिलिएंस को चांद की सतह पर उतारने की उम्मीद थी. कंपनी की लाइव-स्ट्रीम उड़ान डेटा के मुताबिक, रेजिलिएंस की ऊंचाई अचानक शून्य हो गई, ठीक उस समय जब शुक्रवार सुबह 4:17 बजे (जापानी समयानुसार, यानी गुरुवार को 7:17 बजे GMT) लैंडिंग होने वाली थी. यह लैंडर चांद की कक्षा से एक घंटे की उतराई के बाद सतह पर पहुंचने वाला था.


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट
आइस्पेस ने बताया कि लैंडिंग के बाद रेजिलिएंस से कोई सिग्नल नहीं मिला. कंपनी के इंजीनियर अब यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर क्या गलत हुआ. यह मिशन जापान के लिए बेहद अहम था, क्योंकि निजी कंपनी के तौर पर चांद पर लैंडिंग का यह पहला मौका हो सकता था. दुनिया भर में अब तक केवल अमेरिका, रूस, चीन और भारत ही चांद पर लैंडिंग करा पाए हैं.
आइस्पेस का लक्ष्य चांद पर कम लागत में मिशन भेजने का है.
कंपनी का कहना है कि वह चांद की सतह पर सामान पहुंचाने और वहां वैज्ञानिक प्रयोग करने की तकनीक विकसित करना चाहती है. रेजिलिएंस मिशन में कई छोटे उपकरण और वैज्ञानिक यंत्र ले जाए गए थे, जो चांद की सतह का अध्ययन करने वाले थे. मिशन की असफलता से कंपनी को बड़ा झटका लगा है, लेकिन आइस्पेस ने हार नहीं मानी है. कंपनी ने कहा कि वह इस असफलता से सीख लेगी और भविष्य में नए मिशन की तैयारी करेगी.
चांद पर लैंडिंग की दौड़ में अब कई देश और निजी कंपनियां शामिल हो रही हैं. नासा और अन्य अंतरिक्ष एजेंसियां भी चांद पर बस्तियां बसाने की योजना बना रही हैं. ऐसे में आइस्पेस जैसे प्रयास भविष्य के लिए अहम हो सकते हैं. हालांकि, इस मिशन की नाकामी ने एक बार फिर साबित किया कि चांद पर पहुंचना और वहां लैंडिंग करना कितना मुश्किल है.
आइस्पेस की इस कोशिश को दुनिया भर के अंतरिक्ष प्रेमी बारीकी से देख रहे थे. अब सबकी नजर इस बात पर है कि कंपनी अगले मिशन में क्या नया करती है और क्या वह चांद पर सफल लैंडिंग का सपना पूरा कर पाएगी.
