सनातन परंपरा में सात ऋषियों की पूजा अत्यंत ही शुभ और फलदायी मानी गई है. यही कारण है कि उनका स्मरण अक्सर शुभ कार्यों से पूर्व किया जाता है. भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी के नाम से ही जाना जाता है.

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इस दिन पूज्य ऋषियों की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन महिलाओं द्वारा व्रत रखा जाता है जो उन्हें जाने-अनजाने मासिक धर्म के दौरान हुई भूल और पाप आदि मुक्ति दिलाता है. आइए विस्तार से जानते हैं कि आज कब और कैसे करें सप्तऋषियों की पूजा और क्या है इसका धार्मिक महत्व?

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)

ऋषि पंचमी की पूजा का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार आज ऋषि पंचमी की पूजा के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त प्रात:काल 11 बजकर 05 मिनट से लेकर दोपहर 01 बजकर 39 मिनट तक रहेगा. इस तरह महिलाओं को आज ऋषि पंचमी की पूजा के लिए तकरीबन ढाई घंटे का पर्याप्त समय मिलेगा.

ऋषि पंचमी पर किन ऋषियों की होती है पूजा

भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की पंचमी जिसे ऋषि पंचमी कहते हैं, इस दिन सप्तऋषि यानि गौतम, भारद्वाज, विश्वामित्र, जमदग्नि, वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि की विशेष पूजा की जाती है. साथ ही इस दिन देवी अरुंधती की भी पूजा की जाती है. मान्यता है कि यदि कोई बहन रक्षाबंधन के दिन अपने भाई को किसी कारणवश राखी नहीं बांध पाई हो तो वह इस दिन अपने भाई को रक्षासूत्र बांधकर उसके सुख-सौभाग्य की कामना करती है.

ऋषि पंचमी व्रत की पूजा विधि

ऋषि पंचमी के दिन महिलाओं को स्नान-ध्यान करने के बाद नया वस्त्र धारण करना चाहिए. इसके बाद घर के ईशान कोण में समा के सात चावल या फिर सात कुश को एक आसन बिछाकर रखें. इसके बाद उन्हें गंगाजल से स्नान कराएं. इसके बाद उनका रोली, चंदन, आदि से तिलक करें तथा धूप, दीप आदि दिखाकर विधि-विधान से पूजा करें. सप्तऋषियों की पूजा में मौसम के अनुसार जो भी फल और मिष्ठान उपलब्ध हो उसे अर्पित करें. पूजा के अंत में व्रत के सफल होने और सुख-समृद्धि की कामना करें.

क्या है ऋषि पंचमी व्रत का नियम ?

ऋषि पंचमी के दिन अन्न और नमक दोनों का सेवन नहीं किया जाता है. ऐसे में व्रत करने वाली महिलाएं इस दिन दही और समा का चावल का ही सेवन करती हैं. ऋषि पंचमी के दिन हल से जोते गये अनाज का सेवन भूल से भी नहीं करना चाहिए. व्रत के पूर्ण होने पर सप्तऋषियों को जो कुछ भी फल-मिष्ठान और धन अर्पित किया हो उसे मंदिर में किसी पुजारी को दान करके उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए.


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