


सुस्त रफ्तार कुमाऊं की अर्थव्यवस्था पीएम मोदी के दौरे से जेट इंजन की रफ्तार पकड़ लेगी। जिससे नए रोजगार के अवसर बढ़ेगे साथ ही इलाके में पूंजी निवेश भी बढ़ेगा।


पीएम के दौरे से ना सिर्फ देश दुनिया में सुरक्षित कुमाऊं का संदेश जाएगा। बल्कि कुमाऊं में स्थित भगवान शिव से जुड़े ऊं पर्वत, आदि कैलाश, कैलाश मानसरोवर, जागेश्वर धाम जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों की ब्रांडिंग सीधे पूरी दुनिया में हो जाएगी। इस दौरे को लेकर दरमा, व्यास, चौंदास घाटी के स्थानीय लोग भी बेहद उत्साहित हैं। पीएम मोदी का यह दौरा सामरिक संदेश भी देगा। दरअसल पीएम मोदी चीन सीमा से मात्र कुछ किमी की दूरी पर रहेंगे, ऐसे में पूरी दुनिया के साथ ही चीन को भी भारत की बढ़ती शक्ति के संदेश पहुंचा देगा।
कुमाऊं में तीर्थाटन की बात करें तो जागेश्वर सबसे बड़ा शिव धाम है। पर यहां तक श्रद्धालु काफी कम संख्या में पहुंच पाते है। आदि कैलाश व ऊं पर्वत की यात्रा सड़क ना होने के कारण 2019 तक पैदल ही हो पाती थी। इस बेहद दुर्गम हिमालयी इलाके में सड़कों की अब गाड़ियों के लिए सड़क बन चुकी है। साथ ही आधारभूत ढांचे की स्थिति में अब तेजी से सुधार हो रहा है। पर सड़क होने के बावजूद यहां भी केवल गिनती के ही श्रद्धालु पहुंच पाते हैं। यदि गढ़वाल की चारधाम यात्रा से इसकी तुलना की जाए तो कुमाऊं में तीर्थयात्रियों की संख्या साल में बामुशकिल दो लाख के पार हो पाती है। ऐसे में सरकार की इस इलाके को शिवा तीर्थ सर्किट बनाकर प्रमोट करने जा रही है।
प्रधानमंत्री मोदी भी आदि कैलाश, ऊं पर्वत, जागेश्वर धाम में दर्शन करेंगे। इसके अलावा वह चीन सीमा से दिखने वाले कैलाश मानसरोवर पर्वत के व्यू प्वाइंट का भी शुभारंभ कर सकते हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कुमाऊं दौरा इन सब तीर्थस्थलों की ना सिर्फ ब्रांडिंग कर देगा। बल्कि देश की जनता तक यह संदेश भी पहुंच जाएगा कि कुमाऊं के तीर्थस्थलों तक पहुंचने की सारी सुविधाएं उपलब्ध हो चुकी हैं। यात्री सीधे अपने वाहनों में बैठकर ऊं पर्वत, आदि कैलाश से लेकर भागवान शिव के घर कैलाश पर्वत तक के दर्शन कर सकते हैं। भगवान शिव के पौराणिक मंदिर जागेश्वर व बागेश्वर मंदिर समूहों तक पहुंचना भी श्रद्धालुओं के लिए आसान हो जाएगा। ऐसे में पीएम मोदी का यह दौरा कुमाऊं के लिए एतिहासिक साबित होगा।
भारत चीन सीमा से कैलाश पर्वत के दर्शन करेंगे भारतीय
कोरोना के बाद से चीन ने भारतीय श्रद्धालुओं के लिए कैलाश मानसरोवर दर्शन का वीजा देना बंद कर दिया है। इस कारण भारतीय श्रद्धालु भागवन शिव के निवास माने जाने वाले कैलाश पर्वत् के दर्शन नहीं कर पा रहे हैं। इसके विकल्प के तौर पर भारत सरकार ने ऊं पर्वत से ठीक छह किमी दूरी पर स्थित ओल्ड लिपुलेख पास से पवित्र कैलाश पर्वत के दर्शन करवाने की योजना पर काम शुरू कर दिया है। दरअसल ओल्ड लिपुलेख पास से कैलाश पर्वत के दर्शन होते हैं। यह ठीक चीन सीमा के नजदीक है। यहां पर व्यू प्वाइंट बना दिया गया है जहां तक पहुंचने की सड़क भी तैयार हो चुकी है।
पूरे देश में होगी कुमाऊं की ब्रांडिंग
पीएम मोदी जब भी किसी जगह जाते हैं तो उसकी कवरेज पूरे देश की मीडिया करती है। इतिहास साबित करता है कि पीएम मोदी ने जब भी किसी तीर्थस्थल की यात्रा पर पहुंचे। उसके बाद वहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। उनकी केदारनाथ व बद्रीनाथ की यात्रा इसकी गवाह रही है। इसी तरह काशी विश्वनाथ मंदिर, उज्जैन के महाकाल मंदिर में भी पीएम मोदी के दौरे के बाद लाखों की संख्या में श्रद्धालु बढ़ गए। ऐसे में पीएम मोदी के कुमाऊं दौरे से यहां के शिव तीर्थ स्थलों तक भी श्रद्धालुओं व पर्यटकों की संख्या में इजाफा होना तय माना जा रहा है। मोदी जी के द्वारा इन स्थलों का प्रमोट करने से, देश और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को यहां के सुंदर दृश्य, आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक धरोहर का अनुभव करने का अवसर मिलेगा।
पीएम मोदी के दौरे से कुमाऊं को यह फायदें होंगे
अर्थव्यवस्था के लिए मददगार* पीएम मोदी के दौरे का सीधा लाभ कुमाऊं मंडल की अर्थव्यवस्था को मिलेगा। तीर्थयात्रा व पर्यटन बढ़ते ही यहां होटल रिजॉर्ट व होम स्टे का काम तेज हो जाएगा। इससे जुड़े हर काम में तेजी आएगी।
ढांचागत विकास में तेजी
पिथौरागढ़ जिले के दारमा, व्यास व चौंदास घाटियों में अब भी आधारभूत सुविधाएं नहीं है। पीएम के आने की सूचना मिलते ही यहां मोबाइल नेटवर्क जोड़ने का काम तेज हो गया है। सड़कों के साथ बिजली, पानी से जुड़ी योजनाओं की गति बढ़ गई है।
किसानों के लिए समर्थन: पीएम
मोदी मिलेट योजना का कुमाऊं में प्रचार कर सकते हैं। यहां के ज्यादातर उत्पाद ऑर्गेनिक हैं और मिलेट योजना में उत्तराखंड सबसे बड़े उत्पादक बन सकता है।
जलवायु परिवर्तन का समर्थन: कुमाऊं दौरे के दौरान प्रधानमंत्री मोदी जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बारे में जागरूकता फैला सकते हैं और वनस्पति संरक्षण के माध्यम से सान्त्वना प्रदान कर सकते हैं।
स्थानीय विकास को प्रोत्साहित करना: उनका दौरा कुमाऊं के विकास को गति देने में मदद कर सकता है, खासकर स्थानीय उद्योगों और पर्यटन के क्षेत्र में।
स्वच्छता अभियान को प्रोत्साहित करना: मोदी जी के इस दौरे से, स्वच्छता और स्वस्थता के प्रति जागरूकता फैलाने का मौका हो सकता है।
सामाजिक सुरक्षा: दौरे के दौरान, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के बारे में बातचीत करने से सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा मिल सकता है।
स्थानीय जनसंख्या को सहयोग: इस दौरे से स्थानीय जनसंख्या को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों के बारे में जानकारी मिल सकती है।
आध्यात्मिक केंद्र नारायण आश्रम
नारायण आश्रम उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित है। इसकी स्थापना 1936 में नारायण स्वामी ने की थी। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर क्षेत्र है यहां मन की शांति के लिए तमाम पर्यटक और श्रद्धालु पहुंचते हैं। यह लगभग 2700 मीटर से अधिक ऊंचाई मौजूद है। चौदासी घाटी के सोसा गांव के ग्रामीणों ने नारायण स्वामी के तेजस्वी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ही इस आश्रम के लिए अपनी भूमि दी थी। प्रकृति की गोद में बसे इस आश्रम में पहुंचकर लोगों को एक अलग ही अनुभूति होती है और शांति मिलती है। उत्तराखंड के नारायण आश्रम का गुजरात से सीधा कनेक्शन है। आश्रम का संचालन गुजरात के ट्रस्ट से होता है। आश्रम में योग, साधना और ध्यान के हर वर्ष शिविर भी लगाए जाते हैं। यहां एक बड़ा पुस्तकालय और बच्चों के पढ़ने के लिए स्कूल भी बनाया गया है।
125 शिवमंदिर समूह वाला जागेश्वर धाम
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित है। मान्यता है कि यह प्रथम मंदिर है जहां शिव लिंग के रूप में शिवपूजन की परंपरा सर्वप्रथम आरंभ हुई। जागेश्वर को उत्तराखंड का पांचवां धाम भी कहा जाता है। जागेश्वर धाम को भगवान शिव की तपस्थली माना जाता है। इस धाम का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण में भी मिलता है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव एवं सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की थी । जागेश्वर में लगभग 250 छोटे-बड़े मंदिर हैं। जागेश्वर मंदिर परिसर में 125 मंदिरों का समूह है। मंदिरों का निर्माण पत्थरों की बड़ी-बड़ी शिलाओं से किया गया है। मंदिर केदारनाथ शैली से बने हुए हैं। जागेश्वर के मंदिरों का कोई लिखित इतिहास नहीं है। यहां मौजूद कई मंदिरों की वास्तुकला और शैली को देख इन्हें 7वीं से 12 शताब्दी के मध्य का बताया जाता है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण की मानें तो यहां कुछ मंदिर गुप्त काल के बाद और कुछ मंदिर दूसरी शताब्दी के बताए जाते हैं।
पहाड़ पर ऊं की आकृती वाले पर्वत पर बसते हैं शिव
ऊं पर्वत पिथौरागढ़ जिले में स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए धारचूल से पहले गूंजी गांव तक पहुंचना होता है। गूंजी से दांयी ओर मुड़कर करीब 16 किमी दूरी पर नाभीडांग स्थित है। यहीं से ओम पर्वत के दर्शन होते हैं। श्रद्धालु देखकर हैरत में पड़ जाते हैं कि कैसे पहाड़ पर पूरी तरह ओम की आकृति नजर आती है। यहां का दृष्ट भी आलौकिक होता है। इसी रास्ते पर काली नदी का उद्गम स्थल हैं, जहां पर मां काली का मंदिर बना हुआ है। इसी मंदिर के दूसरी ओर बेहद ऊंची पहाड़ी पर व्यास गुफा है। मान्यता है कि इस गुफा में वेद व्यास ने तपस्या की थी।
आदि कैलाश शिव पार्वत का धाम
आदि कैलाश को पंच कैलाश में एक माना जाता है। 2019 से पहले यहां तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को करीब 130 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती थी। पर अब धारचूला से गाड़ी लेकर एक दिन में ही आदि कैलश पहुंचा जा सकता है। धारचूला से पहले गूंजी गांव तक आना होता है। गूंजी गांव से बांई ओर मुड़ने पर करीब 35 किलोमीटर दूर ज्योलीकोंग आता है। यहीं पर आदि कैलाश पर्वत के दर्शन होते हैं। आदि कैलाश के ठीक नीचे पार्वती सरोवर भी है। जब आदि कैलाश की परछाई पार्वती सरोवर में पड़ती है तो दृष्य पृथ्वी के सबसे सुंदर नजारों में एक बन जाता है।
मायावती आश्रम में ठहरे थे स्वामी विवेकनंद
चंपावत से 22 किमी और लोहाघाट से 9 किमी दूर यह आश्रम स्थित है। जिसकीप ऊंचाई 1940 मीटर है। अद्वैत आश्रम की स्थापना के बाद इसे प्रसिद्धि मिली । यह आश्रम भारत और विदेश से आध्यात्मिक लोगों को आकर्षित करता है। मायावती का आश्रम पुराने बागान के बीच स्थित है। 1898 में अल्मोड़ा के अपने तीसरे दौरे के दौरान, स्वामी विवेकानंद ने मद्रास से मायावती में ‘प्रबुद्ध भारत’ के प्रकाशन कार्यालय को स्थानांतरित करने का फैसला किया था। तब से यह यहीं से प्रकाशित किया जाता है। मायावती में एक पुस्तकालय और एक छोटा सा संग्रहालय भी है। इस बार पीएम मोदी उसी कमरें में रूकेंगे जिसमें स्वामी विवेकानंद ठहरे थे।
