
उत्तराखंड की राजनीति और प्रशासनिक परंपराओं में धीमी गति अक्सर चर्चा का विषय रही है — फाइलें महीनों तक दफ्तरों की मेजों पर घूमती रहती हैं, आदेश जारी होते-होते तारीखें बदल जाती हैं, और कर्मचारियों की उम्मीदें हर बार “अगले वित्तीय वर्ष” तक टल जाती हैं। लेकिन इस बार कहानी कुछ अलग है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने जब प्रदेश के कर्मचारियों की दिवाली को और उज्ज्वल बनाने के लिए महंगाई भत्ता और बोनस देने का आदेश जारी किया, तो रुद्रपुर नगर निगम ने दिखा दिया कि अगर नीयत साफ हो और टीम में जोश हो, तो आदेशों को घंटों में भी अमल में लाया जा सकता है।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी
धामी सरकार का उत्सवमय निर्णय?मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने बुधवार को राज्य के लगभग ढाई लाख कर्मचारियों को 58 प्रतिशत की दर से महंगाई भत्ता (DA) और अराजपत्रित कर्मचारियों को बोनस देने का आदेश जारी किया। दिवाली से पहले यह फैसला कर्मचारियों के लिए किसी त्योहार के तोहफे से कम नहीं था। सरकार की ओर से जारी शासनादेश (G.O.) में स्पष्ट किया गया कि पात्र कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से यह लाभ दिया जाए।
सीएम धामी ने कहा, “राज्य सरकार का उद्देश्य हमेशा से कर्मचारियों के हितों की रक्षा और उनके जीवन में खुशहाली लाना रहा है। महंगाई भत्ता और बोनस की घोषणा हमारी उसी प्रतिबद्धता का हिस्सा है।”
लेकिन इस सरकारी फैसले को जमीन पर उतारने का जो अद्भुत उदाहरण रुद्रपुर नगर निगम ने पेश किया, वह पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया।
“एक आदेश, एक घंटा, और खाते में बोनस!”जीओ जारी हुए मुश्किल से एक घंटा बीता होगा कि रुद्रपुर नगर निगम ने कर्मचारियों के खातों में बोनस की राशि ट्रांसफर कर दी। नगर निगम के महापौर विकास शर्मा और नगर आयुक्त नरेश दुर्गापाल ने जैसे ही आदेश की प्रति देखी, उसी क्षण तत्काल बैठक बुलाई। न कोई देरी, न कोई “अगले सप्ताह करेंगे” वाला रवैया।
महापौर विकास शर्मा ने कहा,
“हमारे लिए कर्मचारी ही निगम की असली ताकत हैं। जब सरकार ने आदेश दिया है, तो उसे लागू करने में देरी का कोई औचित्य नहीं। हमने निश्चय किया कि एक घंटे के भीतर ही बोनस उनके खातों में पहुंच जाए — क्योंकि कर्मचारियों की मुस्कान ही हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है।”
नगर आयुक्त नरेश दुर्गापाल ने भी तत्परता दिखाते हुए वित्तीय स्वीकृतियाँ, बैंक ट्रांसफर की प्रक्रिया और प्रशासनिक अनुमोदन — सब कुछ रिकॉर्ड समय में पूरा कराया। परिणाम: कर्मचारियों के मोबाइल पर “क्रेडिट अलर्ट” का संदेश, और दफ्तरों में “धन्यवाद महापौर साहब” की गूंज!
प्रशासनिक अनुकरणीयता या नियमों का उल्लंघन?अब सवाल यह उठता है — क्या किसी भी सरकारी आदेश को जारी होते ही एक घंटे में लागू करना प्रशासनिक दक्षता है या प्रक्रियात्मक जोखिम?
भारत में वित्तीय नियम और Uttarakhand Treasury Code, U.P. Financial Handbook (जो राज्य में अभी भी लागू है) के अनुसार, सरकारी धनराशि का निर्गमन (disbursement) तभी किया जा सकता है जब:
- आदेश की सत्यता की पुष्टि हो,
- प्राप्तकर्ता सूची का प्रमाणीकरण किया गया हो,
- लेखा अधिकारी (Accounts Officer) द्वारा बिल पास किया गया हो,
- ट्रेजरी अथॉरिटी या बैंक को औपचारिक ड्रॉइंग और डिसबर्सिंग अधिकारी (DDO) की स्वीकृति प्राप्त हो।
इन सभी चरणों को पार करने में सामान्यतः 24 से 48 घंटे का समय लगता है।
इसलिए, अगर रुद्रपुर नगर निगम ने यह प्रक्रिया सिर्फ एक घंटे में पूरी कर ली, तो यह दो संभावनाएँ खोलता है —
या तो वहां अभूतपूर्व टीमवर्क और तकनीकी दक्षता थी,
या फिर प्रक्रियाओं को अत्यधिक संक्षिप्त कर दिया गया।
लेकिन जब परिणाम “सकारात्मक” और “कर्मचारी-हितैषी” है, तो जनभावना यही कहती है — “नियमों की किताब बाद में देख लेंगे, पहले बोनस तो मिल गया!”
‘नेता-अधिकारी’ की सधी हुई जोड़ी?कई बार जनता व्यंग्य में कह देती है — “नगर निगम के गुरु और चेले तो राजनीति और प्रशासन के मंच पर साथ खेल रहे हैं।”
लेकिन इस बार इस जोड़ी को “नेता-अधिकारी” कहना अधिक उपयुक्त है — एक ऐसा संयोजन, जहां राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक दक्षता ने मिलकर एक मिसाल कायम की।
महापौर विकास शर्मा का तेज निर्णय और आयुक्त नरेश दुर्गापाल की तकनीकी तत्परता, दोनों ने यह साबित किया कि यदि स्थानीय प्रशासन और नेतृत्व एक दिशा में काम करें, तो सरकार के आदेश फाइलों में नहीं, खातों में उतरते हैं।
‘सिस्टम’ भी चमक सकता है, बस ‘नियत’ सही होनी चाहिए?रुद्रपुर की यह घटना एक बड़ा संदेश देती है कि सरकारी व्यवस्था में भी यदि “जिम्मेदारी और जोश” दोनों हों, तो वह किसी निजी कंपनी से कम नहीं।
जहां कई जगह आदेश जारी होने के हफ्तों बाद तक कर्मचारी यह पूछते रहते हैं कि “साहब, बोनस का क्या हुआ?”, वहीं रुद्रपुर में कर्मचारियों ने सिर्फ एक घंटे में बैंक अलर्ट देखा।
इस तेजी को देखकर कई सरकारी विभागों ने सोशल मीडिया पर भी रुद्रपुर मॉडल की तारीफ की। कुछ ने तो इसे “धामी डिलीवरी सिस्टम 2.0” कहा — यानी “फैसला भी तेज, अमल भी तेज!”
क्या यह ‘अति-शीघ्रता’ अब नीति बन सकती है?अब सवाल यह है कि क्या भविष्य में भी सरकारी आदेशों को इतनी तेजी से लागू किया जा सकेगा?
वास्तव में, इसके लिए सरकार को कुछ नीतिगत परिवर्तन करने की आवश्यकता होगी:
- ई-ऑर्डर इंटीग्रेशन सिस्टम:
जैसे ही शासनादेश जारी हो, वह संबंधित विभागों के वित्तीय सॉफ्टवेयर (IFMS) में स्वतः अपडेट हो जाए। - पूर्व-अनुमोदित बोनस बजट:
नगर निगमों को “फेस्टिवल बोनस” के लिए पूर्व-स्वीकृत बजट रखना चाहिए ताकि आदेश मिलते ही भुगतान किया जा सके। - स्वचालित बैंक इंटीग्रेशन:
कर्मचारियों की सूची और भुगतान डेटा पहले से तैयार हो, ताकि मैनुअल विलंब न हो। - जवाबदेही और पारदर्शिता:
प्रत्येक भुगतान की रसीद और ट्रांजेक्शन पब्लिक डैशबोर्ड पर प्रदर्शित की जाए।
अगर ऐसा होता है, तो रुद्रपुर का उदाहरण अपवाद नहीं, बल्कि आदर्श बन सकता है।
हास्य और हकीकत — “बोनस का पटाखा”राजनीतिक हलकों में भी इस पूरे प्रकरण पर हल्का-फुल्का हास्य चल पड़ा है। कोई कह रहा है — “धामी सरकार का आदेश उड़नखटोले पर बैठा रुद्रपुर उतरा,” तो कोई मजाक में बोल रहा है — “निगम ने दिवाली का बोनस देने में जो रफ्तार दिखाई, अगर उसी रफ्तार से नालियाँ भी बनतीं तो शहर चमक उठता।”
फिर भी, इस व्यंग्य के बीच सच्चाई यही है कि इस बार नगर निगम रुद्रपुर ने प्रशासनिक तत्परता का चेहरा बदल दिया है।
देरी की परंपरा’ से ‘तेजी की परंपरा’ तक?भारत में सरकारी आदेशों के क्रियान्वयन में “विलंब” एक संस्कार बन चुका था। लेकिन रुद्रपुर ने इस बार उसे तोहफे में मिले आदेश से तोड़ दिया।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने जो निर्णय लिया, उसने कर्मचारियों के चेहरे पर मुस्कान लाई; और रुद्रपुर के महापौर विकास शर्मा ने उसे समय से पहले लागू कर एक नई सोच दी — “आदेश को अमल में लाना भी एक कला है।”
अगर यही ऊर्जा हर नगर निगम, हर विभाग और हर अधिकारी में आ जाए, तो उत्तराखंड में शासन की परिभाषा सच में “सुशासन” बन जाएगी।
- धामी सरकार का बोनस और महंगाई भत्ता आदेश ऐतिहासिक कदम।
- रुद्रपुर नगर निगम की एक घंटे में भुगतान प्रक्रिया, प्रशासनिक दक्षता का उदाहरण।
- नियमों के अनुसार प्रक्रिया विस्तृत है, पर रिकॉर्ड समय में क्रियान्वयन संभव।
- “नेता-अधिकारी” की सधी हुई साझेदारी ने नई परंपरा गढ़ी।
- हास्य में भी सीख है — “तेजी भी शासन का हिस्सा हो सकती है।”
अगर सरकारें आदेश जारी करने में तेज हों, और अधिकारी उन्हें लागू करने में और तेज — तो जनता की दिवाली हर दिन मनाई जा सकती है। 🎇


