हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स ,अवतार सिंह बिष्ट,

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उत्तराखंड ने बनाया वर्ल्ड रिकॉर्ड

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के 12 अक्टूबर को देवभूमि उत्तराखण्ड आगमन पर उत्तराखण्ड के छोलिया और झौडा लोक नृतकों की ढोल दमाऊँ लोक वाद्यों के साथ प्रस्तुति को वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड में स्थान प्राप्त हुआ है।
जानकारी देते हुये निदेशक संस्कृति विभाग द्वारा बताया गया है कि सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ में समुद्र तल से 5338 फीट (1627) मीटर की आश्चर्यजनक ऊँचाई पर एक अनोखा और ऐतिहासिक कार्यक्रम संस्कृति विभाग, उत्तराखण्ड द्वारा आयोजित किया गया। हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स ,अवतार सिंह बिष्टमिली।
उन्होंने कहा कि सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ सुदूरवर्ती अंचलों से लगभग 3000 की संख्या में पहुँचे छोलिया एवं झौड़ा नृत्य दलों के लोक कलाकार अपनी पारम्परिक परिधानों एवं आभूषणों से सुसज्जित होकर प्रतिभाग करने पहुँचे तथा इस दौरान लोक गीतों एवं पारम्परिक लोक वाद्यों की धुनों से पूरा पिथौरागढ़ क्षेत्र गुज्यमान हो उठा उत्तराखण्ड की समृद्ध लोक सांस्कृतिक विरासत को देखकर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भाव विभोर हो गये। जनपद पिथौरागढ़ अपने प्राकृतिक सौंदर्य एवं शान्त वातावरण के लिये ख्यतिलब्ध है। यहाँ हिमालय की ऊँचे-ऊचें हिम शिखर एक सजग पहरी के भाँति अडिग रहते हैं वहीं यह सीमान्त जनपद उत्तराखण्ड की छोलिया एवं झौड़ा लोक नृतक का सबसे बड़ा जमावड़े का केन्द्र रहा। उत्तराखण्ड के पारम्परिक लोक वाद्यों जैसे तुन, रणसिंघा, नागफनी, छोलिया ढाई व तलवार जैसे अन्य लोक वाद्य यन्त्रों ने पूरी घाटी को सुशोभित कर दिया।
निदेशक संस्कृति ने कहा कि जनपद पिथौरागढ़ के सीमान्त गांवों से आये हजारों लोक कलाकारों की जीवन्त एवं विविध संस्कृतियों उनकी साझा विरासत का जीवन्त परिचय इस कार्यक्रम में देखने को मिला। लोक कलाकारों ने अपनी प्रतिभा का भरपूर प्रदर्शन कर लोगों को मन्त्रमुग्ध कर दिया हिमालय पर्वत श्रृंखला की पृष्ठभूमि में आयोजित इस वृहद उत्सव ने इसे वास्तव में एक उल्लेखनीय और पहले कभी न देखा गया दृष्य बना दिया। इस कार्यक्रम में सीमान्त क्षेत्र की पारम्परिक एवं ऐतिहासिक लोक सांस्कृतिक विरासत की अदम्य भावना का प्रदर्शन किया गया लोक कलाकार अपनी पारम्परिक परिधानों एवं आभूषणों से सुसज्जित होकर प्रतिभाग करने पहुँचे तथा इस दौरान लोक गीत एवं पारम्परिक लोक वाद्यों की धुनों से पूरा पिथौरागढ़ क्षेत्र गुज्यमान हो उठा।
उन्होंने कहा कि इस आयोजन का सफल क्रियान्वयन संस्कृति विभाग, उत्तराखण्ड एवं भारत सरकार की दूरदर्शिता और समर्पण का प्रमाण है, इतनी ऊँचाई पर लोक कलाकारों के इस विशाल जमावड़े से उत्तराखण्ड की अनूठी संस्कृति के संरक्षण और संवर्द्धन के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता प्रदर्शित होती है। इस ऐतिहासिक सभा में जहाँ उत्तराखण्ड की अमूल्य सांस्कृतिक विरासत, लोक परम्पराओं एवं अदभूत प्राकृतिक सौंदर्य अद्वितीय ऊँचाई समुद्र तल से 5338 फीट (1627) मीटर पर ढोल दमाऊ एवं अन्य विभिन्न पारम्परिक वाद्यों एवं लोक संगीत पर प्रदर्शन करने वाले छोलिया और झौड़ा लोक नर्तकों द्वारा एकत्रित होकर एक विश्व रिकार्ड बनाया है, जो इतिहास के पन्नों पर एक ऐसे आयोजन के रूप में दर्ज किया जायेगा।
निदेशक संस्कृति ने कहा कि जनपद पिथौरागढ़ के सीमान्त गांवों से आये हजारों लोक कलाकारों की जीवन्त एवं विविध संस्कृतियों उनकी साझा विरासत का जीवन्त परिचय इस कार्यक्रम में देखने को मिला। लोक कलाकारों ने अपनी प्रतिभा का भरपूर प्रदर्शन कर लोगों को मन्त्रमुग्ध कर दिया हिमालय पर्वत श्रृंखला की पृष्ठभूमि में आयोजित इस वृहद उत्सव ने इसे वास्तव में एक उल्लेखनीय और पहले कभी न देखा गया दृष्य बना दिया। इस कार्यक्रम में सीमान्त क्षेत्र की पारम्परिक एवं ऐतिहासिक लोक सांस्कृतिक विरासत की अदम्य भावना का प्रदर्शन किया गया लोक कलाकार अपनी पारम्परिक परिधानों एवं आभूषणों से सुसज्जित होकर प्रतिभाग करने पहुँचे तथा इस दौरान लोक गीत एवं पारम्परिक लोक वाद्यों की धुनों से पूरा पिथौरागढ़ क्षेत्र गुज्यमान हो उठा।
उन्होंने कहा कि इस आयोजन का सफल क्रियान्वयन संस्कृति विभाग, उत्तराखण्ड एवं भारत सरकार की दूरदर्शिता और समर्पण का प्रमाण है, इतनी ऊँचाई पर लोक कलाकारों के इस विशाल जमावड़े से उत्तराखण्ड की अनूठी संस्कृति के संरक्षण और संवर्द्धन के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता प्रदर्शित होती है। इस ऐतिहासिक सभा में जहाँ उत्तराखण्ड की अमूल्य
सांस्कृतिक विरासत, लोक परम्पराओं एवं अदभूत प्राकृतिक सौंदर्य अद्वितीय ऊँचाई समुद्र तल से 5338 फीट (1627) मीटर पर ढोल दमाऊ एवं अन्य विभिन्न पारम्परिक वाद्यों एवं लोक संगीत पर प्रदर्शन करने वाले छोलिया और झौड़ा लोक नर्तकों द्वारा एकत्रित होकर एक विश्व रिकार्ड बनाया है, जो इतिहास के पन्नों पर एक ऐसे आयोजन के रूप में दर्ज किया जायेगा।

पिथौरागढ़ उत्तराखंड का एक प्रमुख पर्वतीय नगर है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह नगर राज्य का एक प्रमुख पर्यटन क्षेत्र है। आज ही के दिन 24 फरवरी 1960 को पिथौरागढ़ अल्मोड़ा जनपद से कटकर एक नई जनपद के रूप में अस्तित्व में आया। पिथौरागढ़ जनपद के जन्मदिन के अवसर पर आइए जानते हैं पिथौरागढ़ के बारे में।

पिथौरागढ़ उत्तराखंड राज्य का एक नगर है। पिथौरागढ़ उत्तराखण्ड राज्य के पूर्व में स्थित सीमान्त जनपद है। इसके उत्तर में तिब्बत, पूर्व में नेपाल, दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व में अल्मोड़ा, एवं उत्तर-पश्चिम में चमोली ज़िले पड़ते हैं। यह नगर समुद्र तल से 1645 मीटर की उंचाई पर स्थित है। पिथौरागढ़ का क्षेत्रफल 2,788 वर्ग मील है, पिथौरागढ़ का अधिकांश भाग पहाड़ी एवं ऊबड़-खाबड़ है। पिथौरागढ़ एक शासन केंद्र भी है। कुमाऊँ में चंद वंशीय शासन में यह जनपद शक्ति का मुख्य केन्द्र था। कैलाश मानसरोवर की यात्रा का आरंभ इसी जनपद से होता है। यह नगर उनी कपडों और केन के हस्त शिल्प के लिये जाना जाता है। हवाई पट्टी नैनी सैनी टनकपुर कुमांउ मण्डल के जनपद चम्पावत पिथौरागढ और लोहाघाट जाने के लिये अंतिम रेलवे केन्द्र है यहाँ गोरखाओं द्वारा निर्मित 18वी शताब्दी का क़िला जो पिथौरागढ फोर्ट के नाम से जाना जाता है। पहाड़ी भाग होने के कारण पिथौरागढ़ की विशेष उन्नति नहीं हो सकी है।

इतिहास
पिथौरागढ़ का पुराना नाम सोरघाटी है। सोर शब्द का अर्थ होता है– सरोबर। यहाँ पर माना जाता है कि पहले इस घाटी में सात सरोवर थे। दिन-प्रतिदिन सरोवरों का पानी सूखता चला गया और यहाँ पर पठारी भूमि का जन्म हुआ। पठारी भूमी होने के कारण इसका नाम पिथौरा गढ़ पड़ा, पर अधिकांश लोगों का मानना है कि यहाँ राय पिथौरा की राजधानी थी। उन्हीं के नाम से इस जगह का नाम पिथौरागढ़ पड़ा। राय पिथौरा ने नेपाल से कई बार टक्कर ली थी। यही राजा पृथ्वीशाह के नाम से प्रसिद्ध हुआ।[1]

स्थापना
पिथौरागढ़ अल्मोड़ा जनपद की एक तहसील थी। इसी एक तहसील से 24 फरवरी 1960 को पिथौरागढ़ ज़िला का जन्म हुआ। तथा इस सीमान्त ज़िला पिथौरागढ़ को सुचारु रुप से चलाने के लिए चार तहसीलों (पिथौरागढ़, डीडी घाट, धारचुला और मुन्स्यारी) का निर्माण 1 अप्रैल 1960 को हुआ। इस जगह की महत्ता दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली गयी। शासन ने प्रशासन को सुदृढ़ करने हेतु 13 मई 1972 को अल्मोड़ ज़िले से चम्पावत तहसील को निकालकर पिथौरागढ़ में मिला दिया। चम्पावत तहसील कुमाऊँ की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाला क्षेत्र है। कत्यूरी एवं चन्द राजाओं का यह काली कुमाऊँ-चम्पावत वाला क्षेत्र विशेष महत्व रखता है। आठवीं शताबादी से अठारहवीं शताब्दी तक चम्पावत कुमाऊँ के राजाओं की राजधानी रहा है।

पर्यटन hotel plaza Rajendra Bhatt Pithoragarh
पिथौरागढ़ समुद्रतल से 1615 मीटर की उँचाई पर 6.47 वर्ग किलोमीटर की परिधि में बसा हुआ है। इस नगर का महत्व चन्द राजाओं के समय से रहा है। यह नगर सुन्दर घाटी के बीच बसा है। कुमाऊँ पर होने वाले आक्रमणों को पिथौरागढ़ ने सुदृढ़ किले की तरह झेला है। जिस घाटी में पिथौरागढ़ स्थित है, उसकी लम्बाई 8 किमी. और चौड़ाई 15 किमी. है। रमणीय घाटी का मनोहर नगर पिथौरागढ़ सैलानियों का स्वर्ग है।

लिटिल कश्‍मीर
पिथौरागढ़ को प्रमुख हिल रिजोर्ट के रूप में जाना जाता है। यहाँ की प्राकृतिक सुन्‍दरता पर्यटकों को अपनी ओर अधिक आकर्षित करती है। पिथौरागढ़ समुद्र तल से 1,851 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पिथौरागढ़ को लिटिल कश्‍मीर के नाम से भी जाना जाता है। पिथौरागढ़ सुन्दर – सुन्दर घाटियों का जनपद है। नदी घाटियों का जनपद है। नदी घाटियों में यहाँ प्राकृतिक सौन्दर्य बिखरा हुआ है। सीढ़ीनुमा खेतों की सुन्दरता पर्यटकों का मन मोह लेती है। यहाँ के पर्वतों की अनोखी अदा सैलानियों को मुग्ध कर देती है। नदियों का कल-कलस्वर प्रकृति प्रेमियों को अलौकिक आनन्द देता है।

आवास एवं विश्राम गृह
पिथौरागढ़ नगर में पर्यटकों के रहने-खाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था है। यहाँ 24 शैयाओं का एक आवासगृह है। वन विभाग और ज़िला परिषद का विश्रामगृह है। इसके अलावा यहाँ आनन्द होटल, धामी होटल, सम्राट होटल, होटल ज्योति, ज्येतिर्मयी होटल, लक्ष्मी होटल, जीत होटल, कार्की होटल, अलंकार होटल, राजा होटल, त्रिशुल होटल आदि कुछ ऐसे होटल हैं जहाँ सैलानियों के लिए हर प्रकार की सुविधाऐं प्रदान करवाई जाती है।

शरदकालीन उत्सव
पर्यटकों के लिए ‘कुमाऊँ मंडल विकास निगम’ की ओर से व्यवस्था की जाती है। शरद काल में यहाँ एक ‘शरद कालीन उत्सव’ मनाया जाता है। इस उत्सव मेले में पिथौरागढ़ की सांस्कृतिक झाँकी दिखाई जाती है। सुन्दर-सुन्दर नृत्यों का आयोजन किया जाता है।

क्या ख़रीदें
पिथौरागढ़ में स्थानीय उद्योग की वस्तुओं का विक्रय भी होता है। राजकीय सीमान्त उद्योग के द्वारा कई वस्तुओं का निर्माण होता है। यहाँ के जूते, ऊन के वस्त्र और किंरगाल से बनी हुई वस्तुओं की अच्छी मांग है। सैलानी यहाँ से इन वस्तुओं को ख़रीदकर ले जाते हैं।

मनोरंजन
पिथौरागढ़ में सिनेमा हॉल के अलावा स्टेडियम और नेहरु युवा केन्द्र भी है। मनोरंजन के कई साधन हैं। पिकनिक स्थल हैं। यहाँ पर्यटक जाकर प्रकृति का आनन्द ले सकते हैं।

दर्शनीय स्थल
उल्का देवी मंदिर
पिथौरागढ़ से एक किलोमीटर की दूरी पर उल्का देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है। लगभग एक किलोमीटर पर राधा-कृष्ण मन्दिर भी दर्शनार्थियों का मुख्य आकर्षण है। इसी तरह एक किलो टर पर राय गुफ़ा और एक ही किलोमीटर की दूरी पर भटकोट का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

थल केदार
थल केदार में शिव का मन्दिर है। पिथौरागढ़ से इसकी दूरी 6 किमी है। यह अत्यन्त सुषमापूर्ण स्थान है। शिवरात्रि के दिन यहाँ पर एक विशाल मेला लगता है। दूर-दूर के यात्री इस अवसर पर यहाँ आते हैं। पिथौरागढ़ में थल मेला का भी विशेष महत्व है। मेले के अवसर पर यहाँ पर नृत्यों का आयोजन भी होता है। अन्य आकर्षक कार्यक्रम भी सम्पन्न किए जाते हैं थल केदार पिथौरागढ से 20 किमी दूर शिवपुरी नामक स्थान पर प्राकृतिक गुफ़ा है जिसका मुहाना अत्यधिक छोटा है और ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से जाने वाला मोटे से मोटा व्यक्ति भी इसे पार कर जाता है और दुर्भावना रखने वाला व्यक्ति चाहे कितना भी दुबला क्यों न हो इस गुफ़ा के मुहाने में फंस जाता है।

चण्डाक
पिथौरागढ़ से केवल 7 किलोमीटर दूर समुद्रतल से 1800 मीटर की ऊँचाई पर चण्डाक नामक रमणीय स्थल स्थित है। पर्यटक चण्डाक जाकर पिकनिक करते हैं। यहाँ की प्राकृतिक छटा अत्यन्त आकर्षक है। चण्डाक से सम्पूर्ण घाटी बहुत साफ़ और आकर्षक दिखाई देती है। पर्यटक सम्पूर्ण घाटी के अद्भुत् सौन्दर्य को देखने हेतु चण्डाक अवश्य आते हैं। आजकल यहाँ मैग्नासाइट के उद्योग लग जाने से इस स्थान का महत्व और भी बढ़ गया है। औद्योगिक नगर के रुप में अब इस स्थान की प्रगति हो रही है।

ध्वज
‘ध्वज’ पिथौरागढ़ का ध्वज है। यह अत्यन्त सौन्दर्य वाला स्थल है। यहाँ से हिमालय का दृश्य इतना आकर्षक है कि पर्यटन एवं प्रकृति-प्रेमी केवल यहाँ से हिमालय के अद्भुत सुषमा के दर्शन हेतु दूर-दूर से आते है। हिमालय का हिमरूपी चाँदी का-सा भव्य सुकुट दर्शकों को आपार शान्ति देता है। पिथौरागढ़ धारचूला मोटर मार्ग के 18वें किलोमीटर पर समुद्रतल से 2100 मीटर की ऊँचाई पर ‘ध्वज’ स्थित है। प्रकृति के अत्यन्त लुभावने स्थलों में ध्वज की गिनती की जाती है।

कैसे पहुँचे
पिथौरागढ़ पहुँचने के लिए दो मार्ग मुख्य हैं। एक मार्ग टनकपुर से और दूसरा काठगोदाम-हल्द्वानी से है। पिथौरागढ़ का हवाई अड्डा शहर से कुछ ही दूरी पर नैनी सैनी इलाके में अवस्थित है। समीप का रेलवे स्टेशन टनकपुर 151 किमी. की दूरी पर है। काठगोदाम का रेलवे स्टेशन पिथौरागढ़ से 212 किमी. की दूरी पर है।


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